रेणु और सुमेधा—दोनों बचपन की सहेलियाँ थीं। एक ही मोहल्ले में पली-बढ़ीं, एक ही स्कूल में पढ़ीं, एक ही कॉलेज में गईं। लोग अक्सर उन्हें ‘राम-लक्ष्मण’ की जोड़ी कहते। दोनों में बहुत कुछ समान था—सपने, उम्र, रुचियाँ, यहाँ तक कि शक्ल-सूरत भी मिलती-जुलती थी। लेकिन एक चीज़ थी जो समान नहीं थी—किस्मत।
रेणु एक मेहनती लेकिन शांत स्वभाव की लड़की थी। उसे किसी से कोई शिकायत नहीं रहती थी। वह हमेशा अपनी छोटी-सी दुनिया में संतुष्ट रहती थी।
वहीं, सुमेधा ज्यादा महत्वाकांक्षी थी। उसे अच्छा दिखना, सबसे आगे रहना, तारीफें सुनना बहुत पसंद था। जब तक रेणु उससे पीछे रहती, वह संतुष्ट थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, रेणु की किस्मत उसका साथ देने लगी।
कॉलेज के आखिरी साल में रेणु को एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई। और फिर, धीरे-धीरे वह तरक्की करती गई। उसके सादगीपूर्ण लेकिन प्रभावशाली व्यक्तित्व ने उसे बहुत आगे पहुँचा दिया।
सुमेधा भी नौकरी कर रही थी, लेकिन छोटी कंपनी में। उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगा। लेकिन उसने कभी यह नहीं दिखाया कि उसे रेणु से जलन है। ऊपर से वह वही पुरानी दोस्त बनी रही—हँसती, मुस्कुराती, लेकिन अंदर ही अंदर उसकी आत्मा कुंठा और ईर्ष्या की आग में जलने लगी।
एक दिन रेणु ने उसे बताया कि उसकी शादी तय हो गई है। लड़का एक उच्च सरकारी अधिकारी है – सुलझा हुआ, पढ़ा-लिखा, और बेहद विनम्र। सुमेधा के भीतर की ईर्ष्या ने पहली बार ज़ोर से दस्तक दी।
“तुम्हारी किस्मत तो सच में बहुत अच्छी है रे,” उसने मुस्कुरा कर कहा, लेकिन उस मुस्कान में जितनी मिठास थी, उससे कहीं ज्यादा ज़हर उसके भीतर था।
रेणु ने उसे अपने सारे फंक्शन्स में बुलाया। हर रस्म में सुमेधा सबसे आगे थी—सजाने में, गाने में, हँसी-मज़ाक में। लेकिन उसकी आँखों में एक बेचैनी थी। वह सोचती,
“मेरे जैसे दिखने वाली वही लड़की, आज इतना कुछ पा गई… और मैं बस दर्शक बनी देख रही हूँ।”
रेणु की शादी के कुछ ही दिन बाद, सुमेधा ने गुपचुप एक अफ़वाह उड़ाई—कि रेणु का पति पहले किसी और के साथ रिश्ते में था, और रेणु को धोखा मिल सकता है। यह बात धीरे-धीरे मोहल्ले और रिश्तेदारों तक फैल गई। रेणु को कुछ दिनों बाद इसका आभास हुआ।
शुरू में उसे यकीन नहीं हुआ कि सुमेधा ऐसा कर सकती है। लेकिन जब उसने कुछ और बातों को जोड़ कर देखा, तो उसे समझ में आया कि जो उसके सबसे करीब थी, वही उसके लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई थी।
रेणु ने कभी सुमेधा से सवाल नहीं किया। उसने चुपचाप दूरी बना ली। न कोई उलाहना, न कोई आरोप। बस, उसकी आँखों की मासूमियत में एक अजीब-सी निराशा आ गई थी।
सुमेधा को यह दूरी भी चुभने लगी। उसे लगा, “अब तो वह मुझे ज़रूरी भी नहीं समझती।” उसकी ईर्ष्या अब और गहराने लगी। हर सोशल मीडिया पोस्ट, हर तस्वीर, हर मुस्कान उसे अंदर से काटने लगी।
एक दिन, सुमेधा ने रेणु के पति को एक फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट से मैसेज किया—जैसे कि वह किसी लड़की से पहले से जुड़ा हो। उसका उद्देश्य था—रेणु के वैवाहिक जीवन को तोड़ना।
लेकिन किस्मत ने फिर रेणु का साथ दिया। उसके पति, अर्णव, एक समझदार इंसान थे। उन्होंने सीधा रेणु से बात की और दोनों ने उस अकाउंट की सच्चाई पता लगाने का फैसला किया।
जब सच्चाई सामने आई और मैसेज के ट्रेसिंग से मालूम हुआ कि वह फर्जी प्रोफ़ाइल सुमेधा के मोबाइल से बनाई गई थी—तब अर्णव ने रेणु से कहा,
“मुझे नहीं लगता कि ऐसे लोगों से कोई जवाब माँगना चाहिए। क्यूंकि उसे तुमसे ईर्ष्या हो गयी है, और ईर्ष्या — एक ऐसा भाव जो अक्सर चुपचाप मन के कोनों में पलता है, और जब तक व्यक्ति उसे पहचानता है, तब तक वह बहुत कुछ जला चुका होता है — रिश्ते, आत्मविश्वास, और कभी-कभी खुद का अस्तित्व भी। लेकिन तुम्हें तय करना होगा कि तुम उसे माफ़ कर सकती हो या नहीं।”
सुमेधा को जब सब पता चला, वह टूट गई। उसे समझ नहीं आया कि वह ऐसा कैसे कर बैठी। वह रेणु के पास गई, आँखों में आँसू लिए।
“रेणु, मैंने तुम्हारी गृहस्थी क्यूं बिगाड़ना चाहा था, मुझे खुद नहीं पता, मैं क्यों तुमसे जलने लगी… मुझे माफ़ कर दो।”
रेणु ने बस इतना कहा—
सुमेधा ईर्ष्या एक धीमा जहर है। यह कभी सीधा वार नहीं करती, लेकिन धीरे-धीरे रिश्तों को अंदर से खोखला कर देती है। जो लोग ईर्ष्या के वश में आ जाते हैं, वे दूसरों को नुकसान पहुँचाने के चक्कर में खुद को ही खो बैठते हैं।
“तुमने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा सुमेधा। तुमने खुद को खो दिया। और वो नुकसान किसी माफ़ी से नहीं भरेगा।”
उस दिन के बाद सुमेधा के जीवन में सब कुछ बदल गया। न रेणु रही, न उसका आत्म-सम्मान। समाज ने उसे भुला दिया। और वह खुद को।
रेणु अब भी अपने जीवन में खुश थी—पर कभी-कभी जब पुरानी तस्वीरें पलटती, और सुमेधा की मुस्कान देखती, तो उसकी आँखों में एक टीस उभर आती थी। और मन हीं मन कहती –
“काश, उसने मुझसे ईर्ष्या नहीं, वही पुराना प्यार किया होता।” उसने ये समझ लिया होता कि ईर्ष्या एक धीमा जहर है। यह कभी सीधा वार नहीं करती, लेकिन धीरे-धीरे रिश्तों को अंदर से खोखला कर देती है। जो लोग ईर्ष्या के वश में आ जाते हैं, वे दूसरों को नुकसान पहुँचाने के चक्कर में खुद को ही खो बैठते हैं।
जहाँ सच्चा अपनापन होता है, वहाँ ईर्ष्या का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
वरना रिश्ते सिर्फ दिखावे के बचे रह जाते हैं।
कहानी प्रतियोगिता – शीर्षक : ईर्ष्या
सुबोद्ध प्रण