राम और लक्ष्मण सगे भाई थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया था। घर में कोई बड़ा नहीं था, इसलिए राम ने बड़े भाई से कहीं ज़्यादा, एक अभिभावक की भूमिका निभाई। उसने लक्ष्मण को सिर्फ भाई नहीं, बेटे की तरह पाला। पढ़ाई से लेकर कपड़े और हर ज़रूरत का ध्यान रखा। जब
राम की शादी हुई, तो उसकी पत्नी सीता ने भी लक्ष्मण को अपने बेटे जैसा ही प्यार दिया। सीता संस्कारी, सच्चरित्र और दयालु स्त्री थी। समाज में उसका बड़ा आदर था। लोग उसे देवी समान मानते थे।
उनका छोटा सा परिवार बहुत खुश था। राम लक्ष्मण को हमेशा साथ लेकर चलता, और लक्ष्मण के मन में भी राम और सीता के लिए बेहद सम्मान था। राम की मां ने मरते समय राम से वादा लिया था कि वह लक्ष्मण को कभी अकेला महसूस नहीं होने देगा, और राम ने उस वादे को पूरी निष्ठा से निभाया।
समय बीता और एक दिन लक्ष्मण की शादी धारा से हो गई। धारा सुंदर थी, व्यवहार-कुशल भी दिखती थी। शुरू-शुरू में वह सभी के साथ मिल-जुलकर रही। सीता ने उसे अपनी बहन की तरह अपनाया। लेकिन धीरे-धीरे एक साइलेंट ज़हर घर में फैलने लगा — ईर्ष्या का ज़हर।
धारा को समाज में सीता का मान-सम्मान चुभने लगा। जब भी कोई घर आता, कहता — “धारा, तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें सीता जैसी भाभी मिली।” यह सुनकर धारा के चेहरे पर मुस्कान तो होती, पर दिल में चिंगारी जलने लगती।
उसे लगने लगा कि इस घर में उसकी कोई पहचान नहीं है। सब सीता की तारीफ करते हैं, कोई उसे नहीं पूछता। धीरे-धीरे उसकी सोच में कड़वाहट आ गई। वह सीता से जलने लगी। अब उसके मन में एक ही सवाल घूमता — “जब तक सीता हैं, मैं कभी नहीं चमक पाऊंगी।”
उसने लक्ष्मण के कान भरने शुरू कर दिए। कहती, “भाभी सबके सामने मीठा बोलती हैं, लेकिन असल में तुम्हें कंट्रोल कर रही हैं। राम भैया सब कुछ भाभी के कहने पर करते हैं।” लक्ष्मण उसे
समझाता, “धारा, भाभी मां जैसी हैं, उन्होंने मुझे अपने बेटे से बढ़कर प्यार दिया है लेकिन धारा अब सुनने के मूड में नहीं थी।
धीरे-धीरे उसका व्यवहार बिगड़ता गया। वह जानबूझकर सीता के बनाए खाने में नमक या मिर्च ज्यादा डाल देती, उसके कपड़े काट देती, कोई मेहमान आता तो उससे सीता की बुराई करती सीता यह सब समझती थी, पर चुप थी। सोचती थी — “बच्ची है, समय के साथ समझ जाएगी।”
लेकिन धारा की ईर्ष्या अब पागलपन बन गई थी। एक दिन उसने सारी हदें पार कर दीं — सीता के चरित्र पर झूठा आरोप लगा दिया। उसने घर में चिल्लाकर कहा कि सीता का व्यवहार ठीक नहीं है,
और राम पर भी शक किया। यह सुनकर राम के पैर तले ज़मीन खिसक गई। सीता फूट-फूटकर रो पड़ी। वह स्त्री जो इस घर की मां बनकर सबको जोड़ रही थी, उसी पर अब उंगली उठाई जा रही थी।
लक्ष्मण को भी पहले तो विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब उसे सच्चाई का एहसास हुआ और उसे लगा कि उसकी पत्नी नीचता की हद पार कर रही है तो वह टूट गया। वह राम के पैरों में गिर पड़ा और रोते हुए बोला,
“भैया, मुझे माफ कर दो। मुझसे यह सब देखा नहीं जाता। भाभी ने मुझे मां जैसा प्यार दिया है, लेकिन मेरी पत्नी ने उस ममता को कलंकित कर दिया। मैं जानता हूं कि आपसे अलग होकर मैं कभी खुश
नहीं रह पाऊंगा, लेकिन अब भाभी की आंखों में आंसू नहीं देख सकता। मैं चाहता हूं कि हम अलग हो जाएं।” तब शायद मेरी पत्नी को अपनी गलती समझ में आए, क्योकि अभी तो कितना भी समझा रहा हूं वह समझ नहीं पा रही है।
राम ने गहरी सांस ली, आंखें बंद कीं और भारी मन से कहा —
“अगर यही समाधान है तो ठीक है। लेकिन याद रखना लक्ष्मण, परिवार बनाना आसान है, पर निभाना बहुत कठिन।”
और इस तरह, धारा की ईर्ष्या ने एक मजबूत, प्यार भरे परिवार को तोड़ दिया।
सीख:
ईर्ष्या एक ऐसी आग है जो सबसे पहले उसी को जलाती है, जिसमें वह जन्म लेती है… और फिर धीरे-धीरे पूरे परिवार को राख बना देती
रेनू अगरवाल