गंगा दशहरा होने के कारण, रेलवे स्टेशन पर गंगा स्नान करने जाने वालों की अत्यधिक भीड़ और हलचल थी।
दिल्ली से हरिद्वार जाने वाली रेलगाड़ी में तिल धरने की भी जगह ना थी। ऐसे में जैसे तैसे जतन करके श्याम अपनी पत्नी राधा और 8 वर्षीय बेटी नीलम और 3 वर्षीय बेटे गोलू के साथ रेलगाड़ी में चढ़ने की कोशिश कर रहा था।
बहुत धक्कम धक्का और कोशिश के बाद वह रेल में चढ़ गया। धीरे-धीरे रेलगाड़ी ने चलना शुरू कर दिया और फिर रफ्तार पकड़ ली। तभी श्याम ने राधा से कहा-“राधा, भीड़ बहुत है, गोलू का हाथ कस के पकड़ कर रखना।”
राधा-“लेकिन गोलू तो तुम्हारे साथ था।”
श्याम और राधा घबराकर एक साथ चिल्लाए-“अरे कोई गाड़ी रोको, हमारा गोलू तो यहां है ही नहीं। लगता है रेलवे स्टेशन पर ही छूट गया, पर इतने शोर और भीड़ में किसी ने उनकी नहीं सुनी और वह जंजीर खींचने के लिए भी वहां तक नहीं पहुंच सके। रेलगाड़ी अपनी तेज रफ्तार में भागती जा रही थी।
छोटा सा गोलू, मात्र 3 साल का बच्चा। नन्हा गोलू अपने परिवार को आसपास ना देख कर बहुत रो रहा था।
बहुत देर तक अकेला वही डोलता रहा और रोता रहा। लोग आते जाते रहे उसे देखते रहे। फिर किसी ने दया करके पुलिस को समाचार दिया और उसे किशोर गृह में पहुंचा दिया। इतना छोटा बच्चा बताता भी क्या।
आज पूरे 10 महीने हो गए हैं। गोलू हर आहट पर नजर टिकाए रहता है। वह पूरा पूरा दिन कैंची दरवाजे की सलाखों के बीच से झांकता रहता है और जब खड़े-खड़े थक जाता है तब अंदर जाकर एक कोने में रूआंसा सा, गुमसुम, उदास बैठ जाता है और फिर उसे जैसे ही लगता है कि कोई वहां से गुजर रहा है तो वह भाग कर फिर दरवाजे के पास खड़ा हो जाता है। उसे लगता है कि मेरे मम्मी पापा और मेरी दीदी आ गए हैं लेकिन वहां किसी को ना पाकर अपनी छोटी-छोटी आंखों से बहते आंसू लिए हुए वापस अंदर चला जाता है।
वहां के लोगों से रोज पूछता है-“भैया, मम्मी कब आएगी? कभी पूछता-“अंकल जी बताओ ना, पापा कब आएंगे?”
नींद में भी सुबक सुबक कर दूसरे बच्चों से लिपट जाता। सब उसे पुकारते, दुलारते, उसके साथ खेलते। उसे बहला-फुसलाकर किसी न किसी तरह खाना खिलाते। रात को उसे सुलाने के लिए कहानियां सुनाते। उसे झूठी तसल्ली देते की मम्मी पापा कल सुबह जरूर आएंगे। सुबह फिर अपने माता-पिता को ना पाकर और सबके बहाने सुनकर गोलू फूट-फूट कर रोता और फिर दरवाजे पर आंखें गड़ाए खड़ा हो जाता। लेकिन यह कैसा इंतजार है जो खत्म ही नहीं होता।
उधर गोलू के मां बाप ने दो तीन स्टेशनों पर लगातार गाड़ी से उतरने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने उन्हें हर बार अंदर की तरफ धकेल दिया और वे लोग उतर नहीं पाए और जब लड़ झगड़ कर लोगों को धक्के देकर वह उतरे और उसी स्टेशन पर वापस आए ,तब वहां गोलू नहीं था।
लोगों से पूछ पूछ कर थक गए, पर पता नहीं लगा कि गोलू को कौन ले गया। बोझिल मन से स्वयं को दोषी मानते हुए तीनों घर लौट गए। एक-एक दिन सदियों की तरह बीत रहा था और मन में आशा थी कि एक ना एक दिन हमारा गोलू अवश्य मिल जाएगा।
उधर 1 दिन किशोर गृह में एक समाज सेवक आए और गोलू की कहानी सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने गोलू की तस्वीर खींचकर उसे फेसबुक पर डाल दिया और साथ में विनती की कि इस बच्चे की तस्वीर को अधिक से अधिक शेयर करें ताकि यह बच्चा अपने मां-बाप से मिल पाए। आखिर 2 महीने बाद उनकी कोशिश रंग लाई।
आज श्याम का दोस्त रवि भागता हुआ श्याम के पास आया और मोबाइल दिखाते हुए बोला-“यह देख गोलू की तस्वीर, गोलू किसी किशोर गृह में है, जा उसके पास जा ,जल्दी ले आ उसे।”
श्याम के पास तो बटन वाला मोबाइल था। रवि ने उसे पूरा पता लिखकर दिया। पति पत्नी के शरीर में मानो प्राण पड़ गए और पैरों में पंख लग गए। दोनों सुबह-सुबह ही किशोर गृह में पहुंच गए। अभी तो गोलू जागा भी नहीं था और जैसे ही उसकी आंख खुली, उसकी आंखों के सामने उसके मम्मी पापा और दीदी थे।
खुशी से जोरदार चीख मारता हुआ, गोलू मम्मी पापा के पास भागकर गया और उनसे लिपट गया। वे आपस में इस तरह एक दूसरे के गले लग गए थे मानो कई जन्मों से से बिछड़े हुए हो।
जितने भी लोग वहां उपस्थित थे, सब वहां इस अदभुत मिलन को देखकर भावुक हो गए थे और सबकी आंखें खुशी के आंसुओं से भीग गई थी और गोलू उसके बारे में तो पूछिए ही मत, इधर-उधर दौड़ता हुआ सबसे कह रहा था-“देखो भैया, अंकल जी, मेरे मम्मी पापा और दीदी आ गए, मेरे मम्मी पापा और दीदी आ गए।”
और सच तो यही है कि अपने तो अपने होते हैं।
#अपने_तो_अपने_होते_हैं
स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली