इंतज़ार – लखविंदर सिंह संधू

“सर ये शर्मा जी हैं यह आपके साथ ही इस कमरे में बैठेंगे” मेरे दफ्तर का चपड़ासी एक आदमी जिनको वो शर्मा जी कह रहा था के साथ सामने खड़ा था । मैंने पूरे अदब से उनका वेलकम किया ।

“आप तो कल आने वाले थे मैंने आपके ऑर्डर देखे थे ” मैंने शर्मा जी से कहा । शर्मा जी बहुत ही उदास आदमी थे । उनका चेहरा उतरा हुआ था ।

“जी आना तो कल ही था लेकिन मैं लेट हो गया फिर मैंने साहब से फोन पर बात कर ली थी। वे कहते कल आ जाना” शर्मा जी ने जवाब दिया ।

“ये आप की सीट है शर्मा जी” मैंने कुर्सी मेज की ओर इशारा करते हुए कहा । वह अपनी सीट पर बैठ गए । वो बिल्कुल चुप थे । उदास और उत्तरा हुआ चेहरा था उनका । मैंने कई बार उनसे बात करने की कोशिश की पर उन्होंने ज़्यादा बात न की ।

इस तरह दो दिन निकल गये । तीसरे दिन उन्होंने मुझसे मेरी रिहायश के बारे में पूछा । दरअसल उन्हें रहने के लिए किराए का घर चाहिए था । मैं भी अपने ऑफिस के पास ही रहता था । मैंने उन्हें बताया पासवाली बिल्डिंग में एक फ्लैट किराए के लिए खाली है । मैंने उस आदमी का फ़ोन नंबर शर्मा जी को दे दिया। कई दिन हमारी फिर बात न हो पाई क्यूंकि  ऑफिस मे काम बहुत था। एक दिन जब मैंने घर के बारे में पूछा तो उन्होंने

बताया वो घर उन्होंने कराये पर ले लिया है और उन्होंने समान वी रख लिया।  मेैने उन्ने वघाई दी और कहा के मेै उनका पडोसी हुं। उसके बाद मैंने कई बार शर्मा जी से बात करने की कोशिश की पर वह सिर्फ काम की बात ही करते थे। वो सारा दिन चुप्पी धारे रहते थे। मुझको उनकी यह उदासी अच्छी नहीं लगती थी । पर मैं कर भी क्या सकता था वो कोई बात तो करते नहीं थे ।



         एक दिन अचानक मुझे छुट्टी करनी पड़ गई ।पर मेरी अलमारी में कुछ बहुत ही जरूरी फाइलें पड़ी थी। जो आज ही चाहिये थी और चाबी मेरे पास थी । अचानक मुझे शर्मा जी का ध्यान आया । मैं चाबियां लेकर शर्मा जी के फ्लैट में पहुंच गया ।

जैसे ही मैंने डोरबेल बजाई शर्मा जी ने दरवाजा खोला ।मुझे सामने देकर वो बहुत हैरान हुए । मैंने उन्हें अपने आने का कारण बताया और मैं जल्दी से शर्मा जी के फ्लैट में घुस गया । दरअसल शर्मा जी मुझे बाहर से ही भेजना चाहते थे और मैं शर्मा जी के परिवार से मिलना चाहता था । बेबस शर्मा जी भी मेरे पीछे पीछे ड्राइंगरूम में आ गए । घर बहुत बढ़िया सजाया हुआ था ।सामने ड्राइंगरूम में दीवान पर एक औरत नीले रंग का स्वेटर बुन रहे थी ।मैंने उन्हें नमस्ते की।

शर्मा जी ने हमारी जान पहचान कराई । “ये मेरी पत्नी है ” उन्होंने मुझसे कहा “ये सरदारजी मेरे ऑफ़िस के कुलीग हैं” उन्होंने अपनी पत्नी को बताया । शर्मा जी के न चाहते हुए भी मैं सोफे पर बैठ गया। शर्मा जी ने ऊपर ले मन से मुझे चाय पूछी तो मैंने झट से हां कर दी। शर्मा जी खुद ही रसोई में चाय बनाने चले गए । जिस दीवान पर बैठ कर शर्मा जी की पत्नी स्वेटर बुन रही थी उसी दीवार के ऊपर एक नौजवान फौजी अफसर की फोटो लगी हुई थी ।मैं उस फोटो को बड़े ध्यान से देखने लगा । जब उनकी पत्नी ने मुझे फ़ोटो ध्यान से देखते हुए देखा तो बोली

“सरदारजी यह हमारा बेटा है आकाश आर्मी में कैप्टन है । श्रीनगर में पोस्टिंग है । डेढ़ साल पहले छुट्टी आया था पर शर्मा जी ने पता नहीं क्या कह दिया उसको उसके बाद वह बेचारा छुट्टी भी नहीं आया। मगर मेरे साथ रोज फोन पे बातें करता अपने पापा से बात नहीं करता वो ।श्रीनगर में बहुत ठंड होती है ना भाई साहब इसीलिए मैं यह स्वेटर उसके लिए बुन रही हूं। पर मुझे पता है शर्मा जी ने उसको भेजना नहीं”

“प्लीज भाई साहब आप भेज देंगे इसे मेरे बेटे को”

शर्मा जी की पत्नी ने मुझसे कहा

मैंने कहा “हां हां भाभीजी ज़रूर क्यों नहीं मेेै भेज दूंगा इसे आपके बेटे को “

इतने में शर्मा जी चाय लेकर आ गए। मैंने चाय पी और वापस आ गया। मैं सारा रास्ता यही सोचता रहा शर्मा जी कैसे आदमी है एक बेटा है उससे भी नहीं बनती। मैंने मन ही मन में शर्मा जी के लिए बहुत बुरा भला सोचा। इसके बाद दफ्तर में मैंने कई बार शर्मा जी से उनके बेटे के बारे में पूछा तो वो हर बार बात टाल देते। फिर मैंने भी पूछना छोड़ दिया । कुछ दिन बाद जब सुबह शर्मा जी ऑफिस आए तो उनके हाथ में वहीं नीले रंग का स्वेटर था जो एक लिफाफे में था।  मैंने कहा “शर्मा जी इसे आज ही भेज देना कश्मीर में तो अभी से ठंड  पड़ना शुरू हो गई होगी”


“हा जी क्यों नहीं शाम को भेज दूंगा” शर्मा जी ने कहा।देखते देखते दो महीने निकल गए । एक दिन अचानक मुझे शर्मा जी की अलमारी खोलने की ज़रुरत पड़ी। मेरी हैरानगी की हद न रही जब मैंने वो नीले रंग के स्वेटर वाला लिफाफा वहीं पड़ा देखा। मुझे बहुत गुस्सा आया।

” शर्मा जी आपने अभी तक ये स्वेटर भेजी नही बेटे को” मैंने हैरान होकर पूछा ।

“तो भाभी जी ठीक ही कह रहे थे । आप ये स्वेटर भेजोगे नहीं बेटे को” मैंने गुस्से से शर्मा जी को कहा । शर्मा जी कुछ नहीं बोले और कुर्सी पर बैठे रहे।

“जवान बेटे से इतनी भी क्या लड़ाई शर्मा जी हद कर दी आप ने तो । मैं समझ सकता हूं बच्चे ने कुछ कह दिया होगा पर वो है तो बचा ही । हम बढ़े हैं हमें तो सोचना चाहिए ना”

मैं शर्मा जी को भाषण दिया जा रहा था । पर शर्मा जी चुप चाप कुर्सी पर बैठे थे। मैं वो स्वेटर वाला लिफाफा अलमारी से निकालते हुए शर्मा जी से बोला

“लाइए मुझे दीजिये बेटे का पता में करवाता हूं इसे कोरिया आज ही”

“किसका पता सरदार साहब” शर्मा जी ने धीमी आवाज में कहा

“आपके बेटे आकाश का और किसका” मैं गुस्से में बोल रहा था

“सरदार जी पता जिंदा लोगों का होता है मुर्दों का नहीं”

“मतलब”

“सरदार साहब मेरे बेटे को शहीद हुए डेढ़ साल हो गया” शर्म जी रो रहे थे

“क्या” !!!  मैं ज़ोर से चलाया

“हां सरदार साहब जब पिछली बार वो छुट्टी ख़त्म होते ही वापस गया। तो उन्हें एक आतंकवादी के छिपे होने की खबर मिली । दोनों तरफ से गोली चली एक गोली मेरे बेटे आकाश के सिर में लगी और वह शहीद हो गया”  शर्मा जी रो रो कर सारी कहानी बता रहे थे। मेरी आंखों से भी आंसू टपक रहे थे। 

“जैसे ही हमें खबर मिली मेरी पत्नी सुनते ही बेहोश हो गई । फिर वो कोमा में चली गई दो महीने कोमा में रही ।

वह एक ऐसी बदनसीब मां है जो अपने बच्चे की आख़िरी क्रियाकर्म में भी शामिल नहीं हो सकी”

“होश आने पर वो यही समझ रही है कि उसका बेटा आकाश अभी जिंदा है। और मेरी लड़ाई की वजह से वह घर नहीं आता”

“शर्मा जी भाभी जी तो कहती थी कि वो हर रोज आकाश सेे टेलीफोन पर बात बात करती है” मैंने बड़ी हैरानी से पूछा

“हां सरदार साहब वह कई कई घंटे आकाश से फोन पर बात करती हैं।वह उसे खाने पीने के बारे में कहती है। उससे उसकी शादी की बातें करती है। मेरी बुराइयां करती है । और पता नए उस से क्या क्या बातें करती हैं”

“पर ये कैसे शर्मा जी”  मैं बहुत हैरान था।

“मेरा फोन डेैेड है सरदार जी” कहते कहते शर्मा जी फिर रोने लगे।वो काफी देर रोते रहे जब उनका मन हल्का हो गया तो मैंने कहा

“शर्मा जी आप भाभी जी का इलाज क्यों नहीं करवाते ?”

“नहीं सरदार साहब । वो यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाएगी । वह अभी भी अपने बेटे का वापस आने का इंतजार कर रही है। मैं नहीं चाहता कि उसका यह इंतज़ार ख़त्म हो” कहते हुए शर्मा जी फिर रोने लगे ।

लखविंदर सिंह संधू

2 thoughts on “इंतज़ार – लखविंदर सिंह संधू”

  1. शर्माजी अपने दुःख को किसी से बांट भी नहीं सकते। घूम फिर कर पत्नी तक ये सचाई पहुंच जाये तो वह सहन नहीं कर पाएगी।
    बेहद हृदय विदारक घटना है।
    साधुवाद।

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