हमारी बहू – मीनाक्षी शर्मा : Moral Stories in Hindi

मेघा अभी 8 महीने पहले ही हमारे घर में ब्याह कर आई थी… गोरा रंग ,तीखे नैन नक्श ,बहुत सुंदर रूप… घर में उसकी पायल की आवाज से मानो चार चांद लग गए हो… मां से तो ऐसे घुल मिल गई थी ,जैसे वह उनकी बहू नहीं बेटी हो… मां की ओर से भी उसको प्यार देने में कोई कमी नहीं थी… …

पिताजी के जाने के बाद मैं ,मां और शालू बहुत अकेले हो गए थे… काम के सिलसिले में कई बार मुझे दूसरे शहर जाना पड़ता था और देरी हो जाने की वजह से वहीं रुक जाना पड़ता था… मां और शालू घर पर अकेली होती थी… शालू भी अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर रही थी…

उसका भी आखरी साल था… जीवनसाथी का मतलब मैं भलीभांति जानता था… परंतु अपने आसपास के माहौल से भी अच्छी तरह से वाकिफ था… घरों को टूटता हुआ देखकर मन बहुत आश्चर्य चकित होता था… क्या बहू के आ जाने के बाद ही झगड़ा शुरू हो जाते हैं ???

पहले तो सब ठीक होता है… सब प्रेम से मिलजुल कर रहते हैं …किसी में कोई झगड़ा नहीं होता …घर में कोई तनाव नहीं होता… इसका मतलब शादी नहीं करनी चाहिए???… अक्सर यह सब बातें मेरे दिमाग में दौड़ती रहती …कुछ समय तो मैं ,मां को टलता रहा…

फिर एक दिन मां ने मुझे पूछ लिया… बेटा अगर तुम्हें कोई लड़की पसंद हो तो बता दो ….मैं यूं ही चिंता करती रहती हूं…. तुम्हारे लिए रिश्ते ढूंढते रहती हूं और तुम हर रिश्ते के लिए मना कर देते हो… लड़की वालों से मिले बगैर ही तुम लड़की को ना कर देते हो….

मैंने बहुत आदर भाव से जवाब दिया कि नहीं… मेरे जीवन में कोई लड़की नहीं है…वास्तविकता तो यह है कि मेरा शादी पर से विश्वास उठ चुका है… मैं बाहर समाज में देखता हूं कि लोग पहले इतनी धूमधाम के साथ शादी करते हैं और कुछ ही महीने बाद खुद ही अपना जुलूस निकाल रहे होते हैं ..

.कमी कहां हो जाती है, कुछ समझ नहीं पाता हूं …गलती किसकी होती है ,इसका अंदाजा भी नहीं लगता… दूसरे घर से आई हुई लड़की ही, सब झगड़े की वजह होती है ,यह भी पक्का नहीं कहा जा सकता… परंतु यह सब देखकर मन तो यही कहता है कि शादी नहीं करनी है …

क्योंकि मुझे ऐसी बातें उछलती हुई अच्छी नहीं लगती… जिस तरह से आज मैं लोगों के घरों की बातें बाहर समाज में उछलती हुई देखता हूं, उनके झगड़े घरों के बाहर चौराहों पर लोगों के समय गुजारने का कारण बन चुके हैं…

तो मैं नहीं चाहता कि मेरी बातें भी लोगों के बीच में, मेरा तमाशा बनाने का कारण बने… यह सब सुनकर मां ने मुस्कुरा दिया …अरे पगले ऐसा कुछ नहीं है …तुमने तो अपने मन में बहुत डर पाल रखा है …अगर सब तुम्हारी तरह सोचेंगे, तो समाज तो यहीं रुक ही जाएगा …

घरों में झगड़े की वजह, दूसरे घर से आई हुई लड़की ही हो ,ऐसा जरूरी नहीं है …कई बार घर के बड़ों द्वारा की गई बच्चों जैसी हरकतें भी घरों का माहौल खराब कर देती है… जो लड़की दूसरे घर से ब्याह कर नए घर आती है ,उसे नए घर के माहौल में ढलने में समय लगता है …

उसे तो नए लोग , नया वातावरण ,नई सोच को समझने में समय लगता  है…. बचपन से वह जहां पर रही है, वहां कुछ और माहौल होता है …जब हम एक पौधा जमीन में लगाते हैं तो ,उसकी शुरू-शुरू में बहुत देखभाल करनी पड़ती है …नई जगह पर लगने से वह सुख न जाए,

इस वजह से उसे धूप से बचाते हैं… उसे समय पर पानी देते हैं …इतना भी ध्यान रखते हैं कि जहां पर हमने उसे लगाया है वहां जमीन में कंकर पत्थर तो नहीं है ???क्योंकि जमीन में कंकर पत्थर होंगे तो पौधे की जड़े अच्छे से नहीं पनप पाएंगी …इस प्रकार से जब हम अपने घर में नए मेंबर को लेकर आते हैं

तो ,शुरू-शुरू में हमें समय देना पड़ता है.. बहू के आते ही यदि हम यह उम्मीद कर लें कि हमारा पूरा घर वह अकेली लड़की संभाल ले ,जबकि उसके आने से पहले हम सब मिलकर उस घर को संभाल रहे थे ..तो फिर वह लड़की कैसे रह पाएगी ???हम सब की बराबर की जिम्मेदारी बनती है

कि हम घर से आई हुई बहु को हमारे घर में घुलने मिलने का सही वातावरण प्रदान करें…  हम घर में एक बहू ब्याह कर लाते हैं… ना कि किसी दफ्तर में कर्मचारी को नौकरी पर रखते है… जो कि आते ही वह अपनी जिम्मेदारियां संभाल ले …

वही दूसरी तरफ घर की नई बहू को भी अपनी मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए, उस घर के माहौल को समझना पड़ता है …तो यह दोनों तरफ से बराबर की जिम्मेदारी बनती है ,कि जिस रिश्ते को इतनी खुशी के साथ जोड़ा गया है ..उसे पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाया जाए…

परंतु पुरी की पूरी समझदारी की उम्मीद सिर्फ बहू से की जाए ,ऐसा भी जरूरी नहीं है… क्योंकि गलत बात को सहने वाला भी गलत ही होता है… इसलिए घर में सुख शांति की जिम्मेदारी केवल बहू की नहीं होती …पति की अपनी जिम्मेदारियां होती हैं …सास ससुर की अपनी जिम्मेदारियां होती हैं …

तो यह सब तालमेल का ही खेल है …तालमेल न बैठे तो फिर तमाशा तो बनेगा ही ..मां की यह बातें सुनकर मेरे मन में चल रही दुविधाओं का जवाब मुझे काफी हद तक मिल चुका था …उसके बाद मैंने अपनी शादी का फैसला मां पर ही छोड़ दिया …

मां ने मेरे लिए अच्छी सी लड़की पसंद की… जो पढ़ी-लिखी भी थी और घर के कामकाज भी जानती थी और सबसे अच्छी बात मेरे से तो कहीं ज्यादा सुंदर थी …कई बार तो यह सोचता था कि इस लड़की ने मुझे पसंद कैसे कर लिया??? मैं तो सांवले रंग वाला ,साधारण सी नौकरी करने वाला

,साधारण से घर में रहने वाला हूं …2 महीने बाद मेरी शादी हो गई और मेरी प्यारी सी दुल्हन मेरे घर आ गई…. आज 8 महीने हो गए हैं …उन पुरानी बातों को सोचता हूं तो मुस्कुरा देता हूं …मैं यूं ही इतना डर रहा था… सुनी सुनाई बात पर विश्वास कर रहा था …

बात घर में कुछ होती है और चौराहे पर पहुंचते – पहुंचते कुछ की कुछ बन जाती है… सच कहूं तो मां ने घर का वातावरण स्वस्थ रखने में बहुत समझदारी दिखाई है …मेघा, मां की बहुत इज्जत करती है …अक्सर लड़कों को कहना पड़ता है अपनी पत्नी से कि तुम मेरे माता-पिता की इज्जत करो ..

.परंतु मैंने कभी मेघा से नहीं कहा… मेघा स्कूल में पढ़ाने भी जाती है …घर के काम में भी हाथ बटाती है और मां भी घर को वैसे ही संभालती है, जैसा मेघा के आने से पहले संभालती थी …कभी-कभी सोचता हूं कि यदि मां ने भी सारी जिम्मेदारी मेघा पर डाल दी होती तो

, वह नौकरी के साथ-साथ घर का सारा काम नहीं कर पाती… आखिर वह भी तो एक इंसान है… मां, मेघा के साथ वैसा ही व्यवहार करती है ,जैसा मेरी बहन शालू के साथ… शालू को सुबह कॉलेज जाते वक्त मां अपने हाथों से नाश्ता बना कर पहले भी देती थी ,आज भी देती है …

साथ में मेघा का नाश्ता भी बना देती है …मेघा अक्सर मां को मना करती है ,लेकिन मां कहती है कि अगर मैं शालू को बना कर दे सकती हूं तो, तुम भी तो मेरी बेटी हो… दो रोटी ज्यादा बना लूंगी तो इतना नहीं थक जाऊंगी …मेघा भी मां के इस प्यार का पूरा आदर करती है …

स्कूल से आने के बाद कुछ समय आराम करके ,घर का काम मेघा संभाल लेती है …बस यूं ही हमारी गृहस्ती हस्ती खेलती हुई ,खिलखिलाती हुई चल रही है… यदि सभी घरों में ऐसा तालमेल बैठ जाए तो ,रिश्तो के टूटने का दर्द लोगों को न सहना पड़े….

मीनाक्षी शर्मा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!