हमारे लिए दुल्हन ही दहेज़ है – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

विवाह का दिन था। एक दिन पहले से ही घर के हर कोने में सजावट और रोशनी की चकाचौंध थी। प्रिया का घर एक सपने जैसा लग रहा था, जैसे किसी उत्सव की तैयारियों में पूरी रौनक जुटाई गई हो। सभी रिश्तेदार, दोस्त, और आसपास के लोग इस खास मौके का गवाह बनने के लिए पहुंचे थे। सबका चेहरा खुशी से खिला हुआ था, और प्रिया के घरवालों की आँखों में गर्व और संतोष का भाव झलक रहा था। आखिरकार, आज उनकी लाडली प्रिया की शादी का दिन था। सब कुछ प्रिया के सपनों के जैसा ही हो रहा था, बस उसके घरवालों की खुशी ही उसे सबसे अधिक संतोष दे रही थी।

मंडप में सजावट पूरी तरह तैयार हो चुकी थी। हर कोई विवाह के शुभ मुहूर्त का इंतजार कर रहा था। मेहमानों का आना जारी था, और मंडप में धीरे-धीरे भीड़ बढ़ती जा रही थी। दूल्हा भी अपने परिवार के साथ बारात लेकर पहुँच चुका था, और सभी को लगा कि कुछ ही देर में शुभ कार्य शुरू हो जाएगा। लेकिन जैसे ही फेरों का वक्त करीब आया, कुछ लोगों की अनुपस्थिति का एहसास हुआ। खासकर दूल्हे के पिता और कुछ अन्य पुरुष सदस्य वहां से गायब थे, और दूल्हे के परिवार में भी हलचल दिखाई देने लगी। यह देखकर दुल्हन के परिवार वालों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं।

प्रिया, जो अपने कमरे में अकेले बैठी थी, उसे भी इस बात का आभास हुआ कि सबकुछ ठीक नहीं है। उत्साह से भरी प्रिया, जो जीवन का नया सफर शुरू करने के लिए तैयार थी, अपने मन में अनजानी आशंकाओं से घिर गई। उसने अपनी माँ को ढूंढने का निर्णय किया, और पल्लू ठीक करते हुए, धीरे-धीरे जनवासे की ओर बढ़ने लगी। जैसे ही वह जनवासे के नजदीक पहुंची, उसने अपने ससुर और पिता की आवाज सुनी। दरवाजे के पास पहुँचकर उसने जो सुना, उससे उसकी आँखें भर आईं और दिल बैठ गया।

उसके ससुर कह रहे थे, “समधीजी, देखिए, शादी तो हो जाएगी, लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आपकी बेटी हमारे घर में सुख-शांति से रहे, तो आपको पांच लाख रुपये और देने होंगे। हमारी प्रतिष्ठा का सवाल है। हमें भी समाज में एक ऊँचे दर्जे पर रहना है, और इसके लिए हमें यह राशि चाहिए।”

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प्रिया के पिता, जिनके चेहरे पर पहले से ही चिंता के भाव थे, ने दुखी स्वर में कहा, “भाईसाहब, मैंने पहले ही अपनी हैसियत से ज्यादा किया है। प्रिया हमारी इकलौती बेटी है और उसकी शादी को खास बनाने के लिए मैंने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन ये रकम मेरी क्षमताओं से बाहर है। मुझे थोड़ा वक्त दीजिए, मैं प्रबंध कर सकता हूँ। लेकिन कृपया आज के दिन कोई मुश्किल न खड़ी करें।”

प्रिया के लिए यह सुनना असहनीय था। उसने देखा कि उसके पिता, जिन्होंने उम्रभर अपने परिवार के लिए मेहनत की, अपनी बेटी की शादी के दिन लाचार खड़े थे। वह सोचने लगी कि जिस घर में उसे जीवनभर रहना है, वह परिवार उसकी इज्जत की बजाय पैसों की अहमियत को इतना महत्व दे रहा है। दिल टूटने के साथ ही प्रिया के अंदर एक साहस भी जाग गया। उसके लिए यह शादी सिर्फ रस्म नहीं थी, यह उसकी आत्मा, इज्जत, और उसके परिवार का गर्व था। वह अपने पिता की लाचारी को देखते हुए और आगे बढ़ने का निश्चय किया।

प्रिया साहस जुटाकर उस कमरे में चली गई और दृढ़ स्वर में बोली, “पिताजी, आप इनकी बातों में आने की ज़रूरत नहीं है। अगर इन्हें हमसे पैसों की मांग करनी है, तो मुझे इस शादी में कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे अपनी इज्जत और सम्मान प्रिय है। मैं ऐसे लालची लोगों के घर में जाने के लिए तैयार नहीं हूँ।”

सभी लोग उसकी इस बात पर चौंक गए। वहां मौजूद लोगों की नजरें उसके साहसी निर्णय पर टिक गईं। प्रिया के पिता ने उसे समझाने का प्रयास किया, लेकिन प्रिया के संकल्प को देखकर वे समझ गए कि उनकी बेटी का निर्णय बदलने वाला नहीं है। प्रिया ने आगे कहा, “अगर ये लोग शादी के इस मुकाम पर आकर पैसों की मांग कर रहे हैं, तो भविष्य में ये मेरी और मेरे परिवार की इज्जत का ख्याल कैसे रखेंगे?”

उसके दृढ़ निश्चय को देखते हुए ससुराल पक्ष के लोगों ने उसे मनाने की कोशिश की, लेकिन प्रिया ने बिना डरे आगे कहा, “यह कोई मोलभाव नहीं है। यह मेरे और मेरे परिवार की इज्जत का मामला है। पिताजी, मैं समझौता करने के लिए तैयार नहीं हूँ।” उसने अपना फोन निकाला और दूल्हे के पिता की ओर देखते हुए कहा, “अंकल, आपकी बातें रिकॉर्ड हो चुकी हैं। सोच लीजिए कि आपको इस शादी को निभाना है या पुलिस का सामना करना है।”

दूल्हे के पिता का चेहरा अचानक फीका पड़ गया। अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए वह तुरंत अपनी बातों से पलट गए और बोले, “अरे, बेटी तुम तो बुरा मान गई। हमें तो कुछ नहीं चाहिए। हमारे लिए तो दुल्हन ही हमारा दहेज है। चलिए समधीजी, बेटी का कन्यादान कीजिए।”

प्रिया के पिता भी अब मजबूती से खड़े हो गए। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “नहीं, ऐसे लोगों को मेरी बेटी के जीवन का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। मैं अपनी बेटी को ऐसे लोगों के हवाले नहीं करूंगा, जो उसकी और हमारे मान-सम्मान की परवाह नहीं करते। आज मुझे अपनी बेटी पर गर्व है कि उसने सही निर्णय लिया।” प्रिया और उसका परिवार वहाँ से उठकर चले गए, और दूल्हे के परिवार की योजना पर पानी फिर गया। मंडप में बैठे मेहमानों ने प्रिया के इस साहसी निर्णय की सराहना की, और कई लोगों ने उसकी हिम्मत को सराहा।

प्रिया ने उस दिन साबित कर दिया कि शादी सिर्फ एक पारंपरिक अनुष्ठान नहीं है; यह आत्म-सम्मान, स्वाभिमान और विश्वास का बंधन भी है। उस दिन के बाद, हर कोई उसे एक मिसाल मानने लगा, और उसकी कहानी लोगों के दिलों में एक प्रेरणा बन गई।

मूल रचना 

संगीता अग्रवाल

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