समधिन जी , आप क्यों इतना रो रही है? जब चाहें बुला लिया करना मानवी को या खुद चली आया करना , दूर ही कितना है , एक- डेढ़ घंटा बस ……देखना , कैसे बेटी बनाकर रखेंगे हम ।
मानवी के कानों में अक्सर विदाई के समय कहे गए अपनी सास अंजू के स्वर गूँजते थे । जैसे कल की ही बात हो जब मानवी इस घर में ब्याह कर आई थी । सासू माँ ने हनीमून से लौटते ही अपने बेटे से कह दिया—-
देख आशू , मानवी को अपने साथ लेकर जाने की बात मत करना । जिस तरह अब तक हर शुक्रवार को आता है और सोमवार की सुबह जाता है उसी तरह से करना । पूरे सात साल हो चुके अंशी की शादी को तब से बाट देख रही थी मैं तो मानवी की ।
हाँ.. हाँ मम्मी, वैसा ही रहेगा । मानवी खुद आपके साथ ही रहना चाहती है ।
शुरू- शुरू में अंजू ने अपना ऐसा प्रभाव डाला कि मानवी को लगा उसकी सास बेहद सुलझे विचारों की आधुनिक औरत है । पर जब शादी के दो हफ़्ते के बाद ही , एक दिन वह हर रोज़ की तरह नाश्ते के कार्य से निपटकर अपनी मम्मी को फ़ोन करने वाली थी तो सास बोली —-
मम्मी को फ़ोन करने जा रही हो ना ? कहीं भी रोज़ फ़ोन करने से महत्व कम हो जाता है मानवी ।
मानवी को थोड़ा अटपटा सा लगा । अपनी मम्मी के साथ बात करके कैसा महत्व कम हो जाएगा और अपना घर कहीं कैसे हो गया ? वह समझ गई कि सास माँ को फ़ोन न करने की ओर इशारा कर रही है । मानवी ने कोई प्रतिक्रिया न देते हुए हाथ में लिया फ़ोन एक तरफ़ रख दिया और बोली—-
मम्मी जी , कल हम दोनों मम्मी के पास जाने की सोच रहे हैं, परसों आ जाएँगे …..
इतनी जल्दी ? अभी समय ही कितना हुआ है तुम्हारी शादी को ?
मम्मी जी , रिशेपसन के अगले दिन हम लोग घूमने चले गए थे तब से यहीं हूँ । पग फेरे की रस्म भी शादी के दिन ही करवा दी थी…..
अब तुमने प्रोग्राम बना ही रखा है तो चले जाओ पर मानवी , आगे से मेरे पूछे बिना कोई प्रोग्राम मत बनाना । मैं तो कब से इस घर में तुम्हारे आने की बाट देख रही थी ।
जी । मानवी को समझ नहीं आया कि उसके ऊपर खुद फ़ैसले न लेने का बंधन भी लगा दिया और बाट देखने का वाक्य बोलकर प्रेम भी दर्शा दिया ।
अगले दिन मानवी अपने पति आशीष के साथ अपने मायके चली तो गई पर सास ने फ़ोन कर करके ऐसी चिंता प्रकट करी कि मानो कोई छोटा बच्चा पहली बार घर से बाहर निकला हो।
—- मानवी बेटा , मीठा खाकर बाहर मत निकलना , तुम्हें याद तो है ना कि आशू मसालेदार खाना नहीं खाता , मानवी ! सुबह जल्दी निकलने की कोशिश करना वो आशू के पूरे हफ़्ते के कपड़े और इस्त्री करनी है ……
मायके आकर मानवी ने अपने मम्मी-पापा और बहन से कम , सास से फ़ोन पर ज़्यादा बातें की । हद तो तब हो गई जब रात के भोजन के बाद सास ने मानवी की मम्मी को फ़ोन करके कहा—- घर में सन्नाटा पड़ा है बच्चों के बिना । सुबह थोड़ा जल्दी भेज देना बहनजी । अंशी से भी ज़्यादा प्यार हो गया हमें तो मानवी से …. सो गए क्या बच्चे ? हाँ, वैसे टाइम से सोने के लिए बोल देना , कभी सुबह आँख ही ना खुले ।
जी , आप चिंता मत कीजिए ।
मानवी ! मैं खुश हूँ कि तेरी सास तुझे , मुझसे भी ज़्यादा प्यार करने लगी है । जब एक महीने में ही उन्हें तुझसे इतना लगाव हो गया तो मुझे लगता है कि हमें ही तेरे पास मिलने आना पड़ेगा ।
अगले दिन सुबह सात बजते ही मानवी का फ़ोन बज उठा—-
बेटा, उठे नहीं अभी ? कब निकलोगे……
मानवी , यार सुबह- सुबह किसका फ़ोन है, सारी नींद ….. संडे को तो सोने दो
हाँ- हाँ मम्मी जी , ये आशू सो रहे हैं, मैं बाद में फ़ोन करती हूँ…
मम्मी, हमारे लिए बस टोस्ट सेंक दें , निकलते हैं, नहीं तो फिर मम्मी जी का फ़ोन आ जाएगा ।
दीदी, ये तेरी सास कुछ सनकी सी औरत नहीं है ? जीजू तो पूरा हफ़्ता नोएडा रहते हैं…. तुम्हें गए मुश्किल से महीना हुआ है । ये जो चिंता और प्यार दिखाया जा रहा है, मुझे तो नौटंकी लग रही है । अरे , इतना लगाव तो कभी हमारी सगी माँ ने नहीं दिखाया……
शी…शी…. शी…. आशू , आप उठ गए, चलिए, नाश्ता करके निकलते हैं ।
पूरे रास्ते मानवी को यही मलाल रहा कि क्यों गई मायके ? इससे ज़्यादा बातें तो वह फ़ोन पर कर लेती ।आते समय मम्मी- पापा और महक के चेहरों से साफ़ ज़ाहिर था कि वे ठीक से बात तो क्या , देख भी नहीं पाए हैं उसे ।
गाड़ी की आवाज़ सुनते ही सास बाहर आई और बोली—-
शुक्र है, आ गए । सुबह से ऐसे हाथ पैरों की जान सी निकली पड़ी कि नाश्ता भी नहीं बनाया गया…..चलो अब खाना तो ढंग का मिलेगा । और ये क्या मानवी , समधिन जी ने तुम्हें सूट पहनकर आने दिया …. शादी के बाद पहली बार मायके गई थी तो नई बहू को साड़ी पहनानी चाहिए थी । बेटा , देखो हमारे लिए तो तुम बिलकुल अंशी जैसी हो पर ये तो तुम्हारी मम्मी को सोचना चाहिए था ।
मानवी का दिल तो किया कि पूछे , इन डबल-डबल अर्थों वाले शब्दों और वाक्यों को कहने का क्या तात्पर्य है पर आशीष ने इशारे से उसे चुप रहने को कह दिया ।
अंदर आते ही मानवी ने दोपहर का खाना बनाया , हाँ उस दिन आशू ने उसकी मदद की जो कि सास को पसंद नहीं आई और उन्होंने सुनाते हुए कहा —-
भई , मुझे तो बड़ा अच्छा लगा कि आशू ने मानवी की सहायता की । पति- पत्नी को मिलकर काम करना चाहिए । तुम्हारे पापा हँस रहे थे कि शादी होते ही आशू ने भी रसोई में जाना सीख लिया । वैसे अंशी तो वकील साहब के बिना रसोई में कदम भी नहीं रखती पर , भाई ! वे तो दोनों कमाते हैं । वैसे मानवी , चार जनों का खाना बनाने में ज़्यादा समय तो लगता नहीं, आशू को तो सुबह फिर नोएडा जाना है , ये खुद सोचने की बात होती है ।
सास की बातों से मानवी का मन इतना आहत हुआ कि बिना खाना खाए, वह आशीष के कपड़े धोने और रसोई समेटने में लग गई । मम्मी और महक का फ़ोन आ रहा था क्योंकि वापस लौटने का मैसेज तक देने की फ़ुरसत नहीं मिली । चिढ़ कर उसने स्वीच ऑफ कर दिया । आशीष कहता रहा ——
मानवी ! चलो पहले खाना खा लो …सॉरी यार , वो मम्मी ने कह दिया कि बैठ जाओ खाने पर , मानवी भी आ जाएगी ।
पर वह बिना जवाब दिए , काम में लगी रही । सास- ससुर तो खाना खा कर अपने कमरे में जा चुके थे ।
तभी सास की आवाज़ आई——-
मानवी , तुमने घर पहुँच कर फ़ोन भी नहीं किया मम्मी- पापा को ? वे चिंता कर रहे हैं, तुम्हारा फ़ोन स्विच ऑफ कैसे हो गया ? बैटरी चार्ज नहीं की होगी, ले मम्मी से बात कर ….. ये आजकल के बच्चे भी ना ….. अरे , आप चिंता ना किया करें , बहू नहीं, बेटी है मानवी हमारी , चलिए रखती हूँ ।
मानवी मुँह ताकती रह गई कि सास कब उसके हाथ में फ़ोन थमाएँगी ।
एक दिन अंजू की पड़ोसन मानवी को मुँह दिखाई का सगुन देने आई क्योंकि जब उनकी शादी हुई थी वे अपनी बेटी के पास मुंबई गई हुई थी । मानवी ने उनके पैर छुए और चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई ।
—- अंजू , बहू तो तुम्हें बहुत अच्छी मिल गई । विभा बता रही थी कि बड़ी सीधी और संस्कारी है वरना आजकल की लड़कियाँ दूर से ही नमस्ते करके बराबर में बैठ जाती हैं, पैर छूना तो इनके लिए ओल्ड फ़ैशन है , क़िस्मत वाली हो भई !
अरे , क्या क़िस्मत वाली ? जो दिखता है वो होता नहीं । बहु को अपने साथ रखना हाथी पालने जैसा है, जो साथ रहता है, असलियत उसे ही पता होती है , क्या-क्या सहना पड़ता है ।
चाय लेकर आती मानवी के कानों में सास की सारी बातें पड़ गई , मन में दुख तो हुआ कि हर बात में, हम तो बेटी मानते हैं, का राग अलापने वाली सास , क्या अपनी बेटी के बारे में इस तरह की उल्टी बातें करती ?
उसने चाय रखी और अंदर जाने लगी —-
बहू , तुम भी हमारे साथ बैठकर चाय पियो , मैं तो तुमसे ही मिलने आई हूँ ।
— हाँ मानवी , बेटा आँटी के पास बैठो । भई , हम तो बहू नहीं, बेटी बनाकर लाएँ है मानवी को , जैसे मर्ज़ी- उठो , बैठो , खाओ- पियो , घूमो- फिरो । अभी कल ही मायके से आई है वरना ससुराल में कैसी- कैसी बंदिशें होती है ।
अब मानवी को सास की सारी बातें अच्छी तरह समझ आ गई थी कि वे उसे कैसी बेटी बनाकर लाई हैं । पर अपनी मम्मी के कहे शब्द उसके पैरों में ज़ंजीर बनकर जकड़े हुए थे ——
मानवी , ससुराल में बेटियों का व्यवहार उसके परिवार का आइना होता है । वे बेटी बनाकर ले जा रहे हैं तो तू भी बेटी बनकर मन में कभी मलाल मत रखना , जैसे मैं डाँट देती हूँ, नई माँ को भी डाँटने का अधिकार होगा ।
मानवी का दिल करता कि चीख चीखकर कहे —-
मैं गलती पर डाँटने से मना नहीं करती पर हर समय की मानसिक यंत्रणा क्यूँ ? क्या बेटी बनने की ज़िम्मेदारी केवल बहू की होती है ?
हद तो उस दिन हो गई जब एक दिन सास की अनुपस्थिति में बुआ सास आ गई——
मानवी , दो दिन पहले ही तो बात हुई भाभी से पर उन्होंने तो कहीं बाहर जाने के बारे में नहीं बताया फिर अचानक मायके कैसे चली गई ? आज यूँ ही दिल कर गया कि चलो इधर घूम जाऊँ । फ़ोन करके भी ना आई मैं तो ?
—- तो कोई बात नहीं बुआ जी , मैं तो हूँ । मम्मी जी का कल शाम अचानक ही प्रोग्राम बन गया । मामाजी की तबीयत थोड़ी ढीली है तो सोचा, चलो मिल आएँ । वो आशू कल नोएडा से आए तो मम्मी जी और पापाजी ने जाने का प्रोग्राम बना लिया , वैसे मम्मी जी दोपहर तक आ जाएँगी । आप बताइए , आपके लिए खाने में क्या बनाऊँ ?
दो घंटे की बातचीत में ही बुआजी मानवी के साथ काफ़ी घुलमिल गई । नाश्ते के बाद बुआ जी बोली ,
— अच्छा मानवी , एक बात कहूँ… बुरा तो ना मानोगी, तुम्हारी मम्मी की एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी ….
मेरी मम्मी की बात ? कौन सी बात बुआ जी …..
—— बेटा , भइया – भाभी ने शादी के नाम पर तो कुछ लिया नहीं, बस रिश्तेदारों का मान रखने की प्रार्थना की थी वो भी ना करी उन्होंने ?
— मेरे मम्मी- पापा ने तो सब कुछ मम्मी जी और पापाजी से पूछ कर किया था , बुआ जी ! कौन सी बात बुरी लगी?
बहू , गिने- चुने रिश्तेदार गए थे सगाई में और बारात में…. एक- एक जोड़ी कपड़े तक ना दिए उपहार में ? बेटा , कपड़ों की कमी नहीं होती किसी के पास , बस उमाह होता है….. फिर बेचारी अंजू ने अपनी तरफ़ से दिए , ये कहकर कि ये तो समधियों के खुद सोचने की बात थी ।
पर मम्मी जी ने ही कहा था कि किसी के लिए आप मत ख़रीदना , पैसे देना । मैं उनके हिसाब से ख़रीद लूँगी… और मम्मी- पापा ने कपड़ों के अलग से एक लाख रूपये दिए थे । और बुआ जी , बाक़ी रहा दूसरा लेना- देना तो उसका पैसा भी मेरे और आशीष के नाम कर दिया था ।
क्या…… और इसने कहा कि एक कत्तर तक ना आई बहनजी….. चल बेटा , सच्चाई तो पता चली । अब मेरा नाम लेकर कुछ मत कहना ….
इतने में बाहर गाड़ी रुकने की आवाज़ आई—-
चरण स्पर्श बहनजी! आप कब आई ? मानवी ! बुआ के आने का फ़ोन भी नहीं किया , कुछ खिलाया- पिलाया या यूँ ही बैठी है ?
बुआ जी ने नाश्ता कर लिया है मम्मी जी ।
मानवी ने चेहरे पर शिकन तक ना आने दी जबकि वह दिल ही दिल में मंथन और चिंतन में फँसी थी । बुआ जी शाम को चली गई और उनके जाते ही अंजू बोली—-
मानवी , क्या- क्या बात कर रही थी बहनजी मेरे आने से पहले? अरे , तुम्हें पता है ज़्यादातर घर लगाई- बुझाई के कारण ही टूटते हैं….. किसी से हज़म नहीं होता कि बहू को बेटी बनाकर रखे कोई…….
पर बुआ जी ने तो ऐसी कोई बात नहीं की मम्मी जी! वे तो आपकी बहुत बड़ाई कर रही थी । मम्मी जी, एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानोगी …. अपनी बेटी को मना तो नहीं कर दोगी?
अरे ! तू तो अंशी से भी बढ़कर है मेरे लिए… ..
मम्मी जी, मैं आशीष के साथ नोएडा ही रहना चाहती हूँ, ठीक वैसे ही जैसे अंशी दीदी रहती हैं, हर हफ़्ते आते रहेंगे…..
पर …. बेटा ! मैं तो कब से तेरे साथ रहने की बाट…..
मैं जानती हूँ मम्मी जी! आप मेरे साथ रहने की बाट देख रही थी पर आपकी बेटी भी अपने पति के साथ रहने की बाट देख रही थी । आशू को कहोगी ना आप कि मुझे साथ ले जाए । वैसे तो ये उनके सोचने की बात थी पर अब सबको तो पति के कर्तव्य याद नहीं रहते , प्लीज़ आप कह देना ।
अंजू मन ही मन इस मुश्किल में फँस गई कि अगर बहनजी ने कुछ नहीं कहा , उल्टे मेरी बड़ाई की तो यहाँ से जाने का कीड़ा मानवी के दिमाग़ में कैसे आया ?
—- ये ज़रूर इसकी माँ का किया धरा है । मैं तो बेटी बनाकर लाई थी, अब तो मानवी के सोचने की बात थी ।कल को अगर ज़बरदस्ती चली गई तो क्या कर लूँगी……
आशू …. आशू ! बेटा , मैं सोच रही हूँ कि फ़्लैट तो तुमने ले ही रखा है, इस बार मानवी को भी साथ ले जाना । अरे , नई-नई शादी हुई है, फिर तो …..
ठीक है मम्मी, जैसी आपकी इच्छा ।
लेखिका : करुणा मलिक
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