हृदयहीन – कमलेश राणा

मम्मी आज कैसी सब्जी बनाई है आपने कितना ज्यादा नमक भर दिया है न बनाने का मन हो तो बता दिया करो हम होटल से मंगा लेंगे। 

हाँ हाँ मंगा लो खुशी से और हाँ मेरे लिए भी मंगा लेना यह नहीं दिखता तुम्हें कि कितनी गर्मी में सुबह से किचन में खड़ी हो कर चार चीजें बनाती हूँ जिससे थाली भरी भरी लगे पर तुम्हें तो रोज कोई न कोई मीन मेख निकालनी ही होती है।

जब अच्छा बनता है तब तो कभी तारीफ के दो शब्द नहीं निकलते पर जिस दिन जरा सी भी कसर रह जाये घंटे भर का लेक्चर जरूर शुरू हो जाता है बाप बेटे का। 

अंशिका के पति चुपचाप सारी बातें सुन रहे थे एक शब्द भी नहीं बोले तो उसे बहुत बुरा लगा.. देख रहे हो अपने लाडले को कैसे बोलता है यह कोई तरीका है माँ से बात करने का।

अरे जो महिला चार घंटे इतनी गर्मी में खाना बनायेगी क्या वह चाहेगी कि स्वाद में कोई कमी रह जाये। वह तो अपनी तरफ से पूरी मेहनत करती ही है अब हो जाता है कभी कुछ कम ज्यादा , हमदर्दी के दो शब्द तो कभी किसी के मुँह से निकलते ही नहीं बस कमियां गिनवा लो। 

अब चुप भी हो जाओ, आजकल देख रहा हूँ तुम्हारी भाषा भी बहुत खराब होती जा रही है। 

मतलब मैं ही गलत हूँ जो वह कह रहा है वह ठीक है, उसकी अपनी माँ के साथ यह भाषा गलत नहीं है यानि तुम उसे शह दे रहे हो।

अगर तुम ही सही गलत में भेद नहीं बताओगे तो वह क्यों मेरा सम्मान करेगा। क्या सम्मान सिर्फ पुरुष की ही बपौती है महिला का कोई मोल नहीं। 

यह कोई नई बात नहीं थी जब से वह कपिल के साथ ब्याह कर आई थी यह सिलसिला तभी से चल रहा था बस किरदार बदल जाते थे कभी उसे खरी – खोटी सुनाने वाली उसकी सास होती थी, कभी ननद, कभी जेठानी तो कभी खुद उसका पति। गलती चाहे किसी की भी दोष अंशिका के सर मढ दिया जाता । 

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कई बार तो इल्जाम भी बड़े ही हास्यास्पद होते… अगर सासू माँ को मन्दिर जाने में देर हो गई तो बहू ने पूजा के बर्तन में पानी नहीं भरकर रखा …

अगर ननद रानी का पेपर खराब हो गया तो भाभी ने नोट्स बनाने में मदद नहीं की और अगर पतिदेव को बॉस से डांट पड़ी तो फिर तो उसकी खैर नहीं। उसकी वजह से वह टेंशन में रहते हैं घर देखें या ऑफिस। 

यह सब सुन- सुनकर वह पक गई है उसकी सहनशक्ति अब जवाब देने लगी है वह नहीं चाहती कि जिन बच्चों को उसने चलना और बोलना सिखाया हो वे भी उसके साथ ऐसा व्यवहार करें। अब वह समझ चुकी है कि अपने सम्मान की रक्षा अब उसे खुद ही करनी होगी कपिल से सारी उम्मीदें खत्म हो गई थी।

कुछ वक्त तक इंसान सुधार का इंतज़ार करता है लेकिन धीरे- धीरे यह आशा जब निराशा में बदलने लगती है तो उसे कठोर फैसले लेने ही पड़ते हैं ताकि वह अपने अंदर के इंसान को जिंदा रख सके। 

अंशिका की आँखों से आँसू झर- झर बहने लगे।आज एक बार फिर कपिल ने अंशिका के दिल के टुकड़े- टुकड़े कर दिये थे और हमेशा की तरह ही न तो उन्हें उसके दर्द का अहसास था और न ही अपने किये का पश्चाताप। 

क्यों होते हैं पुरुष इतने हृदयहीन और निर्मोही? जिसके साथ एक स्त्री अपना सब कुछ छोड़कर इस विश्वास के साथ चली आती है कि अब वह पुरुष ही उसके मान सम्मान का रखवाला है वह आखिर कब इस बात को समझेगा।

केवल खाना, कपड़ा ही जरूरत नहीं है एक मानसिक जरूरत भी है वह है पुरुष के साथ पूर्ण सुरक्षा और सम्मानित जीवन जीने की जिसके होते हुए वह अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर सके। 

#पुरुष

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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