सीमा अपने घर के आंगन में बैठी थी, और पास ही काकी अपने कुछ पुराने किस्से सुनाने में व्यस्त थीं। सीमा का ध्यान हाल ही में घर में आए बदलावों पर था। बहू के आने के बाद से घर में मानो रौनक सी आ गई थी। पहले जहां हर कोना खामोश सा रहता था, अब हर ओर हंसी-ठिठोली की गूंज थी। लेकिन काकी को यह बदलाव कुछ अखरता सा लग रहा था।
“सीमा, तुम्हारी बहू तो बड़ी तेज है। देखो तो, ननदों के साथ कितनी जोर-जोर से हंस रही है।”
काकी ने अपनी आवाज में हल्की सी शिकायत का सुर घोलते हुए कहा।
“मैंने तो कल ही देख लिया था, एक कहो तो दस सुनाती है।”
सीमा मुस्कुराई, मानो काकी की शिकायत उसके दिल तक पहुंच ही नहीं पाई हो। वह जानती थी कि उनकी बातों में अनुभव से अधिक आदतें झलक रही हैं। फिर भी, काकी की शिकायत का उत्तर देना तो बनता ही था।
“अच्छा ही तो है ना, काकी। आजकल सीधे लोगों का जमाना ही कहां है?” सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा।
काकी ने नाखुशी से सिर हिलाया।
“लेकिन फिर भी, इतनी तेज बहू के साथ निभाने में तुम्हें ही मुश्किल होगी। मुंहफट बहुएं कहां किसी से दब कर रहती हैं।”
सीमा ने धीरे से पानी का गिलास उठाया और काकी की ओर बढ़ाते हुए कहा,
“देखा जाएगा, काकी। लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आती… जब हमारी बेटियां तेज होती हैं तो हम गर्व से सर उठाकर उसकी तारीफ करते हैं, तो बहुओं का तेज होना क्यों अखरता है? आखिर ये भी तो किसी की बेटी ही हैं ना।”
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काकी को सीमा की बात चौंकाने वाली लगी। वे थोड़ी असहज हो गईं, लेकिन सीमा ने बात जारी रखी।
“फिर कौन कहता है कि बहुओं को दबाकर रखना चाहिए? जरूरी तो नहीं जो हमारे साथ हुआ, वही हम अपनी बहुओं के साथ भी करें। हमने अपने जीवन मेंं कभी अपने मन की नहीं की। हमेशा दूसरों के बारे में सोचकर खुद का मन मारते रहे। उस बात का पछतावा हमें आज तक है।”
सीमा की आवाज में एक अजीब सा आत्मविश्वास था। वह अपनी बात पूरे दिल से कह रही थी, और काकी उसकी बातों को अनदेखा नहीं कर पा रही थीं।
“काकी, जिस घर में बहुएं हंसती हैं, उस घर में खुशियां बसती हैं। बहू को बेटी की तरह अपनाना उतना ही जरूरी है जितना अपने परिवार को खुशी देना। आखिर बहू भी तो किसी की बेटी ही है।”
काकी को सीमा की बातें सोच में डाल गईं। यह ऐसा नजरिया था, जो उन्होंने पहले कभी नहीं सुना था। पानी लेने आई सीमा की बहू ने यह बात सुनी, और उसके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान तैर गई। अपनी सास के लिए सम्मान उसकी आंखों में साफ झलक रहा था।
सीमा की बातों ने केवल काकी को ही नहीं, बल्कि खुद सीमा को भी एक नई सोच दी थी। उसे याद आया कि जब वह इस घर में नई-नवेली दुल्हन बनकर आई थी, तब क्या हालात थे। उसकी सासु मां हर वक्त उसे “परंपरा” और “संस्कार” के नाम पर दबाने की कोशिश करतीं। कोई गलती होने पर ताने कसतीं, और यहां तक कि हंसने-खेलने तक की इजाजत नहीं थी।
वह अपने मायके की चुलबुली बेटी से एक खामोश बहू बनकर रह गई थी। उसकी जिंदगी में हंसी का कोई स्थान नहीं रह गया था। उसने हमेशा मन मसोसकर काम किया। हर किसी की खुशी के लिए खुद को मिटाया। लेकिन आज, जब उसकी बहू ने घर की दहलीज पर कदम रखा, तो उसने ठान लिया कि वह अपनी बहू के साथ वैसा व्यवहार नहीं करेगी जैसा उसके साथ हुआ था।
सीमा का मानना था कि हर इंसान को अपने हिस्से की खुशियां जीने का हक है। और अगर वह अपनी बहू को खुलकर जीने नहीं देगी, तो उसका दिल कभी चैन नहीं पाएगा।
जब से सीमा की बहू, प्रिया, घर में आई थी, उसने हर किसी का दिल जीत लिया था। उसकी बातें इतनी मीठी और चुटीली होतीं कि हर किसी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती। वह अपने ननदों के साथ इतनी घुलमिल गई थी, जैसे वह उनकी सहेली हो। हर शाम को चाय के समय घर के आंगन में ठहाके गूंजते।
कभी-कभी प्रिया की बेबाक बातें काकी और पड़ोस की कुछ महिलाओं को खटक जातीं।
“बहू को थोड़ा शांत और विनम्र होना चाहिए,” वे फुसफुसातीं।
लेकिन सीमा इन बातों को सुनकर बस मुस्कुरा देती। वह जानती थी कि खुश रहना और दूसरों को खुश रखना प्रिया की सबसे बड़ी ताकत थी।
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सीमा का यह नजरिया बाकी महिलाओं से बिल्कुल अलग था। उसे याद था कि जब उसकी बेटी स्नेहा ने अपनी नौकरी के लिए आवाज उठाई थी, तो पूरे परिवार ने उसका समर्थन किया था। लेकिन आज अगर प्रिया अपने विचारों को खुलकर जाहिर करती है, तो क्यों कुछ लोग उसे “तेज” कहकर चुप कराने की कोशिश करते हैं?
“बहू-बेटी में फर्क करना ही हमारी सबसे बड़ी गलती है,” सीमा ने खुद से कहा।
“अगर बेटियां तेज हो सकती हैं, तो बहुएं क्यों नहीं? आखिर वे भी तो किसी के घर की बेटियां हैं।”
सीमा की बातें सुनने के बाद काकी के मन में हलचल सी मच गई। वह अपनी पुरानी सोच को लेकर सवाल करने लगीं।
“क्या वाकई हमने अपनी बहुओं को कभी वह आजादी दी है, जो हमारी बेटियों को मिली है?”
उस दिन के बाद काकी ने प्रिया को एक नए नजरिए से देखना शुरू किया। वह उसकी बेबाकी और तेजस्विता को आलोचना की नजर से देखने की बजाय उसकी खूबियों के तौर पर देखने लगीं।
समय के साथ सीमा और प्रिया के रिश्ते की गहराई बढ़ती गई। जहां एक ओर प्रिया ने सीमा को अपनी बेटी जैसा प्यार और सम्मान दिया, वहीं सीमा ने भी उसे बेटी से बढ़कर अपनाया। उनके रिश्ते में कोई डर या औपचारिकता नहीं थी।
प्रिया की हंसी अब केवल घर तक सीमित नहीं रही। वह पूरे परिवार के दिलों में बस चुकी थी। उसकी बेबाकी ने हर किसी को अपनी ओर खींच लिया।
एक दिन काकी ने प्रिया से कहा,
“बेटा, तुम्हारी सास तो तुम्हें बेटी से भी बढ़कर चाहती है। उसका कहना है कि बहू जितनी खुश रहेगी, घर उतना ही खुशहाल होगा।”
प्रिया मुस्कुरा दी। उसने महसूस किया कि सीमा की सोच ने न केवल उसे, बल्कि पूरे परिवार को बदल दिया था।
मूल रचना : सविता गोयल