सावन के आतें ही मुझको अमावस्या की उस घनी काली रात की याद आ जाती है। जो पतिदेव और मैंने दहशत में काटी थी।
सावन की रातों में चन्द्र दर्शन कम ही होते है , क्यों कि काले – काले बादल चन्द्रमा को अपने आगोश में ले लेते हैं। इसलिए रातें अंधेरी होती है और अमावस्या को तो चंद्र देवता अवकाश पर होतें है तो रात और भी ज्यादा अंधेरी हो जाती है । साथ में बारिश और बादलों का गरजन भी होता है, जिससे सब अपने – अपने घरों में जल्दी सिमट जाते हैं।
बात कुछ साल पुरानी है। उस समय हमारा घर शहर से थोड़ा बाहर था। वहां पर कुछ ही घर बने थे , वो भी दूर – दूर। सभी ने अपने – अपने घर के बाहर लॉन लगा रखा था।
हमने भी लॉन लगाया हुआ था। कुछ पेड़ जैसे – सीताफल, अमरूद, नीम, अशोक और कुछ पौधे लगा रखे थे। जिससे हमारा घर ओट में हो गया था।
अब हम बात करतें है उस अंधेरी अमावस्या की रात की।
मेरे श्रीमान जी और मैंने 11 बजे तक टीवी देखा और फिर सोने आ गए। बाहर बारिश हो रही थी तो बादलों की गरजना और बिजली का चमकना भी जारी था।
हमे सोए हुए थोड़ी देर ही हुई थी कि कुछ अजीब सी आवाज़ों से हमारी नींद खुल गई। उस वक़्त साढ़े बारह बज रहे थे।
वो आवाज़ें धीरे – धीरे बढ़ने लगीं । फिर हमको प्रतीत हुआ कि बाहर कोई 2 लोग लड़ रहे हैं। कभी – कभी वो लड़ते हुए हमारे दरवाज़े से भी टकरा जाते। बीच में मेरे पति देव अपनी बहादुरी दिखाने के लिए बाहर जाने लगे तो मैंने रोक दिया। उन्होंने पुलिस को फोन करना चाहा तो वो भी मैंने मना कर दिया। मैंने उनसे चुपचाप बैठे रहने का बोला और हम दोनों बिल्कुल शांत – चित्त सांस रोक कर बैठ गए।
तीन बजे लड़ने की आवाजे बन्द हुई। हम को जानने की बहुत उत्सुकता हो रही थी कि बाहर आखिर हुआ क्या है लेकिन हमारी हिम्मत नहीं थी जाकर देखने की। हमारी नींद भी गायब हो गई थी।
पांच बजे हमें नींद आयी होगी। 7 बजे हमारी काम वाली दीदी की चीख से हमारी नींद खुली।
उसकी घबराई हुई आवाज़ हमारे कानों में पड़ी, ” भाभीजी जल्दी बाहर आइए, देखिए यहां क्या हुआ है।”
हम दौड़ कर बाहर गए और बाहर का दृश्य देख कर हम एक – दूसरे को देखने लगे।
बाहर नाग राज और नेवला मरे हुए पड़े थे।
अब हमारी समझ में आया कि रात को इन दोनों की लड़ाई हो रही थी।
#बरसात
अनिता गुप्ता