“मां, आप फिर रो रही हैं?”
बड़ी बेटी ने आधी रात को जागकर मां को तकिए में मुंह छिपाकर सिसकते देखा।
राधा ने सिर फेरते हुए कहा,
“नहीं बेटा, ये तो बस थकान है।”
“मां, अब हम बच्चे नहीं हैं, आपकी आंखों के हर आंसू का मतलब समझते हैं।”
राधा ने उन्हें सीने से लगा लिया, और मुस्कुराने की कोशिश करते हुए बोली,
“अगर मेरी बेटियां मेरे लिए कुछ करना चाहती हैं, तो बस इतना करो कि एक दिन ये दुनिया तुम्हें देख कर कहे — ‘कितनी भाग्यशाली है ये मां’।”
—
राधा की ज़िंदगी कभी रंगों से भरी थी — पति, दो प्यारी बेटियां और छोटी-सी एक छत। लेकिन सास को उसकी बेटियां कभी पसंद नहीं थीं।
“तू बेटा भी नहीं दे सकी! क्या करेगी दो लड़कियों को पालकर?”
सास हर रोज़ तानों से उसका दिल छलनी करती।
पति रमेश एक सुलझे इंसान थे, हमेशा कहते,
“बेटियां भी तो भगवान का आशीर्वाद होती हैं।”
लेकिन किस्मत की मार से कोई नहीं बच सका। एक रात रमेश को साइलेंट हार्ट अटैक आया और वह दुनिया छोड़ गए। उस दिन राधा के जीवन की सारी दीवारें ढह गईं।
कोई कमाई का साधन नहीं, दो मासूम बेटियां और तानों की आग में जलता घर।
राधा ने धीरे-धीरे गहने बेचकर घर चलाया, लेकिन भूख और बेबसी के आगे सब हार गया। एक दिन हिम्मत करके घर से निकली, दूसरों के घरों में खाना पकाने और बर्तन धोने का काम करने लगी।
बेटियों को बाहर बैठा देती। कुछ लोग तरस खाकर बच्चों को खाने को दे देते, कुछ तिरस्कार की निगाहों से देखते।
छोटी बेटी को एक दिन तेज़ बुखार था। जब राधा ने काम से छुट्टी मांगी, तो मालकिन बोली,
“हम कोई धर्मशाला नहीं चलाते। छुट्टी चाहिए तो काम छोड़ो।”
उसी दिन बारिश में भीगते हुए वह अपनी बीमार बच्ची को गोद में लेकर काम पर पहुंची।
रात को घर आकर वह फूट-फूट कर रोई। बड़ी बेटी ने आंचल पकड़कर कहा,
“मां, हम एक दिन इतने काबिल बनेंगे कि तुम्हारे आंसू कभी बहने नहीं देंगे।”
लेकिन दुखों की श्रृंखला यहीं नहीं थमी।
डॉक्टर ने कहा,
“आपकी बेटी को पोलियो हो गया है। चलने के लिए बैसाखी का सहारा लेना पड़ेगा।”
राधा का संसार जैसे फिर से टूट गया। पर इस बार नहीं टूटी राधा। उसने पूरी जान लगा दी इलाज में, लोगों के ताने सुने —
“इस अपाहिज बच्ची के पीछे इतना पैसा क्यों बर्बाद कर रही है?”
लेकिन वह जानती थी, यह सिर्फ बेटी नहीं, उसकी आत्मा का हिस्सा है।
उसने घर पर सिलाई शुरू की। दिन-रात मेहनत की, ट्यूशन पढ़ाई करवाई, डॉक्टरी इलाज करवाया — मगर जब एक रिक्शे ने बच्ची को टक्कर मारी और उसके दोनों पैर भी जवाब दे गए, तो राधा अंदर से हिल गई।
ससुराल वालों ने भी कह दिया,
“अब तू हमारे लिए बोझ है। निकल जा यहां से।”
राधा ने एक छोटा किराए का घर लिया और वहीं से अपनी ज़िंदगी फिर से बुननी शुरू की। छोटी बेटी को गोद में लेकर स्कूल छोड़ने जाती, वहां की प्रिंसिपल उसकी हिम्मत देखकर कहतीं,
“तुम सिर्फ मां नहीं, प्रेरणा हो।”
समय बीतता गया। दोनों बेटियों ने पढ़ाई में नाम कमाया। स्कॉलरशिप मिली। बड़ी बेटी मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करने लगी और छोटी बेटी कॉलेज की प्रोफेसर बन गई।
जिस मोहल्ले में कभी ताने मिलते थे, वहां अब सराहना होती है।
“अरे, राधा की बेटियां तो कमाल कर गईं। कितना अच्छा संस्कार दिया है उसने!”
एक दिन जब राधा की आंखें फिर से भर आईं, तो बेटियों ने कहा,
“मां, आज तुम्हारे इन आंसुओं में दर्द नहीं, सुकून है। हमने दुनिया को दिखा दिया कि जो समाज कभी हमें बोझ समझता था, उसी समाज ने आज तुम्हारे त्याग को सलाम किया।”
और तब राधा ने अपनी बेटियों को गले लगाते हुए धीमे से कहा —
“अब मेरी आंखों के हर आंसू का हिसाब पूरा हो गया है।”
एक मां के आंसुओं का हिसाब तब पूरा होता है, जब उसकी संतान उसके त्याग, संघर्ष और प्रेम को इस दुनिया में उसकी असली पहचान बना दे। बेटा हो या बेटी, मां की ममता का कोई मोल नहीं — लेकिन जब बेटियां मां की आंखों की नमी को मुस्कान में बदल देती हैं, तो वही सबसे बड़ा जवाब होता है समाज के हर ताने का।
Rekha saxena
#”मां के आंसुओ का हिसाब”