हमेशा बना रहे बेटी का घर – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहाँ की मेहमान है “ जैसे ही ये बात सरला ने रोते रोते अपनी बेटी की विदाई के वक़्त कही वही पास में खड़ी सुलोचना जी रोना भूल ग़ुस्से में सरला से बोली,” ये क्या सीखा रही है बहू…कुहू का ये घर वैसे ही रहेगा जैसे उसकी शादी के पहले था।” 

सुलोचना जी कुहू को गले लगाते हुए बोली,” बेटी तू हमेशा ख़ुश रहना…तेरी ज़िन्दगी में बस पंखुड़ियाँ बिछी हो काँटों का नामोनिशान तेरी ज़िन्दगी में ना आए… पर कभी तुम्हें ऐसा लगे ससुराल में तुम्हें कोई भी तकलीफ़ हो रही है तो एक बार अपने घर पर खबर ज़रूर कर देना…. तू यहाँ की मेहमान नहीं है तू तो यहाँ की बेटी है ।”

ये सब कहने के बाद वो कुहू के पति निशांत की ओर मुख़ातिब होते हुए बोली,” दामाद जी हमारी राजकुमारी का ध्यान रखिएगा… उसे आपके जीवन में आपके घर में कोई भी तकलीफ़ ना हो इसका ख़्याल रखे।” 

निशांत सिर झुका कर हामी भरते हुए उनके चरण स्पर्श कर विदा ले लिया ।

कुहू शादी के बाद पग फेरे के लिए मायके आई हुई थी…विदा के वक़्त अपनी माँ की दी सीख सरला जी अपनी बेटी को दे रही थी पर वही पास में खड़ी काम्या ये सब देख कर और अपनी माँ सुलोचना जी की बात सुन दंग रह गई।

वो सबके जाने के बाद अपनी माँ के पास गई और बोली ,” अम्मा काश ये बात सालों पहले आपने दीदी से कही होती तो आज वो हमारे बीच होती… आपने और बाबा ने तो दीदी को एक बार जो इस घर से विदा किया उसके बाद तो वो कभी यहाँ आ ही नहीं पाई आई भी तो खबर की अब वो नहीं रही… क्यों अम्मा क्यों तुमने उस वक़्त दीदी का साथ नहीं दिया?” कहते हुए काम्या बिलख पड़ी 

“ बेटी मैं बहुत बुरी माँ हूँ बहुत बुरी।” कहते हुए सुलोचना जी भी रो पड़ी और वही कमरे में अपनी बड़ी बेटी कुन्ती की तस्वीर देखते हुए बोली,” मुझे माफ़ कर देना मेरी बच्ची मुझे माफ कर देना।”

“ माँ अब माफ़ी माँगने से क्या ही हो जाएगा पर आज कुहू के लिए तुमने जो भी कहा उसे सुन कर दीदी की आत्मा को शांति ज़रूर मिलेगी… अच्छा अब मैं भी जा रही हूँ… तुम अपना ख़्याल रखना।” कहते हुए काम्या माँ से गले मिल आशीर्वाद लेकर चली गई 

सुलोचना जी काम्या की बात सुन कर बहुत दुखी हो गई थी… वो उठ कर कुन्ती की तस्वीर हाथों में लेकर फिर से अपने बिस्तर पर आ कर लेट गई।

आज रह रह कर उन्हें कुन्ती की याद सता रही थी.. और काम्या की बात कचोट रही थी…. काश उस वक़्त हिम्मत कर ली होती तो बेटी यूँ ही नहीं चली जाती …

“ माँ यहाँ सब मुझे बहुत परेशान करते हैं…. बात बात पर ताना मारते हैं… और तो और आपके दामाद कब हाथ उठा दे पता भी नहीं चलता… दो महीने की गर्भवती हूँ पर मजाल है जो मेरी तकलीफ़ कोई समझ सकें… सुबह से रात तक खटती रहती हूँ पेट भर खाने को तरस रही हूँ… हो सके तो मुझे अपने पास बुला ले।” पहली और आख़िरी चिट्ठी लिखी थी कुन्ती ने वो भी एक रिश्तेदार के हाथों मिली थी सुलोचना जी को ,जो उस गाँव गए थे तो सुलोचना जी ने बेटी के लिए घर के बने आचार पापड़ भिजवा दिए थे और लौटते वक़्त उन्हीं के हाथों कुन्ती ने वो चिट्ठी भेजी थी ।

ये सब पढ़ने के बाद सुलोचना जी रोने लगी और जब ये बात उन्होंने अपने पति और सास से कही तो वो दोनों कह उठे,”देख,बेटी एक बार मायके की देहरी लांघ कर दूसरे घर चली गई तो अब उसके प्रति हमारी ज़िम्मेदारी ख़त्म… अब उसकी क़िस्मत में जो लिखा होगा वो अपने उस घर में भोगेंगीं यहाँ के लिए वो बस मेहमान है ।”

सुलोचना जी ने बहुत मिन्नतें की कि एक बार बेटी को बुला लो नहीं तो जाकर देख लो उसकी हालत पर उसकी बात बुलन्द आवाज़ों के नीचे दब कर रही गई… कुछ सप्ताह बाद ही कुन्ती के ससुराल से खबर आई कि सीढ़ियों से उतरते वक़्त पैर फिसलने से अस्पताल ले जाते वक़्त ज़्यादा रक्त स्राव हो जाने से उसकी मौत हो गई ।

सुलोचना जी बेटी की लाश तक ना देख पाई थी पति ही गए थे उसके ससुराल फिर तो सब  रिश्ते ही ख़त्म हो गए थे उनसे….दूसरी बेटी काम्या की शादी के वक़्त वो बहुत डर रही थी पर संजोग से उसका ससुराल कुन्ती के ससुराल जैसा नहीं था … और आज जब उनकी बहू ने पोती से ये सब बात कही तो वो बिफर ही पड़ी थी उन्हें ऐसा लगा कि बेटी को ये सब कहकर हम उसको ख़ुद से इतना दूर कर देते है कि वो फिर लौट कर आ ही नहीं पाती।

तभी दरवाज़े पर आहट सुन वो उस ओर देखने लगी…

सामने बहू सरला खड़ी थी…

“ अम्मा जी आज मुझे बहुत फ़ख़्र हो रहा है कि आप मेरी सास हो…. नहीं तो यहाँ गली मोहल्ले कि बेटियों को विदा करते वक़्त जो ये सीख दी जाती है किसी मायने में सही नहीं है मैं भी बस उसी परम्परा को निभा रही थी पर वक़्त पर आपने मेरी आँखें खोल दी।” सरला सास का हाथ पकड़ उसे माथे से लगा अपनापन जताते हुए बोली 

“ सही कहा बहू अब समय ना रहा कि हम बेटियों को ये सब सीख दे ….जैसे बचपन से जवानी तक ये उनका घर है वही आगे भी रहेगा.. बेटियाँ जब अपने ससुराल जाती है तो ज़िम्मेदारियों के साथ ही जाती है वो खुद कुछ दिनों के लिए ही मायके आ पाती हैं ऐसे में उन्हें हम क्यों ही कहे ससुराल ही तेरा घर है और अब तू यहाँ कि मेहमान… वो खुद ही कम दिनों के लिए आती हैं हमें तो चाहिए जब भी वो यहाँ आएँ उन्हें यहाँ पहले जैसा ही घर मिलता रहे।” सुलोचना जी बहू से बोली

“ आप सही कह रही है अम्मा जी ।” कह सरला साथ लाए चाय का कप सास को थमा दी …. और दोनों निश्चित हो कर चाय पीने लगी।

दोस्तों वैसे अब तो वाक़ई में समय के साथ समाज में बदलाव आ रहा है और हमें ये कह कर बेटियों को एहसास करवाने की ज़रूरत नहीं है कि ससुराल ही तेरा घर है…. पर कई बार परिस्थितियाँ प्रतिकूल होती है ऐसे में हर बेटी की नज़र अपने मायके की ओर ही होती है जो उसका घर होता है ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

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