“मम्मा मेरी यूनिफार्म प्रेस कर दो, मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है।”
“बेटा, मैं आपका और आरव का टिफिन पैक कर रही हूँ।आप खुद कर लो।”
“क्या मम्मा! आपने मेरी यूनीफॉर्म कल प्रेस क्यों नहीं की? आपको पता है ना कि मुझे कपड़े प्रेस करना नहीं आता।” युक्ता झल्लाते हुए बोली।
“तो सीख लो। अब से मैं तुम्हारे और आरव के कपड़े प्रेस नहीं करूँगी। तुम इलेवन्थ स्टैंडर्ड में हो और आरव नाइंथ में। आज से अपने काम खुद करना सीखो।” मैं किचन में काम कर रही थी। बाहर आने का समय नहीं था तो आरव वहीं आकर बोला,” मम्मा आपने मेरा प्रोजेक्ट नहीं बनाया? अब मैं टीचर को क्या सबमिट करूँगा।”
“बेटा अपना होमवर्क खुद से पूरा करना सीखो। अब तुम बड़े हो गए हो। दोनों के टिफिन और मिल्क शेक टेबल पर रखा है, ध्यान से टिफिन बैग में रख लेना। मैं रिंकी आंटी के साथ वाॅक पर जा रही हूँ।” आरव का गाल थपथपाते हुए मैं शॉल लेकर बाहर निकल गई। मीठी मीठी सर्दी शुरू हो चुकी थी। सात बजे भी ठंड लगती है। पता नहीं! पर आरव कुछ बड़बड़ा रहा था पर मैंने ध्यान नहीं दिया।
घर लौट कर आई। बच्चे स्कूल जा चुके थे। आठ बजने वाले थे। दो कप चाय बनाकर अम्मा बाबूजी को दी। अपनी और रवि की चाय लेकर कमरे में आ गई। “यह आरव और युक्ता आज इतने गुस्से में क्यों गए हैं?” रवि चाय की सिप लेते हुए बोले।
“पता नहीं!मैं आपका लंच तैयार करने जा रही हूँ। आप जरा सबके कंबल तह लगा देना।” मैंने रवि का कप उठाते हुए कहा।
“मैं——। मैं कंबलों की तह लगाऊँ। यार, यह जुल्म मत करो। अभी बंदे को ऑफिस के लिए तैयार होना है।” रवि अंगड़ाई ले रहे थे।
“क्यों? आपकी जिम्मेदारी सिर्फ ऑफिस की है घर के प्रति नहीं। कंबल तो आज से आप ही तह लगाएँगे।” मैंने तटस्थ रहते हुए कहा।
“अरे, वंदना! मेरे मौजे और रुमाल नहीं निकाले आज तुमने?” रवि की आवाज में तल्खी थी।
“नहीं! आप ड्राअर से निकाल लो।”
“रोज तो तुम निकाल देती हो, आज क्या हो गया?” रवि की नाराजगी साफ झलक रही थी।
“कुछ नहीं! बस आज से आप और बच्चे अपने व्यक्तिगत काम स्वयं कीजिए। मैं थक जाती हूँ और वैसे भी मैं अब थोड़ा समय खुद को देना चाहती हूँ।”मैंने नाश्ता मेज पर रख दिया और घर को समेटने लगी।
“वंदना यह गलत बात है, मैं यह नहीं कहता कि खुद को समय मत दो पर हमारी जरूरतों का ध्यान रखना भी तुम्हारा ही फर्ज है। मैं देख रहा हूँ कि तुम स्वार्थी होती जा रही हो।” रवि तुनकते हुए ऑफिस निकल गए। मेरी आँखों में आँसू आ गए। इतने बरस की कर्तव्यनिष्ठा का यह सिला “स्वार्थी” का टैग। पर नहीं अभी तो जंग की शुरुआत हुई है। अभी कमजोर कैसे पड़ सकती हूँ। अम्मा बाबूजी को नाश्ता और दवाई के बाद थोड़ी देर धूप में बिठा दिया और घर का काम निपटा मैं अपनी क्रोशिया और धागों का डिब्बा लेकर बैठ गई।
फिर अगले दो हफ्तों में मैंने धीरे-धीरे बच्चों और रवि के सभी व्यक्तिगत कामों से किनारा कर लिया। वो तुनकते, नाराज होते पर मैं परवाह नहीं करती।वह बार-बार स्वार्थी होने का टैग लगाते पर मैं चुप रहती थी।
नए साल पर मेरी ननद, ननदोई और कुछ मेहमान आने वाले थे। मैंने आरव, युक्ता और रवि को बुलाकर कहा,” देखिए आज घर में काफी मेहमान आएँगे।जाहिर है,काम बढ़ेगा इसलिए मैं सोच रही हूँ कि युक्ता और आरव मेरे साथ किचन में हाथ बटाएँगे और रवि आप बाजार से सामान लाकर टेबल लगा लीजिए ताकि मुझे भी थोड़ी राहत मिल जाए।” मेरा इतना कहते ही तीनों मेरा मुँह देखने लगे।
“तुम्हें क्या होता जा रहा है वंदना? तुम पहले तो हमसे कभी कोई काम करने के लिए नहीं कहती थीं। वंदना तुम स्वार्थी होती जा रही हो, अब तुम सिर्फ अपने आराम के बारे में सोचने लगी हो। तुम जरा नहीं सोचती कि मैं और बच्चे ऑफिस और स्कूल के बाद कितना थक जाते हैं। अब तुम स्वार्थी हो गई हो।” रवि के शब्द मेरा हृदय छलनी कर रहे थे पर अभी बस कहाँ था।अभी तो मुझे बहुत कुछ सुनना था।
“हाँ,मम्मा! अब आप स्वार्थी होती जा रही हो ।अब आप पहले वाली मम्मा नहीं रही।पहले तो आप ने सिर्फ हमारे पर्सनल काम करना छोड़ा था और अब तो आप हमसे घर के काम भी करवाना चाहती हो। पापा सही कहते हैं, आप स्वार्थी हो! स्वार्थी! आप अब आराम से रहना चाहती हो।” युक्ता और आरव की सुलगती आँखें मेरा अंतर्मन जलाकर राख कर रही थीं।
“हाँ! हूँ मैं स्वार्थी! सही कह रहे हो तुम सब कि मैं स्वार्थी हूँ। तुम सब अपने-अपने काम स्वयं करना सीख जाओ,यह मेरा स्वार्थ है। तुम दोनों अपने ऊपर निर्भर हो जाओ, हर कदम पर तुम्हें मेरी जरूरत ना हो, यह मेरा स्वार्थ है। अगर मैं कभी घर पर ना रहूँ तो तुम दोनों भूखे ना रहो इसके लिए अगर मैं स्वार्थी हूँ तो हूँ। कल तुम दोनों अगर पढ़ने या नौकरी करने दूर शहर जाओ तो कम से कम अपने लायक तो कुछ कर सको और रवि आप शिकायत करते हो कि मैं आपके साथ दस मिनट भी नहीं बिताती। आप बताओ मैं वह दस मिनट कैसे निकालूँ? अब मैं अम्मा बाबूजी से तो काम करवाने से रही। मेरी भी उम्र लगातार बढ़ रही है, थक रही हूँ मैं।उम्र और बीमारियाँ अपना असर दिखा रही हैं। अगर आप थोड़ी मदद करोगे तो मैं आज आपके साथ न केवल सुकून से दस मिनट गुजार पाऊँगी बल्कि एक लंबी उम्र तक स्वस्थ रहकर आपका तमाम उम्र साथ निभाऊँगी वरना असमय ही थक कर मैं शायद आपका ताउम्र साथ ना निभा पाऊँ। अगर यह सब सोचना आपको मेरा स्वार्थ लगता है तो हूँ मैं स्वार्थी। अगर अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना स्वार्थी होना है तो मैं स्वार्थी होना चाहती हूँ।” कहकर मैं बालकनी में आ गई क्योंकि मैं इन सबके सामने अपने आँसुओं को दिखाकर कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी।
मौलिक सृजन
ऋतु अग्रवाल मेरठ
It’s a really heart touching story, generally we treat our wife as a maid but she is a perfect partner of our life, she is backbone of our family. She is the home maker. We must think from her side and we have to share our hand with her home making things after all it’s our home too, and children you are better future if you become independent after 15 years of age, you will thankful in rest of your life. Please think positive. Jay Siyaram.