गर्व – हेमलता गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

हम दोनों दिन रात यहां मजदूरी कर करके एक-एक पैसा जोड़ रहे हैं ताकि तू कुछ बन जाए, अपने पैरों पर खड़ा हो जाए पर एक तू है की सुनता ही नहीं जब देखो जब आवारा गर्दी या  खेल कूद में ही दिमाग लगा रहता है अब 12वीं कक्षा में आ गया है तो थोड़ा सा अपने बारे में भी सोच, हमारा क्या है हम तो जो कमाते हैं उसमें हमारी गुजर बसर हो ही जाती है

परंतु तेरे आगे की जिंदगी का क्या होगा, भगवान ने इतना अच्छा दिमाग दिया है तो उसे अच्छे कामों में क्यों नहीं लगाता, बस जब देखो तब  दोस्तों के संग घूमता फिरता रहता है, तेरी स्कूल से भी शिकायत आती है कि तू स्कूल भी रोजाना नहीं जाता, इस बार अगर तेरे नंबर कम आए तो फिर तू देख लेना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा,

तेरी मां कितने  सपने देखती है तेरे लिए कि तू बड़ा होकर कुछ अच्छा काम करेगा अच्छा घर बनाएगा हमारी जिंदगी सुधर जाएगी, पर नालायक … तेरे कोई फर्क ही नहीं पड़ता, अगर आज के बाद  तुझे कहीं आवारा गर्दी करते देख लिया तो फिर तुम इस घर में मत रहना, कहता हुआ रामलाल काम पर चला गया और बेटा नरेंद्र को  आज अपने पिता की बातें बहुत चुभ गई

और गुस्से में घर छोड़ कर चला गया! शाम को जब रामलाल और कमली काम से लौटे तो देखा नरेंद्र घर पर नहीं था आसपास सभी जगह तलाश की पर वह तो उस गांव में था ही नहीं जो मिलता, पुलिस में भी रिपोर्ट लिखाइ पर नरेंद्र कहीं नहीं मिला! कमली अपने पति से लड़ने लगी .क्यों उसने इतना गुस्सा किया पर,,

अब क्या हो सकता था ? धीरे-धीरे दिन महीने साल गुजरते चले गए, 7 साल हो गए किंतु नरेंद्र का कोई अता पता नहीं था, अब तो  दोनों ने उसकी आस भी छोड़ दी थी, बेटे के गम में कमली की तबीयत भी खराब रहने लगी, गांव वालों के कहने पर रामलाल एक दिन कमली को दिखाने बडे शहर ले गया, बस से उतरते ही सामने होटल था,

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दोनों को भूख भी लग रही थी सोचा पहले खा पी लेते हैं फिर दिखाने चलेंगे और वह दोनों होटल में जाकर खाना खाने लगे, जब बिल  देने का नंबर आया तो मैनेजर ने यह कहकर  बिल लेने से मना कर दिया कि साहब ने आपसे कोई भी पैसा लेने से मना किया है और आप दोनों को अंदर कमरे में बुलाया है, एक बार तो दोनों सहम गए,

इस शहर में तो हम किसी को जानते ही नहीं है, इस होटल के मालिक ने हमें अंदर क्यों बुलाया है? खैर…दोनों डरते डरते मालिक के पास पहुंचे और उन्होंने कहा  साहब.. हमसे क्या गलती हो गई जो आपने हमसे पैसे भी नहीं लिए और हमें यहां बुलाया है, तब उस शख्स ने मुड़कर उन दोनों की तरफ देखा तो दोनों देखते ही रह गए,

सूट बूट  पहने हुए एक सुंदर नौजवान जो कि नरेंद्र था, ने उन दोनों के पैर छुए और बोला… हां मैंने बिल लेने से इसलिए मना किया था क्योंकि आप दोनों इस होटल के मालिक के माता-पिता है और मालिक के माता-पिता मतलब उससे भी बड़े मालिक! तू यह सब क्या कह रहा है और यह सब कैसे हो गया? हमने तो तुझे बहुत भला बुरा

  कह कर घर से निकाल दिया था ! तब नरेंद्र ने बताया.. पापा उस दिन मैं  गुस्से में घर छोड़कर तो चला आया पर मैं दो-तीन दिन तक यहां शहर में ऐसे ही भटकता रहा, भूख से बेहाल  होने पर इस होटल में कुछ खाना मिलने की उम्मीद से आया उस होटल के मालिक ने पहले मुझे थोड़ा सा काम करवाया और फिर मुझे दो

वक्त की रोटी दी और मुझे अपने यहां काम  पर रख लिया, मैंने 2 साल तक खूब मन लगाकर काम किया मेरी लगन और ईमानदारी से खुश होकर मालिक ने मुझे धीरे-धीरे यहां का सुपरवाइजर बना दिया,  मालिक की कोई संतान नहीं थी अतः मुझे घर भी ले जाने लगा, मालकिन भी मुझे देखकर बहुत खुश होती थी,

धीरे-धीरे उन्होंने मुझे अपना बेटा बना लिया, मुझे आप दोनों से मिलने की बहुत इच्छा होती थी किंतु मैंने भी मन में ठान लिया था कि जब तक कुछ बन ना जाऊं तब तक मैं आप को मुंह नहीं दिखाऊंगा और फिर मेरे मालिक घनश्याम दास जिन्होंने मुझे अपना बेटा बना लिया था उन्होंने मुझे इस होटल का मालिक बना दिया

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और यहां तक की अब मेरे पास में एक शानदार घर और गाड़ी भी है, तो मम्मी पापा आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि आपका बेटा अपनी दो-दो मां और  दोनों पिता के साथ में आराम से रहेगा, और मां आपका इलाज भी अब बढ़िया हॉस्पिटल में होगा और अब से आपको मजदूरी या कोई भी काम करने की जरूरत नहीं है

क्योंकि अब आपका बेटा समझदार हो गया है! नरेंद्र की बातें सुनकर माता-पिता की आंखों से आंसू छलक गए! इतने में ही सेठ  घनश्याम दास जी और उनकी पत्नी निर्मला दोनों वहां आ गए और उन्होंने रामलाल और कमली से कहा.. देखिए अब हमारा बेटा बहुत लायक हो गया है आपको अब किसी भी बात की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है

और अब आप रोइए मत आप के हंसने मुस्कुराने के दिन आ गए हैं! उनकी बात सुनकर रामलाल जी ने कहा आप सही कह रहे हैं, किंतु उसने बात ही ऐसी की की मां-बाप की आंखों से आंसू  छलक आए! आज हमें उसे पर गर्व हो रहा है!

  हेमलता गुप्ता स्वरचित

.  “उसने बात ही ऐसी की  मां बाप की आंखों से आंसू छलक आए”

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