आजकल के समय में केवल बेटे ही नहीं बेटियाँ भी माता-पिता की गरुर होती हैं।राम प्रसाद जी की तीन बेटियाँ थीं।तीन बेटियों के बाद उन्होंने बेटे की आस छोड़ दी।हाँ! उनकी पत्नी सीमा जी के मन में जरुर बेटे की तड़प
बनी हुई थी।गाहे-बगाहे अपने मन की इच्छा पति से व्यक्त करते हुए कहतीं -” हमारा एक बेटा होता तो परिवार पूर्ण हो जाता!”
राम प्रसाद जी ने पत्नी को समझाते हुए कहा -” सीमा! आजकल बेटा-बेटी में कोई अंतर नहीं है।तीनों बेटियाँ का पालन-पोषण और पढ़ाई अच्छे से करुँगा।देखना!एक दिन ये बेटियाँ हमारा गुरुर बनेंगी!”
राम प्रसाद जी की तीनों बेटियों के नाम क्रमशः -आशा, ऊषा और निशा थे।बड़ी बेटी आशा पढ़-लिखकर काॅलेज में प्रवक्ता बन चुकी थी।अपने सहयोगी से शादी कर सुखी दाम्पत्य-जीवन जी रही थी।दूसरी बेटी ऊषा ग्रेजुएशन कर चुकी थी।
अब राम प्रसाद जी को ऊषा के विवाह की चिन्ता सता रही थी। कहीं भी शादी की बात चलने पर हर जगह से मोटे दहेज की माँग उठ जाती।छोटे से व्यवसाय में बेटियों की शिक्षा के बाद उनके पास नाम भर की पूँजी थी।
परेशान से राम प्रसाद सोचते -“दहेज-विरोधी कानून बनने से क्या होता है?अभी भी लड़केवाले बिना भय-झिझक के किसी-न-किसी रूप में दहेज की माँग कर ही बैठते हैं।”
राम प्रसाद जी की दूसरी बेटी ऊषा देखने बहुत सुन्दर थी।उसकी सुन्दरता देखनेवालों को एक ही नजर में आकर्षित कर लेती।उसका लम्बा कद, दूधिया रंग,कजरारी आँखें ,काली नागिन से लहराते बाल और विनम्र स्वभाव से सभी एक ही नजर में प्रभावित हो उठते।
एक दिन राम प्रसाद जी के दोस्त विमल जी ने ऊषा को देखा तो कहा -” दोस्त! मेरे एक दोस्त का बेटा लेफ्टिनेंट है।उसका नाम उमेश है।वह बेटे के लिए अच्छी लड़की खोज रहा है।तुम कहो,तो मैं बात करूँ?”
राम प्रसाद जी ने तो एक बार सेना का नाम सुनकर हिचकिचाहट दिखाई, परन्तु उनके दोस्त विमल जी ने उन्हें समझाते हुए कहा -” देखो दोस्त! देश सेवा के नाम पर तो लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं,परन्तु जब अपनी बारी
आती है,तो पीछे हट जाते हैं।हमें अपने देश के रक्षकों पर गुरूर होना चाहिए। उनका सम्मान करना चाहिए। “
सँभलते हुए राम प्रसाद जी ने कहा -“दोस्त !ऐसी कोई बात नहीं है।लड़की-लड़का एक दूसरे को पसन्द कर लें,तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है।”
कुछ समय बाद उमेश और ऊषा ने एक-दूसरे को पसन्द कर लिया।उमेश बहुत ही सुलझा हुआ इंसान था।उसकी नजर में दहेज लेना गुनाह था।ऊषा के परिवारवाले उमेश के विचारों से काफी प्रभावित थे।ऊषा की शादी उमेश के साथ धूम-धाम से हो गई।
राम प्रसाद जी को ऐसे दामाद पर गुरूर था।उमेश और ऊषा शादी के बाद हनीमून के लिए मनाली घूमने गए। मनाली की खुबसूरत वादियाँ उनके प्यार का गवाह बन रहीं थीं।दोनों एक-दसरे की बाँहों में खोएँ नई जिन्दगी का ख्वाब बुन रहें थे।
उमेश हनीमून पर ऊषा को प्यार के अलावे सेना की नौकरी के बारे में भी एक-एक बात बारीकी से बताते रहता।ऊषा को तो सेना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।वह उमेश की बातों को बड़े प्यार और ध्यान के साथ
सुनती।एक दिन उमेश ने दिखाते हुए कहा -“देखो ऊषा!सेना में देश के लिए कोई शहीद हो जाता है ,तो उसे इस प्रकार सलामी दी जाती है।”
ऊषा गौर से पति की भाव -भंगिमा को निहारा करती।
अगले दिन उमेश कहता है-” ऊषा!एक बार तुम मुझे करके दिखाओ कि शहीद को कैसे अंतिम सलामी दी जाती है?”
काफी ना-नुकुर के बाद उमेश ऊषा को मना लेता है।ऊषा उमेश को सैल्यूट कर दिखाती है।
खुश होकर मजाक-ही-मजाक में उमेश कहता है-” ऊषा !मुझे तुम पर गुरूर है।अगर मैं शहीद हो जाऊँ,तो तुम रोना मत।मुझे खुशी-खेशी इसी प्रकार सलामी देकर विदा करना।”
ऊषा उमेश के होठों पर अपना हाथ रख देती है और उमेश उसे अपने आलिंगन में समेट लेता है।हनीमून समाप्त कर दोनों घर वापस लौट आते हैं।
छुट्टियाँ समाप्त होने पर उमेश अपनी नई-नवेली पत्नी को माँ-बाप के पास छोड़कर कश्मीर ड्यूटी पर लौट जाता है। ऊषा भी भींगे नयनों से पति को देश-सेवा के लिए विदा करती है।कुछ दिनों बाद अचानक से टेलीविजन पर खबर आती है
कि आतंकवादियों से लोहा लेते हुए लेफ्टिनेंट उमेश देश के लिए शहीद हो गए। उमेश की वीरता की चर्चा टेलीविजन, अखबार, मीडिया चारों तरफ होने लगी।जाँबाज उमेश ने अपने कई साथियों की जान बचाई और अंत तक हार नहीं मानी।
लेफ्टिनेंट उमेश की बहादुरी के कारण सेना का सर गुरूर से ऊँचा था।इन सब खबरों को देख-पढ़कर ऊषा ने खुद को सँभाला.और अपनी भावनाओं को काबू में रखकर मन में एक संकल्प लेते हुए सोचा -“मुझे अपने
पति की दिलेरी पर गर्व है।मैंने उमेश को वचन दिया है कि उसकी शहादत पर मैं आँसू नहीं बहाऊँगी।मैं जरूर उसे अंतिम सलामी दूँगी।मैं खुद में उमेश को जिन्दा रखूँगी।”
ऊषा ने दिलेरी दिखाते हुए सेना के अफसरों के बीच जाकर उमेश को अंतिम सलामी दी। ऊषा के साथ-साथ उमेश के परिवारवालों को भी उमेश की शहादत पर गुरुर था।
अब ऊषा के जीवन का दूसरा नया अध्याय शुरु हो चुका था।वह चुपचाप बैठकर आँसू बहाना नहीं चाहती थी।उसकी एक परिचित मीरा सेना में नौकरी कर रही थी।उसने मीरा से सेना में भर्ती होने की प्रक्रिया की पूरी जानकारी ली।
अब उसकी जिन्दगी का एकमात्र लक्ष्य था,सेना में जाकर देश-सेवा करना,जिससे उसके माता-पिता,परिवारवाले और उमेश की आत्मा गुरूर महसूस कर सके।ऊषा ने कड़ी मेहनत से शार्ट सर्विस कमीशन की तैयारी की और उसमें सफलता हासिल की।
फिर ओ टी ए के कड़े प्रशिक्षण में सफल रही।यह प्रशिक्षण कई हफ्तों तक चली।उसके बाद ऊषा को लेफ्टिनेंट पद की जिम्मेवारी सौंपी गई।खुशी की बात यह है कि आजकल सेनाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है,जोकि पहले बिल्कुल नगण्य थीं।
ऊषा काफी मेहनत और हिम्मत से लेफ्टिनेंट बनी।उसके साथ काफी महिलाएँ भी सैन्य अधिकारी बनीं,परन्तु ऊषा का जज्बा सभी लोगों के लिए गुरुर का विषय था।
ऊषा ने नौकरी के पहले दिन शपथ लेते हुए कहा -“मुझे सेना में काम करने का अवसर मिला है,इसका गुरुर है।अगर मुझे युद्ध के मोर्चें पर देश -सेवा का अवसर मिलेगा,तो मैं जाने से गुरेज नहीं करूँगी।मैं अपने पति के हर सपने को पूरे करने का प्रयास करूँगी,
जिससे उनकी आत्मा गुरूर महसूस कर सके!”
पूरी सेना बटालियन तथा उसके परिवारवाले ऊषा की कामयाबी पर ताली बजाते हुए गौरवान्वित महसूस कर रहें हैं।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।
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