जगमोहन नाम था उसका। अभी दो वर्ष पूर्व इस शहर में आया। एक हृष्ट पुष्ट नौजवान। दबंग प्रकृति का था। परिवार में कोई नहीं था। अकेला रहता था। जिस गली में रहता था, वह गली तो गली सारे शहर में उसका दबदबा था। लोग उसे गुण्डा समझते थे, और जग्गू दादा कहते थे।
सौम्या विद्यालय में दसवीं कक्षा में पढ़ती थी,विद्यालय में पैदल ही जाती थी। विद्यालय जाने के दो मार्ग थे। एक मुख्य सड़क से होकर जाना पड़ता था, यह मार्ग कुछ लम्बा था। दूसरा एक गली से होकर जाता था, जो छोटा था। उस गली में जगमोहन रहता था, अतः सौम्या के माता- पिता ने सौम्या को कह दिया था कि वह कभी उस गली से न आए -जाए मुख्य सड़क वाले रास्ते से ही स्कूल जाए। सौम्या मध्यमवर्गीय परिवार की सीधी साधी, माता -पिता की आज्ञाकारी बेटी थी।
वह हमेशा लम्बे रास्ते से ही स्कूल जाती थी। एक दिन शहर में किसी बात को लेकर दंगा भड़कने गया। वैसे तो विद्यालय में छुट्टी पॉंच बजे होती थी पर परिस्थिति को देखकर छुट्टी चार बजे ही कर दी। ज्यादातर लड़कियों के घर विद्यालय के पास में थे। वे अपने घर चली गई, जो विद्यालय की बस से जाती थी,
वे बस से चली गई। शहर की मुख्य सड़क पर जुलूस निकल रहा था और रास्ता बंद कर दिया था। सौम्या को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह बहुत देर खड़ी रही सोच रही थी कि अब रास्ता खुल जाएगा मगर रास्ता खुला नहीं ।चारों तरफ शोर शराबे की आवाज आ रही थी। पॉंच बज गई थी, वह सोच रही थी कि अगर समय पर घर नहीं पहुंची तो माँ चिन्ता करेगी।
इसी उधेड़-बुन में उसके कदम उस गली की ओर बढ़ गए। वह सोच रही थी इस रास्ते वह जल्दी अपने घर पहुॅंच जाएगी। वह डर रही थी और मन ही मन भगवान का नाम ले रही थी। गली के बीच में कुछ मनचलो ने उसे घेर लिया और उसे परेशान करने लगे। वह घबरा गई उसके हाथ से उसका बस्ता गिर गया, और सारी किताबें बिखर गई।
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वे लड़के जोर जोर से हॅंस रहै थे और उसका मजाक बना रहै थे। तभी एक कड़कदार आवाज आई -‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई किसी लड़की को इस तरह परेशान करने की। माँ, बहिन, बेटियों की इज्जत करना सीखो। आज के बाद अगर ऐसी हरकत की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।’ सारे मनचले डरकर भाग गए थे। सौम्या डर से थर थर कॉंप रही थी। जगमोहन ने कहा -‘डरो नहीं बहिन मैं उन सबकी तरफ से आपसे क्षमा चाहता हूँ।’ सौम्या ने नजरें उठाकर देखा एक हृष्टपुष्ट नौजवान उसके सामने खड़ा था। उस युवक ने झुककर सौम्या की किताबों को समेटकर बस्ते मे रखा।
और आवाज लगाई – ‘राजू….इन दीदी को घर छोड़कर आओ।’ ‘जी जग्गू दादा।’ एक बारह तेरह साल का दुबला पतला राजू सौम्या को उसके घर तक छोड़ने आया। सौम्या के मुख से कुछ शब्द नहीं निकल रहै थे, वह इतना घबरा गई थी। राजू उसे घर के दरवाजे तक छोड़कर चला गया, वह उसे धन्यवाद देना चाहती थी, पर नहीं बोल पाई।
घर आकर उसने अपनी माँ को पूरा किस्सा सुनाया। माँ ने मन ही मन जगमोहन को धन्यवाद दिया, मगर उसके मन में एक डर अभी भी समाया हुआ था। उन्होंने कहा- ‘सौम्या सब ठीक है, मगर तू सड़क वाले रास्ते से ही स्कूल जाना।’ सौम्या के मन में हमेशा यही विचार आता कि जग्गू दादा के बारे में जो धारणा माँ के मन में है, वह सही है या उसने जो रूप जग्गू दादा का देखा वह सही है।
सौम्या कॉलेज में चली गई, मगर यह प्रश्न उसे हमेशा परेशान करता था। एक दिन वह कॉलेज के बगीचे में बैठी कोई किताब पढ़ रही थी,उस दिन क्लास में लैक्चरर् नहीं आए थे, और पीरियड फ्री था। तभी उसे पास की बैंच पर बैठे कुछ विद्यार्थियों की आवाज कान में पड़ी। वे जग्गू दादा के बारे में बातें कर रहै थे।
सौम्या ने ध्यान लगाकर उनकी बातें सुनी। एक कह रहा था- ‘सब लोग जग्गू दादा से डरते हैं, मैं कहता हूँ जग्गू दादा से डरने के बजाय बुरे कर्मों से डरों। उन्होंने बुराई के खिलाफ इतना कठोर रूप धारण किया है, वे दबंग है, नीडर है, मगर उनका मन बहुत कोमल है।’तभी दूसरे ने कहा – ‘मैंने उनके अतीत के बारे में पता लगाया था।
वे पहले ऐसे नहीं थे, उनकी एक बहिन थी जो स्कूल में पढ़ती थी। एक बार कुछ दरिंदो ने उसका शील हरण किया। माता-पिता इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने आत्महत्या कर ली। तभी से वे जगमोहन से जग्गू दादा बन गए। माँ, बहिन बेटियॉं उनके लिए पूजनीय है और उनके प्रति किया दुर्व्यवहार उनके लिए असहनीय है,
वे उन दुष्कर्मियों के विरूद्ध हमेशा खड़े रहते है। तभी तीसरा बोला -‘भले ही लोग उन्हें गुण्डा कहें मगर मेरी नजरों में वे हर स्त्री के लिए मसीहा है। ‘ सौम्या को आज उसके सारे प्रश्नों के उत्तर मिल गए थे। उसका मन जग्गू दादा के प्रति श्रद्धा से भर गया। उसे यकीन हो गया कि उसके मन में जो छवि जग्गू दादा की है, वह सही है।
आज फिर उसे उसके साथ घटी घटना का स्मरण हुआ और एक बार फिर जग्गू दादा की आवाज कानों में गूंजी ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई’ और वह नतमस्तक हो गई जग्गू दादा के कर्मों के आगे।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित