ससुराल से आयी दीदी की बातों का सिलसिला सुबह से ही चल रहा था ,माँ अपनी दो महीने पहले विदा हुई बेटी से ससुराल की सारी बातें उत्सुकता से सुन रही थी ।चाय पीते जूही के कान भी वही लगे हुए थे ,क्योंकि वो तो कुछ ओर ही सुनने को उत्सुक थी ।
तभी दीदी बोली “अरे माँ एक बात तो सुनो ,वो मेरी ताई सास का बेटा है न मयंक ,उसे अपनी जूही बड़ी पसंद आ गयी ।”यही तो जूही सुनना चाह रही थी ।
“अरे नही अभी उसका एम .ए. पूरे होने तक शादी की बात नही ।”माँ बोली ।
“अरे आप मेरी ताई सास को नही जानती ,जहाँ मेरी सासु माँ सरल व सहज है ,वो उतनी ही तेज है । उन्हें बेटे का इस तरह लड़की पसंद करना ज़रा न सुहाया ,साफ़ मना कर दिया ।और तो और पग फेरे के समय जब ये मुझे लेने आ रहे थे, तो सासु माँ ने मयंक भइया को भी बोला तो ताईजी ने साफ़ मना कर दिया ।
जूही जैसे आसमान से गिरी ,अब जैसे उसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था ।
किसी तरह आँखो में आए आंसू को रोक वो आँगन में गुलमोहर तले झूले पर जा बैठी ,जो उसकी मनपसंद जगह थी ।गुलमोहर के गर्मी में लगने वाले लाल फूल उसे बड़े पसंद थे ।जब भी वो ख़ुश या उदास होती ,इसी पेड़ के नीचे आकर बैठ जाती । पेड़ जैसे उसका सखा था ।
उसे दीदी की सगाई के समय से ही मयंक का मोहक निगाह से निहारना याद आ रहा था ।
फिर जब वो लोग शगुन लेकर दीदी के ससुराल पहुँचे तो सुदर्शन मयंक उसे भी भा गया ।बारात में उसकी व मयंक की निगाहे कई बार टकराई ।वो नज़रें मिलने पर शरमा कर नज़रें झुका लेती ।
सुबह दीदी की विदा की तैयारी के समय मयंक की आवाज़ सुन उसका दिल धड़क उठा । वो आकर माँ से बोला “भाभी का समान बता दे ,चाचा जी ने कहा है कि गाड़ी में रखवा लो ।”
“हाँ हाँ बेटा ,जूही मयंक के साथ जाकर दीदी का समान बता दो ।”माँ बोली ।
दोनो को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गयी ।
जूही बोली आइए ,और दोनो सीढ़ी चढ़ने लगे ।
समान देख मयंक बोला “किसी ओर को भी बुलाना पड़ेगा ।”
जूही ने मन में सोचा “बड़ी मुश्किल से तो ये एकांत जुटा है ,शादी वाला घर है , कोई आ गया तो ,कैसा लड़का है ,इसके मन में कुछ है ,तो बोल क्यों नही रहा ।”
तभी रुक कर मयंक बोला “और हाँ अभी तो बारात में आया हूँ ,जल्दी ही बारात लेकर आयूँगा मेरा इंतज़ार करना जूही ।”
आज अपना ही नाम जैसे कानो में मिश्री घोल गया ।
“वाह क्या अन्दाज़ है ,इज़हारे मोहब्बत का ,जैसे मेरी हाँ ही है ।”जूही सोच कर मुस्कुराई ।पर उसकी शर्म से लाल हुआ चेहरा ही उसके दिल का राज खोलने के लिए काफ़ी था ।उसके बाद मयंक सीढ़ियाँ उतर गया था ।
उसके बाद दो महीने से वो इंतज़ार ही तो कर रही थी ,पर दीदी की बात सुन तो उसका दिल ही टूट गया था ।गुलमोहर जैसे अपनी सखा को उदास देख उदास था ।
।एक महीने रुक दीदी चली गई।वो भी पढ़ाई की तैयारी में लग गई ।
तभी दीदी के यहाँ से उनके रिश्ते की ननद की शादी की ख़बर आयी ।तो माँ बोली एक दो दिन के लिए जाना है ,तो तुम भी चल दो। वो भी मयंक से मिलने की आस में तुरंत तैयार हो गयी ।
पर ताईजी तो जैसे अपने बेटे को उसके साये से भी बचाना चाहती थी ।वो मायके में किसी शादी का बहाना बना मयंक को लेकर चली गई थी ।
दीदी माँ से बोली “ताईजी तो ऐसे डर रही है ,जैसे हम जूही की शादी कर ही देंगे । वैसे माँ मयंक भइया अभी भी ज़िद पर अड़े है ।
दीदी की सास बोली “अरे जूही के लिए बहुत से रिश्ते आ रहे है , मेरी भाभी उनके बेटे के लिए कह रही थी ।बस इसकी पढ़ाई पूरी होने दे फिर मैं बात करती हूँ ।”
मुझे नही करने किसी ओर लड़के से शादी ,जूही ने मन में सोचा । झूठा वादा किया है मुझसे ,तभी तो सामना करने से भी कतरा रहा है ।
लौट कर आने पर कुछ ही दिनों में उसकी परीक्षा शुरू हो गई । परीक्षा के बाद मयंक की याद उसे फिर टीस देने लगी ।
ऐसे ही एक गर्मी की शाम जूही गुलमोहर के नीचे झूले पर लेट कर कोई किताब पढ़ रही थी ।
किताब पढ़ने में जूही का मन न लगा तो उसने उसे बंद कर आँखे मूँद ली ,गुलमोहर का पेड़ लाल फूलों से लदा था ,यही तो जूही को भाते थे ,पर मयंक की याद से आजकल वो उदास रहती ।गुलमोहर भी अपनी जूही को उदास देख उदास था ।
पड़ोस में कही “दिल तो है दिल ,दिल का एतबार क्या कीजे ,”गाना बज रहा था ।जूही की आँखो से आंसू बहने लगे । तभी उसे ऐसा लगा कि मयंक उसे आवाज़ दे रहा है । उसे लग वो सपना देख रही है । दुबारा आवाज़ आने पर उसने आँखे खोली तो सामने मयंक खड़ा था ,वो उठ कर बैठ गई । मयंक बोला “अरे मुझे याद कर रो रही हो न ।”
“तुम्हें भूली ही कहाँ हूँ ।”
“सच भूला तो मै भी नही ।”
“तभी इतने दिन बाद आए ।”
“अरे सबको मना कर आया हूँ ,मम्मी मान गई है, भाभी से कहा ये ख़ुशख़बरी मै खुद तुम्हें दूँगा ।भइया भाभी दोनो साथ आए है । अब तो ख़ुश हो न ।”
अब पड़ोस में गाना बज रहा था “गुलमोहर ग़र तुम्हारा नाम होता।”
अब गुलमोहर दोनों पर फूल बरसा ख़ुश था ।
बरखा शुक्ला