” माँ, आप इसमें पैसे क्यों रखती हैं?” मुझे गुल्लक में पैसे रखते देख मेरे छोटे बेटे चेतन ने मुझसे पूछा तो मैंने कह दिया कि इससे मेरी बचत होती है।कभी ज़रूरत पड़ने पर ये पैसे काम आ जाते हैं।मेरे छह वर्षीय बेटे ने क्या समझा,ये तो मैं नहीं जानती लेकिन उसने कहा कि माँ,मुझे भी एक गुल्लक चाहिए, मैं भी बचत करूँगा तो मैंने उसे छोटा-सा गुल्लक खरीद कर दे दिया।वह उसमें दादी-नानी,मामी-चाची से मिले पैसों को उसमें डालने लगा।
एक साल बाद अपने बड़े बेटे की तरह ही मैं चेतन को भी पाॅकेटमनी देने लगी।वह उसे भी अपने गुल्लक में डालने लगा।एक दिन मैंने देखा कि चेतन का बड़ा भाई उसे ज़ोर-ज़ोर से डाँट रहा था।चेतन का गुल्लक ज़मीन पर टूटा पड़ा था,साथ में बड़े बेटे का भी लेकिन पैसे नदारद थें।बड़ा बेटा चेतन का कान पकड़कर पूछने लगा,” बता, तूने सारे पैसों का क्या किया?” ” बता दे चेतन, पैसों का क्या किया? कोई तुझे नहीं डाँटेगा।” मैंने उसे गोद में बिठाते हुए पुचकारते हुये पूछा।वह कुछ कहने ही जा रहा था कि मेरी कामवाली अपने नौ वर्षीय बेटे के साथ हाँफते हुए आई और मेरे हाथ में पैसे रखते हुए बोली, ” दीदी, कल मेरे बेटे ने चेतन बाबा से कह दिया कि फ़ीस नहीं देने के कारण वह स्कूल नहीं जा रहा है तो चेतन बाबा ने अपना गुल्लक तोड़ दिया।पैसे कम थे तो अपने भइया का गुल्लक भी तोड़ कर पैसे मेरे बेटे को दे दिया और बोला कि स्कूल में फ़ीस दे देना और स्कूल जरूर जाना।” कामवाली की बात सुनकर मैं हतप्रद रह गई।अचानक मुझे चेतन बहुत बड़ा दिखाई देने लगा क्योंकि उसने जो किया वो कोई सात-आठ साल का बच्चा तो कर ही नहीं सकता।जिस उम्र में बच्चे खेलते-कूदते हैं,किताबों से जी चुराते हैं,उस उम्र में चेतन को पढ़ाई का महत्व समझ आने लगा था।साथ ही,वह भेदभाव की भावना से परे सभी के दर्द को समझता है,सोचकर मेरी आँखें नम हो गई।कहने लगा, ” माँ, आपने ही तो कहा था कि ज़रूरत पड़ने पर …।” ” हाँ-हाँ बेटा, तुमने सही किया है।” मैंने चेतन के गुल्लक के सभी पैसे कामवाली को दे दिये, मेरे बड़े बेटे ने भी अपने पैसे उसे दे दिये।उसके बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए मैं बोली, ” सुन देवकी, आज से तेरे बेटे की पढ़ाई मेरी ज़िम्मेदारी है।” सुनकर देवकी बहुत प्रसन्न हो गई और चेतन खुश होकर बोला,” थैंक्स माँ!” और देवकी के बेटे के साथ खेलने लगा।
— विभा गुप्ता