आज फिर सिन्हा साहब के दोनों बच्चों की लड़ाई अपने चरम पर थी। यूं लग रहा था कि आज वो दोनों एक दूसरे की जान ले कर ही मानेंगे वजह, दौर दिनों के बाद उनके बेटे का जन्मदिन था। उसके लिए कपड़े और उपहार खरीदते समय उनकी नजर दुकान में रखे एक गुल्लक पर पड़ी जो काफी सुंदर था।
उन्होंने उसे खरीद लिया अब बेटे का कहना था कि ये गुल्लक उसके जन्मदिन के अवसर पर खरीदा गया है इसलिए यह मेरा है लेकिन बेटी का कहना था कि गुल्लक का जन्मदिन के उपहार से कोइ लेना देना नही है पापा ने इसे यूं ही खरीदा है
इसलिए इसे मैं लुंगी सिन्हा साहब एवम् श्रीमती सिन्हा के लाख समझाने पर भी कोई हार मानने को तैयार नहीं था अभी ये झगड़ा चल ही रहा था कि सिन्हा साहब के मित्र मिश्रा जी अपनी पत्नी के साथ आ गए उनके आ जाने से भी दोनों का झगड़ा रुका नहीं।
बच्चों को झगड़ते देख श्रीमती मिश्रा ने एक लंबा चौडा भाषण दे डाला जिसका अर्थ सिर्फ इतना था कि आज कल के बच्चे उद्दंड हो रहे हैं इन्हें छोटे बड़े की। जरा भी तमीज नहीं अंत में उन्होंने कहा माफ कीजिए सिन्हा साहब मां बाप के लापरवाही से भी बच्चे बिगड़ते हैं
आपको भी बाल बच्चों के प्रति अपने जिम्मेदारी के बारे में सोचना चाहिए खैर मैं तो इसके जन्मदिन तक हुं ही मै इन्हें बहुत कुछ सीखा के जाऊंगी आगे आप लोग जाने।
अगले दिन बड़े धूमधाम से जन्मदिन मनाया गया मिठाईयां उपहार बांटे गए दोनों बच्चे काफी खुश थे बेटा बार बार कहता जन्मदिन में मज़ा आया और अब मिश्रा आंटी के बोरिंग भाषण से भी छुटकारा मिल जाएगा
सभी मेहमान जा चुके थे और सब सोने की तैयारी में लग गए सारे सामान एवम् उपहार एक जगह रखे जारहे थे लेकिन ये क्या सारे सामान के बीच गुल्लक कहीं नहीं था बच्चे उदास थे सबसे ज्यादा तो बेटी उदास थी वो सोच रही थी कि बेकार ही में भाई से झगड़ा किया इससे तो अच्छा होता कि गुल्लक भाई ही ले लेता
दूसरे दिन सिन्हा साहब ने कहा मन छोटा करने की जरूरत नहीं चलो बाजार चलते हैं और दूसरा गुल्लक खरीदते हैं बेटे ने कहा आज एक नहीं दो गुल्लक खरीदेंगे एक मेरी बहन के लिए भी सिन्हा साहब को बेटे की बात अच्छी लगी सोचा लड़ता है
लेकिन अपनी बहन को प्यार भी करता है इतने में बेटे ने कहा मेरी एक शर्त और भी है कि बाजार हम लोगों के साथ मम्मी भी चलेगी और बाजार से लौटते वक्त आप हम लोगों को कुछ देर के लिए मिश्रा आंटी के यहां भी के चलेंगे सिन्हा साहब को ये शर्त अजीब तो लगी फिर कहा चलो ठीक है
बाजार से खरीदारी करने के बाद सभी मिश्रा जी के यहां आ गए। बेटे ने देखा उसका गुल्लक वहीं टेबल पर रखा हैं उसे रंग कर उसके पुराने लुक् को बदलने की कोशिश की गई है बेटी चिल्ला पड़ी वो रहे अपना गुल्लक इतना सुनते ही
श्रीमती मिश्रा आग बबूला हो उठी और बोली तुमलोग हमें चोर समझते हो फिर सिन्हा साहब से कहा देखिए आपके बच्चे मुझे अपने ही घर में चोर कह रहे हैं मैंने आपको कल ही कहा था कि आपके बच्चे हाथ से निकल रहे है इनपर ज्यादा ध्यान रखें बेटे ने कहा आप मेरे पापा को कुछ न कहें
और इधर देखे इतना कह उसने गुल्लक जमीन पर पटक दिया अगले पल गुल्लक चकनाचूर हो जमीन पर पड़ा था और उससे निकल कर पड़ा था गुलाबी रंग का एक हेयर बैंड बेटे ने कहा ये हेयर बैंड मेरी बहन का है जो मैंने इस गुल्लक में रखा था सारे घर को मानो सांप सूंघ गया सिन्हा साहब ने कहा चलो घर चलते हैं
गाड़ी में सभी चुप चाप बैठे थे फिर सिन्हा साहब नेकह बेटा तुम्हें पहले से पता था कि गुल्लक की चोरी श्रीमती मिश्रा ने की थी इसलिए तुमने यहां आने की बात कही थी बेटे ने कहा हां पापा मैंने देखा था कि कैसे आंटी ने गुल्लक को अपने आंचल में छुपा के लाई और अपनी गाड़ी में रख लिया
मम्मी ने कहा तो तुमने उसी समय क्यों नहीं बताया हम उस रंगे हाथों पकड़ लेते बेटे ने कहा ऐसा करने से आप लोगों का अपमान होता सब कहते कि मेरे पापा के दोस्त चोर हैं सिन्हा साहब की आंखे भर आई तभी बेटी चिल्लाई वो तो ठीक है लेकिन मेरा हेयर बैंड गुल्लक में क्यों डाला बेटे ने कहा तुम जो इतना लडती हो तो मैंने सोचा मैं भी तुम्हारी कोई प्यारी चीज छुपा दूं
बेटी का गुस्सा अपने चरम पर था उसने कहा तुमने मेरी हेयर बैंड छुपाई मैं तुम्हें नहीं छोड़ने वाली फिर दोनों आपस में भिड़ पड़े
सिन्हा साहब और श्रीमती सिन्हा हलके हलके मुस्करा रहे थे और सोच रहे थे कि क्या वे सच में अपने बच्चों के प्रति लापरवाह है जैसा कि श्रीमती मिश्रा कह रही थी
मौलिक स्वरचित एवं अप्रकाशित
प्रमोद रंजन
हज़ारीबाग़
झारखण्ड