गृहलक्ष्मी की लक्ष्मीपूजा – किरण केशरे  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज दीपावली का दिन ! समय से भी पहले उठ गई थी मैं ; त्यौहार का बड़ा दिन सौ काम !! 

माँ पिताजी को सुबह उठते से चाय फिर दोनों बच्चों कुंतल ओर सिमी का उठते ही काम शुरू ! कभी मेरे कपड़े कहाँ तो मेरा शू कहाँ ? बेटा इतना बड़ा हो गया आठवीं कक्षा में है पर लापरवाह ! 

  सिमी अपना सब काम ठीक से करती है उससे दो साल छोटी है पर बहुत ही सलीकेदार क्या बेटियां जन्म से ही समझदार होती हैं? वह सोचने लगी ! पतिदेव भी एक प्रतिष्ठित संस्थान में मैनेजर है, खुशहाल परिवार है उसका ।

उनके पास के बंगले में ही लाल साहब रहने आए थे ,,सात महीने पहले । परिवार में लाल साहब के अलावा उनकी पत्नी रेवती जी और दो बेटियां जिनकी शादी वो कर चुके, ओर एक बेटा राघव ओर बहु सुमति ओर चार साल की पोती  गुड़िया।

 वो जब रहने आए तब हमने पड़ोसी धर्म के नाते उनकी छोटी-मोटी आवश्यकताओं की पूर्ति की थी । लाल साहब रिटायर हो गए थे बेटा भी स्वयं का व्यवसाय कर रहा था, बर्तनों का अच्छा खासा व्यापार था उनका। 

थोड़ा सा हमारा सहयोग पाकर वो भी हमें अपना मानने लगे थे, रेवती जी अक्सर हमारे घर माँजी  के पास आ जाती थी, उनकी बहु सुमति हमेशा कुछ न कुछ काम में व्यस्त ही दिखती थी लेकिन उनके मुंह से कभी बहु के लिए कुछ संतोषजनक नही निकलता था ! पर माँजी हँसकर टाल देती । 

दीपावली के दिन रेवती आंटी हम सब को शाम की लक्ष्मीपूजा में आने का न्यौता देकर गई थी ,कुछ ईष्ट मित्रों के साथ साथ रिश्तेदारों को भी आमंत्रण दिया था उन्होंने,उनका व्यवसाय होने से दुकान पर बहीपूजा भी होती है ,इस नाते हमें भी थोड़ा समय निकाल कर शाम को उनके घर जाना जरूरी था ! 

“मम्मी मेरी टी शर्ट कहाँ है ! कुंतल की आवाज सुनकर उसकी तन्द्रा टूट गई” 

आज तो सब काम जल्दी जल्दी ही करना होगा, मिठाईयाँ ओर नमकीन तो दो दिन पूर्व से ही बना कर रख दिये थे लेकिन दीपावली पर जितना भी बनाओ कम ही लगता है ,उसने रसोई की खिड़की से देखा सुमति कुछ गम्भीर दिख रही थी ! रेवती आंटी की आवाज कुछ स्पष्ट नही थी ,लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे वो सुमति से ही बात कर रही थी खैर… होगा उनका परिवारिक मामला !! 

मैं अपने काम मे लग गई। शाम को आंगन में रंगोली बनाने बैठी  तो देखा सुमति ने उनके पूरे आंगन में बहुत ही सुंदर और बड़ी सी रंगोली बनाई थी और पूरे आँगन व दरवाजों को फूलों और दीप मालाओं से सजा रही थी। लेकिन उसकी शान्त मुद्रा मुझे अच्छी नही लगी ! इतना वैभव सम्पन्न  घर-परिवार ,,सुख साधन फिर भी उसकी इतनी चुप्पी खलती थी मुझे ! 

शाम ढलने लगी थी ,सभी दूर दीपों  की जगमगाहट दिखने लगी ,,हमारा घर भी दीपों  की जगमग से प्रकाशित हो उठा था। माँजी बाबुजी ओर बच्चों के साथ लक्ष्मीपूजन कर हम सबने मिठाई खाई ओर बच्चे आँगन में अनार-चकरी चलाने और आतिशबाजी करने लगे ,रात को साढ़े नौ बजे लाल साहब के घर जो जाना  था लक्ष्मीपूजन के लिए । 

रेवती आंटी का कॉल आ गया कि, तुम जल्दी ही आ जाना थोड़ी मदद हो जाएगी । मैं रेवती आंटी के घर के लिए तेज कदमों से निकल गई माँजी को यह कहकर की ,,आप लोग समय पर आ जाना । 

लाल साहब के यहाँ खूब गहमा गहमी हो रही थी, 

 गुलदस्तों ओर तोरणहारों से दुकान की सजावट की गई थी | पुरा घर गुलाब मोगरा की भीनी भीनी खुशबु से महक रहा था,असंख्य दीपों की झिलमिल ओर रंगीन बल्ब की झालरें माहौल को खुशनुमा बना रही थी। रेवती आंटी मुझे देखते ही खुश हो गई और कहने लगी बहुत अच्छा हुआ  तुम आ गई ;

अब जरा सुमति के साथ मेहमानों के स्वल्पाहार का प्रबंध देख लो! मैं रसोई की ओर मुड़ गई देखा , सुमति बड़े मनोयोगपूर्वक सारी व्यवस्था को निभा रही थी। मेहमानों का आना भी शुरू हो गया था ,कुछ ही देर में पण्डितजी भी आ गए । रेवती आंटी ने खूब भारी जरी पल्लू की साड़ी पहनी थी ;

उस पर उनके पुरानी कारीगरी के आभूषण भी ख़ूब जँच रहे थे सुमति भी सुंदर सिल्क की साड़ी और गहनें पहने सुंदर लग रही थी,,, लेकिन सहमी सी लगी। पंडित जी ने जोड़े को पूजा पर बुलाया राघव ओर सुमती आ कर लक्ष्मी जी की पूजा के लिए बैठ गए

” तभी सुमति के मायके से उसके भाई -भाभी और छोटी बहन भी आए ,उनके पहनावे में सादगी दिख रही थी ;वह भी आकर रेवती आंटी को प्रणाम कर एक तरफ बैठ गए,पर उन्होंने कोई विशेष ध्यान नही दिया सुमति के भाई और भाभी पर,रेवती आंटी अन्य मेहमानों के स्वागत सत्कार में ज्यादा ही व्यस्त दिख रही थी ! 

 पंडित जी से कुछ पूछते हुए उनकी नजर सुमति के हाथों पर गई ,,देखते ही वह माथे पर बल लाते हुए  बोल पड़ी, बहु  !!तुम्हारे हाथ में हीरे की अंगूठी कहाँ गई  ? सुमति हड़बड़ा गई थी सास का स्वर सुनकर ! 

मुझे रेवती आंटी के स्वर में एक अलग ही तल्ख़ी लग रही थी। सुमति  घबरा गई..बोली वो..मैं..मैनें तो पहनी थी माँजी पता नही कहाँ….शब्द गले में ही अटकने लगे थे,उसके! 

सुबह से काम की आपाधापी में सुमति को ध्यान ही न रहा की अंगूठी उसने पहनी ही नही थी ! रेवती आंटी बड़े तल्ख़ शब्दों में बोली बहु !! तुम तो अपने मायके से कुछ नही लाई ! कम से कम हमनें जो दिया ,उसका तो मोल जानो ! 

सुमति की आंखों से दुःख और अपमान से झरझर आंसू बहने लगे और मैं सोच रही थी क्या ये सच में लक्ष्मीपूजन है ? 

या सिर्फ परिवार और समाज में अपनी धाक ओर प्रभाव जमाने का आडम्बर ? जब घर की लक्ष्मी का ही अनादर हो रहा हो !! 

मेरा मन अब सुमति  के लिए करुणा और स्नेह से भर गया था, उसकी अनकही चुप्पी का अर्थ वह अच्छी तरह समझ गई थी ! पंडित जी लक्ष्मी पूजा के मंत्र पढ़े जा रहे थे ओर मैं भारी मन लिए सुस्त कदमों से अपने घर की ओर चल पड़ी ! 

    किरण केशरे

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!