माधुरी एक महीने से अपने नए घर के गृहप्रवेश की तैयारियों में व्यस्त थी, अपना घर जिसका सपना उसने ना जाने कब से संजो कर रखा हुआ था और आख़िर वो दिन आने वाला था पर क्या सब कुछ उसकी सोच के मुताबिक़ होने वाला था या फिर कुछ ऐसा होने वाला था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी ।
“ बेटा महेश तुने सबको न्योता दे दिया था ना अपने घर के गृहप्रवेश का …कोई बाकी तो नहीं रह गया है… नहीं तो गाँव घर में बहुत बदनामी हो जाएगी कि सरिता देवी के बेटे ने हमें पूछा तक नहीं बड़ा घमंड हो गया है उसे अपने घर का।”सरिता जी ने अपने बेटे से कहा
“ माँ आपने जैसा बोला था सब वैसे ही किया है .. पर क्या ज़रूरी है इतने लोगों को न्योता देना?” महेश हिचकिचाते हुए बोला
“ काहे ज़रूरी नहीं है ,जब सबके घर से न्योता आता है तो सबको बुलाना भी तो पड़ेगा, घर में पहली बार कोई ख़ुशी की बात है तो सबको भोज भात खिलाना चाहिए ।” सरिता जी कह कर अपना चश्मा ठीक कर टीवी देखने में व्यस्त हो गई
महेश और माधुरी ने सरिता जी के कहे अनुसार सब तैयारी कर लिया था पर अभी तो बहुत कुछ बाकी था जिसका अंदाज़ा उन्हें था ही नहीं ।
माधुरी के मायके से भी माता-पिता,भाई-भाभी, बहन बहनोई और उनके दो दो बच्चे भी आ गए थे ।
ससुराल पक्ष से जेठ-जेठानी उनके दो बच्चे, ननद ननदोई और उनके दो बच्चे उपर से जेठानी के मायके वाले और ननद के ससुराल वालों को भी न्योता दिया गया था ।
सास के कहने पर ससुराल पक्ष से गाँव घर से भी बहुत लोग एक दिन पहले जुट गए ।
“ माधुरी मेहमानों को किसी बात की कमी नहीं होनी चाहिए,पहली बार सब हमारे घर किसी फ़ंक्शन के लिए आए हैं तो ख़ातिरदारी ठीक से करनी होगी, माँ ने कहा है किसी को शिकायत का मौक़ा नहीं देना।” महेश ने पत्नी से कहा
“ जी आप देख ही रहे हैं मैं इतने दिनों से इन सब में ही लगी हूँ, अच्छा सुनिए ,मेरी माँ कह रही थी बेटी पूजा के लिए अच्छे से तैयार हो जाना नथिया टीका सब पहन लेना , जरा आप माँ जी से पूछो ना मेरे गहने कहाँ रखे हैं … मैं भी अच्छी तरह तैयार होकर अपने नए घर में प्रवेश करना चाहतीं हूँ बिलकुल नई नवेली दुल्हन की तरह ।” माधुरी ने कहा
“ अच्छा पूछ लूँगा… कल सुबह ही पंडित जी आ जाएँगे पहले यहाँ पूजा होगी फिर नए घर जाएँगे ।” कहकर महेश बाकी काम देखने चल दिया
रात होने को आई माधुरी ने देखा महेश ने गहने लाकर नहीं दिए तो वो खुद ही सास के पास गई जो बहुत सारी औरतों के बीच बैठी थी उन्हें किनारे की ओर बुला कर बोली,” माँ मेरे गहने कहाँ रखे हैं… वो सब कह रहे थे कि गृह प्रवेश पूजा में अपने सारे गहने पहन लेना पूरा तैयार हो जाना शुभ काम में गहने अच्छे लगते हैं ।”
“ ये क्या बात कर रही है बहू… इतने लोग आए हुए है गहने लॉकर में रखे है उधर ही रहने दो.. किसी ने इधर-उधर कर दिया तो बेकार मुसीबत हो जाएगी ।”सास माधुरी को कह कर फिर मंडली के साथ गप्पों में लग गई
दूसरे दिन सब तैयार होकर पहले घर में पूजा कर घर से निकलने की तैयारी कर रहे थे तभी सरिता जी ने महेश से कहा,” पहले सबको गाड़ी में बिठा दो फिर तुम लोग बैठ जाना।”
सबके लिए महेश ने गाड़ियों की व्यवस्था कर रखी थी पर जब खुद बैठने की बारी आई तो किसी गाड़ी में जगह ही नहीं बची ,उसकी अपनी कार में पहले से ही माँ बहन बहनोई का परिवार जाकर बैठ गया था ऐसे में पड़ोसी ने उन्हें अपनी कार में बिठाकर उनके नए घर तक पहुँचा दिया ।
मुख्य दरवाज़े के बाहर पंडित जी ने पूजा करवाने के बाद किसी कन्या को और बहन को कुछ नेग देने की बात कही।
महेश और माधुरी एक दूसरे को देखने लगे उन्होंने सबके लिए कपड़े ज़रूर ले रखे थे पर ऐसे अचानक से देने की बात सुन दोनों सोच में पड़ गए ।
“ क्या सोच रहा है एक तेरी भतीजी को और तेरी बहन के हाथ में कुछ रख तभी तो प्रवेश कर सकता है ।”सरिता जी ने कहा
महेश ने थोड़े पैसे दिए तो सरिता जी ने कहा,” ऐसे क्यों कंजूसी कर के दे रहा है… कुछ सोने का सामान देना चाहिए था ।”
महेश नज़रें झुका कर खड़ा हो गया ।
“ अभी तो नहीं है माँ बाद में दे देंगे ।” कह माधुरी ने आगे की पूजा करने की गुज़ारिश पंडित से की
पूजा के दरमियाँ कुछ रस्मों में सभी बड़ों को कुछ सम्मान रूप में देने के लिए कहा गया ।
माधुरी और महेश ने अपनी क्षमतानुसार सबका सम्मान किया।
पंडित जी ने भी बहुत जगह पूजा के दौरान यहाँ वहाँ पैसे चढ़ाने की बात कह कर बहुत पैसे निकलवा लिए ।
ख़ैर किसी तरह पूजा ख़त्म होने के बाद खाने की व्यवस्था की गई थी वो भी सम्पन्न होने के बाद लोगों के बीच घर की चर्चा होना लाज़िमी था ।
जितनी महेश और माधुरी की हैसियत थी उन्होंने अपने अनुसार सब अच्छा ही किया था पर कमियाँ निकालने वाले उसमें भी बाज नहीं आ रहे थे ।
दूसरे दिन जब महेश की बहन जाने लगी सरिता जी ने महेश और माधुरी को अपने कमरे में बुलाया,” तुमने कहा था ना बहन को सोने का कुछ दोगे अब वो जाने वाली है तो दे दो फिर कब दोगे?”
“ माँ गृह प्रवेश में इतने लोगों को न्योता दिया सबको कपड़े और सब इंतज़ाम में अब हाथ खाली हो गया है तुम बहन को समझा देना बाद में जब हालात ठीक होंगे दे दूँगा ।” महेश ने माँ से विनती करते हुए बोला
“ पगला गए हो क्या महेश …अरे सब क्या कहेंगे बहन को ख़ाली हाथ भेज दिया… ऐसा करो माधुरी के जो गहने है उनमें से ही कुछ दे दो…इसको बाद में बनवा देना ।” सरिता जी ने कहा
माधुरी महेश की ओर देखने लगी और नज़रों में ना की याचना थी ।
पर सरिता जी ये सब कहाँ सोचने वाली थी अपने कमर में लटका चाभी का गुच्छा निकाला और माधुरी के गहने में से एक कान का झुमका महेश को देते हुए बोली,” जाओ ये बहन को दे दो ।”
साथ ही एक छोटा सा टॉप्स निकाल कर बोली ,” ये भतीजी को दे देना कौन सा बार बार गृह प्रवेश करोगे.. घर के लोग ख़ुश रहे यही तो चाहिए ।”
महेश लाचार सा माधुरी की ओर देखते हुए माँ से बोला,” माँ एक बार सोच लेती…ये सब गहने माधुरी के मायके से उसे मिले हैं… इनपर बस इसका हक़ है ।”
“ ज़्यादा बीबी की तरफ़दारी मत कर जो कह रही हूँ वो कर।” सरिता जी की कड़क बोली सुन महेश भी कुछ बोल ना पाया
माधुरी झपटकर वहाँ से चली गई जी तो किया आज वो सारे क़समें वादे तोड़ दे जो उसने महेश से किए थे ।
“माँ को कभी दुख मत देना और वो जो भी बोले कभी पलटकर सवाल मत करना उन्हें बड़ी भाभी ने कभी सम्मान नहीं दिया तुमसे ये उम्मीद करूँगा तुम उन्हें सम्मान दो।”
घर में आए सारे रिश्तेदार अब चले गए थे ।
माधुरी रसोई में खाना बनाने में व्यस्त थी तभी उसे महेश की आवाज़ सुनाई दी जो थोड़े ग़ुस्से में किसी से कह रहा था ।
माधुरी ये सुनते ही आवाज़ की तरफ़ आई और दरवाज़े पर ही ठिठक कर खड़ी हो गई ।
“ माँ आज तुम्हें एक बात कहना चाहता हूँ… सुन कर तुम्हें अजीब तो लगेगा पर लग रहा है अगर आज ना बोला तो मैं किसी सम्मान के लायक ना रहूँगा।”महेश माँ से कह रहा था
“ कहना क्या चाहता है साफ़ साफ़ कह ।” सरिता जी तीखे तेवर दिखाते हुए बोली
“ माँ ये घर मेरे पसीने की कमाई और तुम्हारी बहू के बहुत शौक़ों को मार कर बनाया है… तुमने भी देखा होगा मैंने शादी के बाद कभी उसे कुछ भी ख़रीद कर नहीं दिया… दोनों छोटे बच्चों की परवरिश भी हम साधारण तरीक़े से ही कर रहे थे क्योंकि हमारा मक़सद अपना घर बनाने का था पर ये नहीं पता था मेरी माँ को गृह प्रवेश के नाम पर हमें बर्बाद करने का मन था…मैं नहीं जानता था तुम इतने लोगों को न्योता देने बोलोगी और सबको कपड़े देने चलो यहाँ तक तो मैंने सब किसी तरह मैनेज कर लिया पर माधुरी के गहने क्यों…शायद उसे भी भाभी की तरह तुम्हें जवाब दे देना चाहिए था मेरे गहने पर मेरा अधिकार है पर वो नहीं बोल सकी क्योंकि मैंने ही कह रखा था माँ का सम्मान करना पर तुमने क्या किया उसकी चुप्पी को कमजोरी समझ उससे वो सब करवाती गई जिसके लिए भाभी मना करती थी और इसलिए वो तुम्हें ज़रा नहीं सुहाती थी … तुम मेरी माँ हो …माधुरी मेरी पत्नी ….दोनों का सम्मान मुझे प्यारा है पर उसरे गहनों की कीमत पर नहीं… उसके जितने गहने बचे है वो उसे वापस दे दो…उसपर बस उसका अधिकार है ।”
सरिता जी महेश को कुछ कहने को मुँह खोलती उसके पहले ही महेश ने कहा,” कुछ भी कह कर मुझे सुनाने की कोशिश मत करना माँ तुम्हें सम्मान चाहिए तो उसे सम्मान के साथ उसके गहने दे दो… सब कह रहे थे महेश की बीबी को देखो लोग गृह प्रवेश करते तो शादी में जैसे गहने पहनते वैसे तैयार होते पर इसके पास लगता कुछ बचा ही नहीं है घर बनवाने के चक्कर में सारे गहने बेचने पड़े बेचारे को … बता नहीं सकता सुनकर कितना बुरा लगा पर तुमने जैसे मुझे कहा वैसे ही माधुरी को भी और हम चुप हो गए पर बेटी और पोती के लिए लॉकर खोल कर गहने निकाल कर दे दिए ।”
सरिता जी बेटे की बात सुन कर स्तब्ध रह गई आज वो बेटा जो हमेशा माँ माँ कर उनकी किसी बात को नहीं टालता था आज अपनी पत्नी के लिए बोल उठा उन्हें आज अपने पति की बात याद आ रही थी…सरिता बेटों के ब्याह के बाद अपना स्वभाव बदल लेना नहीं तो किसी पर अति की तो वो बोल पड़ेगा और आज उन्हें एहसास हो रहा था सीधे सादे बेटे बहू से अपनी हर बात मनवाने का नतीजा उनके सामने था ।
माधुरी दूर से सोच रही थी पति जो कर रहे वो सही है या सास ने जो किया वो घर के हित के लिए सही था ??
सरिता जी ने पति की बात याद आते गहने माधुरी के हाथ में देते हुए कहा,” बहू मैं कुछ ज़्यादा ही ज़्यादती कर रही थी लो अब अपने गहने सँभालो… और हाँ ये दो गहने मेरी तरफ़ से तुम्हें जो मैंने गृह प्रवेश के नाम पर तुमसे बिना पूछे निकाल कर बेटी और पोती को दे दिए थे ।”
माधुरी असमंजस में थी ये ले और नहीं तभी महेश ने कहा,” रख लो माधुरी ये तुम्हारी अमानत है जहाँ रखे थे वहाँ सुरक्षित नहीं थे ।”
सरिता जी की नज़रें झुकी हुई थी, बेटा कुछ गलत तो नहीं कह रहा था…उन्होंने बस गृह प्रवेश में दिखावे के चक्कर में बेटे से इतना ख़र्च करवा दिया इसका अंदाज़ा शायद उन्हें भी नहीं था उपर से बहू के गहने देकर वो बेटे बहू की नज़रों में पहले जैसे सम्मान की हक़दार शायद अब नहीं रह पाए ।
दोस्तों बहुत से घरों में ऐसा आज भी होता है…कुछ माएँ बच्चों को उनकी परिस्थितियों के अनुसार सब कुछ करने को कहती है कुछ समाज में दिखावे के चक्कर में बेटे के हालात को भी नज़रअंदाज़ कर देती है ।
आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
आपकी सहमति असहमति दोनों का सम्मान करती हूँ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# बेटियाँ जन्मोत्सव प्रतियोगिता (4th)