अब बहुत हो गया,अब मेरा इस घर में गुजारा मुश्किल है।आप मुझे एक कमरा लेकर दे दो मैं रह लूंगी पर अब इस घर में नहीं रह सकती,लगभग झुंझलाते हुये नताशा मिहिर से बोली।
अभी तीन वर्ष पहले ही इस घर में दुल्हन बन कर आई नताशा एक बेटे की माँ बन चुकी थी,पति मिहिर और सास ससुर के साथ घर में रहती थी।मिहिर की माँ जानकी जी एक घरेलू महिला थी और उसके पिता जगदीश जी दो वर्ष पूर्व रिटायर होकर ईश्वर के भजन कीर्तन और पोते के साथ खेलकर समय व्यतीत कर रहे थे।
नताशा एक आजाद ख्याल तबियत की युवती थी,तीन भाईयों की एकलौती बहन थी तो मायके सबकी दुलारी थी।रोक टोक तो कभी उसके लिये थी ही नहीं तो उसको जानकी जी का टोकना बहुत खलता था।
आज तो हद ही हो गई वो अपने बेटे को फ्रूटी पिला रही थी कि जानकी ने आकर फ्रूटी छीनकर अलग रख दी और बोली कि अगर पिलाना है तो ताजा जूस पिलाओ ये डिब्बाबंद चीजें बच्चे को नुकसान करेगी ये सब मत दिया करो माधव को वो बीमार हो जायेगा।बस इतनी सी बात पर नताशा का दिमाग गरम हो गया और उसने एक की अठारह सुना दी जानकी जी को,और कमरे में जाकर रोते रोते अपनी मम्मी को सारी बात बता दी।उसकी माँ ने कहा कि कोई जरुरत नहीं है साथ रहने की मिहिर से बोलो कि अलग घर लेकर दे तुम्हें…….
मिहिर भी रोज रोज के लड़ाई झगड़े से परेशान हो चुका था।उसे पता था कि जानकी जी गलत नहीं हैं,वो सही टोकती हैं पर नताशा का गरम दिमाग हमेशा ही घर में क्लेश करवा देता है।वो भी क्या करे वो एकलौती संतान है माता पिता की,उनको कैसे छोड़ दे…मैं समझाउंगा नताशा को कि माँ की बात पर नाराज मत हुआ करे।
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गृहप्रवेश (भाग 3) – मंजरी त्रिपाठी
मंजरी त्रिपाठी