दिवाली की छुट्टियां आने बाली थी,सबिता ने अपने पति दीपेन के नाक में दम कर रखा था।कहे देती हूं, या तो दीवाली पर मां को यहां ले आओ या हम लोग वहीं चल कर दिवाली मनायें के।नहीं तो मैं मायके चली जाऊंगी।
अच्छा बाबा मायके जाने की धमकी तो मत दो कम से कम,बैसे भी तुम औरतों का ये पेटेंट मौलिक अधिकार बन चुका है कि यदि जरा सी मन की नही हुई तो दे दो धमकी मायके जाने की।पहले तो अपनी अदायें दिखा कर बन्दे को अपना गुलाम बना लो फिर धमकी देकर उसकी भावनाओं से खिलवाड़ करो। ये तो इमोशनल अत्याचार हुआ।
अच्छा, बाबा बॉस से बात करता हूं कि मेरी छुट्टियां मंजूर करदें तो फिर दिवाली हम गांव में ही मनाऐगे मां के साथ या मां राजी हुई तो उनको यहां ले आयेंगे अपने घर।
अपने घर से मतलब आपका क्या है ये घर मां का भी तो है।मां ने ही तो आपको मुझे सौंपा है तो अब हमारा भी तो यह कर्तव्य बनता है कि मां को गांव से यहां लाकर अपने साथ रखें और उनको यह अहसास करायें कि ये घर उनका भी है न सिर्फ मेरा तुम्हारा।
जानते हो दीपेन मां बाप तो घर की नीव होते हैं,यदि नीव पक्की होगी तो घर भी मजबूत बनेगा,यानी यदि मां हमारे साथ रहेंगी तो हमें उनका आशीर्वाद हमेशा मिलता रहेगा।
आशीर्वाद की कीमत मुझसे अधिक कौन समझेगा,बचपन में ही जब मेरे सिर से मां-बाप का साया, उठ गया तो मेरे मन में सदैव मां की ममता व उनके प्यार की छांव के लिए तरसती रही। लेकिन अब जब भगवान ने मेरी सुन ली है तो मै मां के बिना नहीं रहूंगी।
अच्छा बाबा,अब धमकियां देना बन्द करो अगले सन्डे ही चलते हैं मां से मिलने फिर मां को यहां अपने साथ लेकर ही आयेंगे। लेकिन पहले ही कहा देता हूं कि मेरी मां शुरु से गांव में ही रही हैं शहर के तौर तरीकों से वे पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।यदि उनके किसी व्यवहार से तुमको कोई परेशानी या असुविधा हुई तो मुझसे मत कहना।
दूसरे दिन सबिता व दीपेन गांव पहुंच जाते हैं,मां उनको यों अचानक आया देख कर पुलकित तो है कुछ भौंचक सी भी हैं। क्यों कि पहली बार बहू को देख रही हैं।
दीपेन ने कुछ महीनों पहले जब सबिता से कोर्ट मैरिज की थी तो मां को आकर आशीर्वाद देने को कहा था।
दीपेन की कोर्ट मैरिज की बात जानकर उसकी मां सुमित्रा उससे नाराज़ हो गई थी।
दो-टूक जबाव दिया था बेटे को जब शादी अपनी मर्ज़ी व पसंद से करली तो आशीर्वाद भी वे कोर्ट वाले ही दे देंगे।इसके बाद दीपेन की हिम्मत ही नहीं हुई थी मां से कुछ कहने की…..लेकिन जब सबिता ने जिद पकड़ हीली है मां को यहां लाकर अपने साथ रखने की,तो उसने भी यह सोच कर हथियार डाल दिए हैं,कि आखिर तो मां हैं कब तक नाराज़ रहेंगी अपने बेटे बहू से …. और फिर उसे सबिता पर पूरा भरोसा है कि वह अपने प्रेमिल स्वभाव से मां कादिल जीत ही लेगी।
सबिता को साड़ी में देखकर वह सिर पर पल्लू लेकर मां के चरण स्पर्श करतेदेख कर मां की
भाव भंगिमा कुछ बदल सी रही है। वर्ना सुमित्रा जी नेने तो बहू की छवि मन में ऐसी सोच रखी थी कि शहर थी लड़कियां तो मॉडर्न होती हैं उनकापहनावा तो जीसं पैन्ट ही होता है।न मांग में सिंदूर न माथे पर बिंदी और न हाथ भर भर चूड़ियां।कयोंकि उनके दिमाग़ में तो बहू थी यही छवि अंकित थी।
पहली नजर में ही सबिता उनके मन को भा गई सबिता को सुमित्रा जी ने ने ढेरों आशीर्वाद दे डाले। जिनके लिए सबिता का मन न जाने कब से तरस रहा था।
जब दीपेन वह सविता ने कहा कि वे दोनों उनको शहर ले जाने आये हैैं,तो उनको आश्चर्य हुआ,कि कैसी बहू है आजकल की लड़कियां तो जहां अकेले रहना पसंद करती हैं अपने पति के साथ,तो ये दोनों मुझे शहर भला किस लिए ले जारहे हैं।
दूसरे दिन सुबह शहर के लिए निकलना था। सुमित्रा जी के मन में विचारों की ऊहापोह चल रही थी कि जैसा कि आस-पड़ोस की औरतें बाते बताती रहतीं थीं कि फलां की बहू ने शहर। े जाकर अपनी सास को नौकरानी बना दिया है,कहीं मेरे साथ भी तो ये लोग ऐसा ही नही करने बाले।फिर दूसरे मन से आबाजआयी कि सभी लोग तो खराब व एक जैसे नहीं होते।बैसे देखने में तो सबिता बहू बड़ी सुशील व मन की अच्छी लग रही है।
कुछ दिन जाकर साथ रह देख लेती हूं यदि इनके व्यवहार में कुछ गलत लगा तो यहीं अपने घर में बापिस आजाऊगी।
दूसरे दिन बहू बेटे के साथ उनके घर आजाती है।गाडियां उतरते ही सबिता कहती है मां आप दो मिनट यही दरबाजे पर रूकिए, मैं आरती का थाल लेकर आती हूं आखिर तो आपका आपके इस नया घर में ग्रह प्रवेश तो बनता ही है। क्योंकि अबसे ये घर आपका भी है। आपको अब से हमारे साथ ही रहना है।बिना मां के घर में रौनक कहां होती है मां। सबिता के मुंह। े ऐसी बातें सुन कर उनका मन गदगद हो जाता है वे सबिता को ढेरों आशीर्वाद दे डालती हैं।
सबिता कहती है आपके रूप में मुझे मेरी मां मिल गई है तो सुमित्रा जी भी कह ने से पीछे नहीं रहती मुझे भी तो तेरे रूप में एक प्यारी। सी बेटी मिल गई है।अरे बाबा तुम मां बेटी का भरत मिलाप हो गया होते घर के अंदर चलें जोरों की भूख लगी है।
देखा बेटी इससे हम मां बेटी का प्यार देखा नही जा रहा , चल कुछ अच्छा सा बना कर खि लाती हूं तुम दोनो को। जब तूने ग्रह प्रवेश किया ही हैं तोमै भी तो इस घर में पहली रसोई बनाने की प्रथा अपनाउंगी।तीनों एक-दूसरे की तरफ देखत मुस्कराते हुए घर में प्रवेश करते हैं।।
स्व रचित व मौलिक
माधुरी
#यह घर तुम्हारा भी है।
पोस्ट करने से पहले एक बार पढ़ भी लीजिए। अधिकतर शब्दों की हिज्जा में त्रुटि है
Absolutely
आज के समय में यह शायद दिवास्वप्न जैसा ही है ।वास्तविक जीवन में अगर ये सौहार्द आ जाये तो स्वर्ग धरती पर उतर आये।