गुड न्यूज – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

‘दादू! आपके लिए ‘गुड न्यूज’ है। मेरा इंटरव्यू बहुत बढ़िया हुआ और मेरा चयन हो गया है। अभी मैं नियुक्ति-पत्र  लेने के लिए स्कूल में ही रुकी हूँ।’ रिद्धि फोन पर चहक रही थी।

‘शाबाश! मेरी लाडो!’ कहकर उसके दादू कुछ और पूछना चाहते थे कि ‘बाकी सारी बातें घर आकर बताऊंगी।’ कहकर रिद्धि ने मोबाइल बंद कर दिया।

रिद्धि अपने नगर के आर्मी स्कूल से बोल रही थी। उसने गणित में मास्टर डिग्री लेकर बी.एड किया है और कुछ दिन पूर्व ही उसने इस पद के लिए आवेदन दिया था। आज उसी संदर्भ में वह इंटरव्यू देने गई थी और इसमें सफलता मिलते ही उसने सबसे पहले स्वयं अपने दादू को खुशखबरी दी थी।

घर में रिद्धि के दादा-दादी और मम्मी-पापा- सभी उसके इंटरव्यू के संबंध में जानने के लिए उत्सुक थे और उसके फोन की प्रतीक्षा कर रहे थे।अत: ‘शाबाश!’ शब्द सुनकर रिद्धि की माँ-नलिनी भी अपने बाबूजी( ससुरजी) के पास आ चुकी थी।

‘बहू! हमारी लाडो ने एक बार फिर से हमें ‘गुड न्यूज’ दी है। ईश्वर सदैव उसके सहायक रहें और जीवन की सब परीक्षाओं में सफल रहकर वह हमेशा अपने नाम को सार्थक करती रहे।’

‘हां, बाबू जी! प्रसन्नता से भावुक नलिनी ने तुरंत बाबूजी को प्रणाम किया और प्रसन्नता से भीग चुके नेत्रों संग पुनः किचन में आ गई और एकाएक 22 वर्ष पूर्व का रिद्धि के जन्म से जुड़ा परिदृश्य भी उसकी स्मृति-पटल पर साकार हो गया।

    ‘नमस्ते समधी जी! हियर इज ए ‘गुड न्यूज’ फॉर यू ! आप एक नन्हीं सी परी के नाना बन गए हैं। आपको बहुत बधाई हो। मां और बिटिया दोनों स्वस्थ हैं। इस नन्हीं सी लक्ष्मी के दर्शन के लिए आपका हार्दिक स्वागत है।’

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लेबर रूम से बाहर खड़े रहकर रिटायर्ड बाबूजी जी द्वारा अपने पापा को दिए गए इस संदेश को ‘गुड न्यूज’ से जुड़ा सुनते ही सहसा नलिनी ‘आत्मग्लानि’ से भर उठी थी, ‘ओह! मैं कितनी गलत थी। मैं इस युग की स्त्री हूँ और मार्डन होने का दंभ भी भरती हूँ, लेकिन कैसे मैंने ‘पुत्र प्राप्ति’ की चाह को अपने मन के कोने में सबसे छिपा रखा था ? मुझसे कहीं अधिक मार्डन तो तथाकथित पुरानी पीढ़ी के कहलाए जाने वाले हमारे बाबूजी हैं, जिन्होंने अपनी वंश बेल के पहले कन्या-फल को हृदय से स्वीकार किया है।’

दरअसल अपने मायके की हमेशा ही लड़कों को विशेष अहमियत दिए जाने वाली सोच में पल-बढ़कर नलिनी का अपना मन-मस्तिष्क भी इस संकीर्णता का शिकार हो चुका था। बाहर से तो वह भी ‘बेटा-बेटी एक समान’ का दावा भरती थी किंतु उसकी संकीर्ण सोच पहली संतान को पुत्र रूप में पाने के रूप में एक ‘ग्रंथी’ के रूप में उसके मन के किसी कोने में छिपी हुई थी। इसीलिए पहली संतान के रूप में बेटी के जन्म की खुशी भी मन के उसी कोने पर

 उदासी की छोटी सी बदली बनकर छा गई थी, किंतु बाबूजी की पैनी नजरों से यह बदली ओझल नहीं हो पाई थी। उनकी की नजरों ने इस ‘बदली’ को भांप लिया था और अपने इस संदेश से उन्होंने इस बदली को छंटने का ही रास्ता दिखाया था।

फिर,नलिनी के पिता को अपनी पोती के जन्म का शुभ समाचार देकर वे तुरंत नलिनी के निकट आए थे, ‘बहू बेटा ! हमारी संतान हमें ईश्वर द्वारा दिया एक अद्भुत उपहार होता है। इसका  स्वागत बुझे एवं शंकालु मन से नहीं अपितु मुस्कुराकर करना चाहिए। ईश्वर अपना ही अंश हमें हमारी संतान के रूप में सौंपता है। अतः उसके हर रूप को हमें प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करना चाहिए।’

बस फिर क्या ? नलिनी की ‘आत्मग्लानि’ की बदली सहसा प्रसन्नता बनकर झमझम बरस उठी और उसने रिद्धि को कसकर अपने हृदय से लगा लिया था।

बस वह दिन था और आज का दिन है। रिद्धि ‘गुड न्यूज’ शब्द का पर्याय बनकर हमेशा सारे घरभर में छाई रही है।  दादू की छत्र-छाया में पली-बढ़ी रिद्धि दादू के समान ही सदैव आत्मविश्वास से भरपूर रही और कभी शिक्षा की उपलब्धियों,कभी स्पोर्ट्स की प्राप्तियों और कभी सांस्कृतिक गतिविधियों की प्रतिभागिताओं से समस्त परिवार का आंचल खुशियों से भरती रही, लेकिन हमेशा इन सबकी पहली सूचना वह अपने दादू को ही देती रही।

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आज भी उसने अपनी इसी परंपरा का निर्वाह किया था।

तभी बाबूजी की आवाज नलिनी को वर्तमान में ले आई, ‘बहू, रिद्धि के आने से पहले उसका मुंह मीठा करवाने के लिए शगुन के रूप में थोड़ा सा हलवा तो बना लो,उसकी पसंदीदा मिठाई मैं उसे संग ले जाकर शाम को लाऊंगा।’

हां जी, बाबू जी ! कहते हुए मन ही मन नलिनी सोच रही थी कि असली ‘गुड न्यूज’ तो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हमारे संस्कार और विचार ही होते हैं, जो हमें जीवन का सही मार्ग प्रशस्त करते हैं । दरअसल पुत्रियों को दोयम दर्जा देने का उलाहना हमेशा पुरानी पीढ़ी को ही दे दिया जाता है। जबकि कई बार सच्चाई इससे उलट भी होती है और तब हमारे बुजुर्ग ही हमारी इस सोच का परिष्कार कर देते हैं।

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब

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