संजना अपने कमरे में अलमारी में कपड़े एडजस्ट करके रख रही थी तभी उसको बाहर से कुछ आवाजें सुनाई पड़ीं। उसकी दादी मां और सासू मां के बीच बात हो रही थी ।
दादी मां सासु मां से कह रही थी-” बेटा एक हफ्ता हो गया है मैं सत्संग नहीं गई हूं, आज तो तुम मुझे वहां लेकर चलो।”
तभी एक कड़क आवाज सुनाई पड़ी, जो उसकी सासू मां की थी, उन्होंने कहा – अरे मां जहां एक हफ्ते नहीं गईं, वहां दो-चार दिन और भी मत जाइए । अभी मुझे बहुत काम है। आज मुझे नारी संगठन कार्यालय जाना है। फिर वृद्धाश्रम जाना है । अभी तो मैं बिल्कुल भी फ्री नहीं हूं। उसके बाद जब समय होगा तब लेकर चलूंगी आपको । टी• वी• में भी सत्संग आता है उसको सुन लिया करिए। बाहर जाना जरूरी तो नहीं हुआ और अगर घूमने का मन है तो कभी भी घूम लीजिए।” एक ही बार में सरिता ने पूरी बात कह दी। संजना अपने कमरे से यह बातें सुन रही थी।उसे अपनी मम्मी की याद आ गयी जो उसकी दादी को समय-समय पर सत्संग ले जाती हैं । ऐसा नहीं कि वह बाहर का कोई काम नहीं करती। उनका एनजीओ भी है, लेकिन उनका कहना है “कि सबसे पहले घर के बुजुर्ग हैं। अगर वह खुश हैं, तो घर में सारी खुशियां हैं।” बस यही बात संजना को हमेशा याद रहती है ।
आज उसे अपनी सास की बात अच्छी नहीं लगी। लेकिन वह कर भी क्या सकती थी उसकी शादी का अभी एक महीना ही हुआ था। वह क्या बोल सकती थी। लेकिन उसको अपनी दादी सास बिल्कुल अपनी दादी की तरह लग रही थी । उसका मन कर रहा था कि वह उनको सत्संग ले जाए ,लेकिन वह अपनी सासू मां के स्वभाव से परिचित हो गयी है । उनकी मर्जी के बिना घर में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता ।
थोड़ी देर में वह अपने कमरे से बाहर आई। तब तक उसकी सासू मां जा चुकी थी। वो दादी के कमरे में गई और उनके पास बैठकर उनसे बातें करने लगी।
तभी दादी सास ने संजना से पूछा- बेटा तू कार चला लेती है?
सजना को यह प्रश्न कुछ अजीब सा लगा कि वह ऐसे क्यों पूछ रही हैं ? फिर उसने उत्तर दिया -” हां दादी चला लेती हूं।”
अरे वाह ! यह तो बहुत अच्छी बात है। -दादी खुश होते हुए बोली ।
फिर थोड़ी देर चुप रह कर बोली- “मुझे लेकर सत्संग भवन चलेगी?”
उनकी आवाज में इतनी उत्कंठा थी ,जैसे वह संजना से हां में ही उत्तर सुनना चाहती थी।
सज्जना ने आश्चर्य से उनकी तरफ देखा, सोचा दादी मां ऐसे क्यों उससे कह रही है ? जबकि अभी थोड़ी देर पहले सासू मां इतना बोल कर गई है ।
फिर वह बोली – “लेकिन दादी , मम्मी जी से पूछा नहीं है वह नाराज होंगी।”
दादी के माथे पर सिलवटें और सिकुड़ गई थोड़ा गुस्से वाले भाव में बोली – तो मैं कुछ नहीं। मैं तेरी सास की सास हूं। वह तुझे कुछ बोलेगी तो मैं जवाब दूंगी।”
संजना को दादी की सत्संग में जाने की व्याकुलता समझ में आ गई । कुछ पल के लिए वो कुछ सोचने लगी फिर बोली- “ठीक है चलिए दादी। लेकिन रास्ता आपको बताना पड़ेगा।”
दादी उसकी बात सुनकर खुश हो गई और बोली-” हां हां मुझे तो पूरा रास्ता मालूम है तू बस मुझे लेकर चल।”
स॔जना दादी की खुशी देखकर खुश हो गई और शरारती अंदाज में जैसे अपने मायके में दादी से बोलती थी उसी तरह यहां दादी से बोली -“मगर दादी गोलगप्पे खिलाना पड़ेगा आपको । खिलाएंगी? “
दादी ने स्वीकारते हुए उसको अपने गले से लगा लिया।
दोनों हंसते हुए कमरे से बाहर निकल ही रहीं थी कि सरिता वापस आ गयी। दोनो को ऐसे देखकर पूछा- क्या हुआ मां ? बहुत खुश दिख रहीं हैं। सुबह तो बहुत दुखी थीं”।
संजना की दादी सास मुस्कुराते हुए बोली- हां खुश तो हूं। क्योंकि अब मुझे सत्संग जाने के लिए तुम्हारा इंतजार नही करना पड़ेगा।”
उनकी यह बात सुनकर सरिता को आश्चर्य हुआ और वह तपाक से बोली -क्यों ? क्या अब आप सत्संग नहीं जाएंगी।”
दादी सास बोली -“मैं सत्संग जाऊंगी , लेकिन मुझे अब मेरी बहू संजना लेकर जाएगी । “
सरिता का मुंह खुला रह गया वो बोली- क्या ? संजना लेकर जाएगी, अभी उसकी शादी को एक महीना ही हुआ है मां जी।”
तो , तो क्या हुआ बहू। तुम्हारे पास समय नहीं है, और मैं सत्संग जाना चाहती हूं। और फिर संजना आज की लड़की है ।उसको कार चलाना भी आता है ।”-दादी सास ने सरिता को करारा जवाब दिया।
सरिता ने संजना की तरफ देखा जैसे आंखों ही आंखों में कह रही हो , तुम मुझसे बिना पूछे कैसे जा सकती हो।
संजना ने उनकी आंखों की भाषा को समझ लिया। उसने बड़ी नम्रता से कहा-” मम्मी जी, आपके पास समय नहीं है और मेरे पास समय ही समय है। दादी को सत्संग जाना जरूरी है क्योंकि वहां उनकी उम्र की और भी महिलाएं होंगी । जिनसे मिलकर उनको अच्छा लगता होगा। दादी को वहां ले जाने के लिए मैं आपसे पूछती, लेकिन दादी को आज जाना था ।”
फिर अपनी मम्मी की बात को याद करके, उनका नाम लेकर ना कहते हुए , अप्रत्यक्ष रूप से संजना ने कहा -“कहते हैं कि अगर घर के बुजुर्ग खुश हैं तो घर में खुशहाली है ।” स॔जना की इस बात ने जहां सरिता को निःशब्द कर दिया। वहीं दादी को खुशी दे दी। सरिता अपनी बहू का चेहरा किंकर्तव्यविमूढ़ होकर देखने लगीं, और उनके चेहरे को देखकर संजना और दादी के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
उषा भारद्वाज