गौद – एम पी सिंह : Moral Stories in Hindi

भोपाल की एक पॉश कालोनी में अवतार सिंह जी के घर आज फिर खुशी का माहौल था, मौका था अवतार सिंह जी के बेटे बहु 

गोवेर्धन ओर गौरी के बेटे का पहला जन्म दिन। पाठ पूजा के लिये सभी मेहमानों का आना जाना लगा हुआ था। दादी तो फूली नही समा रही थीं। वक़्त तेजी से निकल रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे कुछ समय पहले ही शादी हुई थी ओर अब बेटा भी एक साल का हो गया था। फंक्शन अच्छे से सम्पन्न हो गया, सभी रिस्तेदार खुशी खुशी अपने घर लौट रहे थे औऱ गोवर्धन काम समेटने में व्यस्त था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, इसी समेटा समेटि की जल्दबाजी में गोवर्धन सड़क हादसे का शिकार हो गया।

2-3 दिन तक तो वो मौत से लड़ता रहा परंतु ज्यादा दिन ये लड़ाई न चल सकी ओर वो मौत की जंग हार गया। खुशी का माहौल गम में बदल गया। दूध पीता बच्चा, जवान पत्नी और पहाड़ जैसी जिंदगी कैसे कटेगी, यही बात सबकी जबान पर थी। वक़्त के साथ जख्म भरने लगे, दादा दादी ने भी इसे भगवान की नीति मान कर, बहू ओर पोते की ख़ुशी के लिए दिल खोल कर प्यार न्यौछावर किया।

एक दिन सास ने बहू का मन टटोला ओर बातो बातो में देवर से शादी के लिए उसकी राय पूछी, बेटे को बाप दादा दोनो का प्यार मिलता रहेगा। बहु ने शर्माते हुए शादी के लिए रजामंदी देदी, पर देवर के साथ मना कर दिया, ये कहते हुए की यहाँ रहूंगी तो हमेशा उनकी याद आती रहेगी ओर जिंदगी में आगे बढ़ना मुश्किल होगा। 

गौरी के लिये लड़के की तलाश शुरू की तो कई अड़चने आई, एक तो विधवा ओर दूसरा बच्चा। आखिर एक तलाक शुदा ट्रांसपोर्ट कारोबारी गुलशन के साथ बात बनती दिखी। गुलशन की एक बेटी थी, जिसे गुलशन ने उसकी मां को दे दिया था। गुलशन के भोपाल के अलावा 2 ओर आफिस इंदौर ओर नागपुर में थे। सब कुछ ठीक था पर गुलशन ने बेटे को साथ न रखने की शर्त रख दी। 

इस कहानी को भी पढ़ें:

“ मदद उसी की करनी चाहिए जो वाकई में इसका हकदार हो” – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

गौरी बडी दुविधा में पड़ गई, एक तरफ पुत्र मोह, दूसरी तरफ पति सुख और उसकी सारी जिंदगी। बहुत सोच कर गौरी ने अपने माँ पिता जी को बेटा पालने के लिये बोला, थोड़ा बडा ओर समझदार हो जाएगा तो आपसे ले लुंगी, ओर तब तक गुलशन को भी समझा मना लूँगी। गौरी के मॉ पिता जी ने ये कहकर मना कर दिया कि अब हमारी भी उम्र हो गई हैं और जिंदगी कब तक हैं पता नहीं, हमारे बाद, वो कहीं फिर अकेला न हो जाये। गौरी के सास ससुर ने कहा, हम बेटे को रख लेते है, कानूनी तौर पर बेटा हमें देदो,

इसकी सारी जिम्मेदारी हम संभाल लेंगे। हम एक बार अपना बेटा खो चुके हैं, दुबारा बिछुड़ना पड़ा तो शायद जी नही पाएंगे। तुम जब चाहो, मिलने आ जाना, तुम हमारी बेटी हो ओर ये घर हमेशा तुम्हारा रहेगा। आखिर दिल कड़ा करके, गौरी ने अपने बेटे की बेहतर परवरिश ओर अपनी सारी जिंदगी को देखते हुए कानूनी तौर पर अपना बेटा सास ससुर की गोद में डाल दिया। गौरी ओर गुलशन की शादी हो गई। पग फेरे पर गौरी ने सास ससुर को बोला हम भोपाल छोड़ रहे हैं, पर कहाँ जायेगे, नही बताया।

गुलशन / गौरी ने कुछ समय तक अपने सास ससुर को फोन किया, फिर धीरे धीरे फोन बंद हो गया। जब काफी दिनों तक अवतार जी को फोन यही आया तो उन्होंने फोन लगाया, पर फोन अस्तित्व में नहीं था। उसके बाद अपने समधी को फोन लगाया पर उनके पास से भी कोई खास जानकारी नही मिली, बस इतना पता चला कि वो लोग नागपुर शिफ्ट हो गए हैं। कुछ दिन तक तो अवतार जी ने फोन ट्राई किया, फिर कोई फायदा होता नहीं दिखा तो फोन करना बन्द कर दिया। समय बीतता गया

और बेटा अमन स्कूल जाने लगा। कुछ साल बाद अचानक गौरी ने अवतार जी को PCO से फोन किया और बताया कि वो दोनों ठीक ठाक है और आपसे मिलने आने वाले हैं। समय बीतता गया पर गौरी नहीँ आई। समय के साथ साथ अमन भी बड़ा हो गया था

ओर ऐसे ही कुछ साल ओर बीत गए पर गौरी मिलने नही आई। कुछ सालों बाद एक दिन अचानक गौरी ओर गुलशन, अवतार जी से मिलने उनके घर भोपाल आये। बातो बातो में बताया कि उनकी कोई औलाद नही है, ओर अब होगी भी नही। एक बार मिस कैरिज होने की बाद कॉम्प्लिकेशन हो गया और काफी इलाज वगैरह करवाया पर डॉक्टरों ने मना कर दिया। 

जब दोनों की मौज मस्ती कम होने लगीं तो ओलांद की याद सताने लगी। पहले गुलशन अपनी बेटी को लेने अपनी पहली पत्नी के पास गया ओर बेटी के लिये गिड़गिड़ाया। वहाँ से खाली हाथ लौटने के बाद अवतार जी से मिलने और बेटे की भीख मांगने आये। अवतार जी ने साफ साफ कह दिया, की अमन पर तुम्हारा कोई हक नहीँ हैं। जब मौका मिला था, तो तुम दोनों ने स्वार्थी होकर ओलांद से ऊपर अपने निजी सुख को रखा। 

कहते हैं कि बेटी पापा की परी होती है और एक मॉ अपनी ओलांद के लिऐ बड़े से बडी कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटती, आज गुलशन ओर गौरी ने इसे झूठला दिया। 

आज गुलशन ओर गौरी दोनो अपनी अपनी संतान होने के बावजूद , बेओलांद जीवन जी रहे है।

लेखक

एम पी सिंह

(Mohindra Singh )

स्वरचित, अप्रकाशित

15 Apr 25

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!