गिन गिन कर पैर रखना – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

यार तुम इतनी जल्दबाजी में काम क्यूँ करती हो…. सुबह से ही किचेन में तुम्हारे बरतन गिरने लगते है …. सबको शोर से उठा देती हो….. नींद खराब कर दी….. 

रवि अपनी पत्नी सुलभा से झल्लाते हुए  बोला…. 

सही बोला बेटा तू …. एक तेरी बड़ी भाभी है ऊपर रहती है …. पता ही नहीं चलता कब काम शुरू करती है , कब खत्म…. सीढ़ी पर इतना धीरे धीरे चलती है बिल्कुल आवाज ना आयें…. हर काम में गिन गिन कर पैर रखती है … कभी रोटी बनाते उसके बेलन, चकला की आवाज ना आती है …. बड़ी  धीरा पूरा है मेरी बड़क्की …. अच्छी संतोषी बहू की निशानी भी यही मानी ज़ाती है  कि पता ही ना चले घर में कोई है … एक तेरी महरारू सुबह से आवाज कर करके सर में पीर कर देती है …. खाना भी ऐसे देके जावें है जैसे एहसान कर रही….. हमेशा जल्दबाजी लगी रहती है… यहीं सिखाया इसके पीहर वालों ने….. 

सास भी बेटे की बात में अपनी भड़ास निकालने लगी…. 

रसोई से जोर जोर से कलछी चलने की आवाज आ रही थी… बहू  सुलभा पर जब पति और सास की बात बर्दाश्त ना हुई तो वो कलछी लेकर ही पैरों की तेज आवाज करती हुई बाहर सबके सामने आकर खड़ी हो गयी…. 

पतिदेव पत्नी का लाल चेहरा देख थोड़ा पीछे खिसक लिए… सास भी डरी हुई सी थी…. 

हां तो क्या बोले आप दोनों… मैं  पीहर से ये सीख के आयीं… मुझमें शऊर नहीं है काम करने का तो ठीक है मम्मीजी कल से आप ऊपर दीदी के पास ही रहना… वो ही खिलायेंगी आपको और पापा जी को रोटी…. और तुम सुनो… मैं नौकरी छोड़ देती हूँ… तुम अकेले चलाना इस घर का खर्चा ….. घर के सारे काम में हाथ बंटाना तब मैं  भी हर काम नयी नवेली बहू की तरह गिन गिन कर पैर रखके करूंगी …. अब बिस्तर पर चाय खाना बंद सबका…. चाहे बच्चे हो य़ा तुम …. अपने कपड़े खुद प्रेस करो… बच्चों को तैयार करो… उन्हे नहलाओ …. होम वर्क करवाओ ….. जब टाइम मिले किचेन में काम करवाओ समझे जैसे तुम्हारे बड़े भाई साहब करते है …. कह रहे धीरा पूरा….. दीदी क्या नौकरी करती है … सुबह 8 बजे ज़ाती है … मम्मी जी चार दिन ना रह पायें आप और पापा जी दीदी और भईया के साथ न्यारा करने के बाद……. वहां तो उतने दिन भी आपको बराबर काम करना पड़ा… जब सारा काम एक जन पर आयेगा तो आवाज तो होगी ही… मेरे दो ही हाथ है दस नहीं… आपको खाट पर रोटी मैं ही खिला सकती हूँ….समझी …. 

बहू सुलभा बोले जा रही थी… 

सास कमला जी  का भी सासपन जागा… उन्होने बड़ी बहू को आवाज लगायी… 

सुन काजल… कल से हम तेरे यहां रहेंगे…. हम ना रह रहे सुलभा के पास… इसकी जुबान बहुत चलने लगी है ….

बड़ी बहू काजल ऊपर से ही बोली… मम्मीजी मेरी तबियत सही नहीं रहती, खाना आपको ही बनाना पड़ेगा…. और खर्चा भी देना पड़ेगा…. आपको तो पता ही है हमारा हाथ तंग है …. और जो हो वहीं खाना पड़ेगा… जैसे सुलभा से हर दिन नयी फरमाईश करते  है आप और पापा जी वो यहां तो नहीं चलेगा… सोच लीजियेगा अच्छे से आने से पहले ….. 

सास कमला जी भीगी बिल्ली सी हो गयी…. 

मेरी तो तू ही सबसे अच्छी बहू है सुलभा … वो तो मैने बस ऐसे ही बोल दिया… ए रे रवि… बहू का थोड़ा हाथ बंटा दिया कर …. छोटे छोटे बच्चे है उसके…. बहू ला मशीन कैसे चलती है मुझे बता दे… कपड़े मैं धो दे रही…. 

रवि भी बोला… लाओ बच्चों की बोतल मैं भर देता हूँ…

उन्हे बस तक मैं छोड़ आऊंगा बहू… 

कमरे से ससुर जी भी बोल पड़े …. 

सुलभा की हंसी छूट गयी…. 

ठीक है मम्मी जी कल से मैं भी गिन गिन के पैर रखके काम करूँगी….. बिल्कुल दीदी की तरह… 

ना ना बहू… तू जैसी है बहुत अच्छी है ….. माफ कर दे री …. 

सुलभा भी सास के सीने से लग गयी….. 

मीनाक्षी सिंह की कलम से 

आगरा

1 thought on “गिन गिन कर पैर रखना – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi”

  1. अंत बहुत जल्दी में समेटा हुआ है , उसका कुछ सुधार बताते तो और भी अच्छा लगता है । बिगाड़ने तो दुनिया बैठी है पर उपचार भी होना चाहिए ।

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