घूंघट –  हेमा दिलीप सोनी

सावित्री जी दो देवरानी जेठानी थी, सावित्री की देवरानी गांव में रहती थी, उसके दो बहू थी दोनों गुणी ,सुशील ,सुंदर उनकी बड़ी बहू के हमेशा सर पर घूंघट रहता था। कभी भी किसी ने भी उसे बिना घुंघट के नहीं देखा था, सब उसकी तारीफ करते थे कि आपकी बहू तो बहुत सुंदर, सुशील है ,और हमेशा बड़ों का मान सम्मान करती है, और घुंघट में ही रहती है। और इधर सावित्री जी के तीन बहु थी, तो दो बहुए तो घुंघट करती थी ,और छोटी बहू थी वह पढ़ी-लिखी और नौकरी पेशा थी, तो उसे साड़ी पहनना नहीं जमता था,

रोज-रोज तो घुंघट की और सर पर पल्लू की तो बात ही छोड़िए ।रोज उसे सभी बोलते थे कि तुम साड़ी पहना करो घुंघट नहीं तो कम से कम सर पर पल्ला तो लिया करो पर उसे तो कुछ जमता ही नहीं था ,तो अपनी सासू मां के गले में प्यार से अपनी बाहें डालती, और प्यार से बोल देती थी कि,सासू मां मुझे साड़ी पहनना नहीं जमता है तो सर पर पल्लू कैसे रखूं ।तो उसका प्यार भरा उत्तर सुनकर सावित्री जी कुछ नहीं बोलती थी जाने दो की भले यह साड़ी नहीं पहनती, पर हम सब का मान सम्मान और आदर बहुत करती है।

 एक बार उनके गांव में देवरानी के घर पर सबसे छोटे बेटे की शादी थी उसके घर पर जाना हुआ, तो उन्होंने पहले ही अपनी छोटी बहू को बोल दिया कि हम वहां पर जा रहे हैं ।वहां पर सब समाज बिरादरी वाले लोग होंगे, तो सब बोलेंगे कि  तुम्हारी बहु तो शहर की है ,पढ़ी लिखी है और यह घूंघट नहीं निकालती है , और  सर पर पल्ला भी नहीं लेती है, आप कैसी क्या बहू लेकर आए ?सुनने मिले इससे तो अच्छा है कि तुम शादी के बाद पहली बार तुम गांव जा रही हो,वहां साड़ी पहनना रोज ।तुम्हें घूंघट नहीं जमा तो कोई बात नहीं तुम सर पर पल्ला रख लेना बाकी हम सभी को समझा देंगे  सभी लोग शादी में गए अपने पैतृक गांव  ।

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वहां पर छोटी बहू शादी के बाद पहली बार जा रही थी और उसने अपने काकी सास की (सावित्री जी की देवरानी) बहुओ से पहली बार मिलने वाली थी हमेशा उनकी तारीफ ही सुनी थी, उसने तो उसने मन में सोचा कि चलो आज हम मिल भी लेंगे अपने दोनों बड़ी जेठानी से।

सभी वहां पर पहुंचे तो शादी की सभी रस्में शुरू हो चुकी थी ।

तो उसने देखा कि अपनी काकी सास की बड़ी बहू है उसने हाथ भर घुंघट निकाल कर रखा है, सब काम बड़ी आसानी से कर रही थी। इतना बड़ा घुंघट निकालने के बावजूद भी,

 और अच्छे से सब का ख्याल भी रख रही थी हर कोई उसे ही आवाज दे रहा था। वह भी दौड़ दौड़ कर सबका काम कर रही थी।सावित्री जी की छोटी बहू ने उसे पूछा भी की भाभी आप ऐसे कैसे मैनेज कर लेती हो घुंघट में काम करना ,

मुझे तो सर पर पल्लू भी नहीं जमता है तो, बड़ी बहू बोली कि  शुरू से शादी करके आई हूं तब से मैंने घूंघट निकालते आई हूं , तो मेरी आदत हो गई है ,अभी इतने सालों में। सभी ने शादी में बहुत मजा किया और छोटी बहू भी उसको जैसे जमता था वैसे काम में मदद कर देती थी।

ऐसे करते-करते शादी अच्छे से निपट गई, और शादी निपटने के बाद सावित्री जी और उनका पूरा परिवार अपने शहर रवाना होने लगा ,उनको पास के घर में ठहराया गया था, तो उन्होंने सोचा की देवरानी के घर पर सबसे मिल कर फिर शहर को निकल जाएंगे।

तो सब जन तैयार होकर सावित्री जी की देवरानी के घर पर गए, वहां पर जाकर क्या देखते हैं कि कल ही तो शादी का घर था वह आज किसी लड़ाई के मैदान से कम नहीं लग रहा था।

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 जिस बड़ी बहू की तारीफ करते थे ,आज वही बड़ी बहू अपने सास-ससुर दादी सास सबके सामने ऊंची आवाज में जोर-जोर से लड़ाई झगड़ा कर रही थी ।किसी बात को लेकर

 सभी ने उसका यह रूप पहली बार देखा तो सभी आश्चर्यचकित रह गए कि हमेशा जो सबको आदर सम्मान देती थी बड़ों की इज्जत करती थी और कभी भी अपने सर से घुंघट नहीं हटाया आज वह अपने सास ससुर और दादी सास के सामने इसे ऊंची आवाज में बात कर रही है इतनी आवाज में भी लड़ाई झगड़े में भी मजाल है कि उसका घूंघट 1 इंच भी इधर उधर हुआ हो  उसने हाथ भर घुंघट ले कर रखा था जो कि बिल्कुल भी हिला डूला नहीं उतना का उतना ही था ।

जैसे कि उसके सर पर घुंघट के साथी किसी ने कील ठोक दी हो  जिससे घुंघट इधर-उधर खिसके नहीं 

उसके मुंह से बोल  आदर सम्मान वाले नहीं थे  सावित्री जी तभी अपनी छोटी बहू को बोली की बहू मुझे माफ कर दे ,कि मैं तुझे हमेशा घुंघट के लिए बोलती थी। पर आज मैं तुझे बोलती हूं कि तू मेरी सबसे अच्छी बहू है तू भले ही घूंघट नहीं निकालती है सर पर पल्लू नहीं लेती है। पर हम सभी का आदर सम्मान बहुत करती है और प्रेम से बात करती है कभी हमसे ऊंची आवाज में बात नहीं की। हमने कुछ गलत भी बोला होगा तो तूने हंसकर टाल दिया आज के बाद मैं तुझे कहती हूं कि जैसे तुझे आरामदायक लगे वैसे कपड़े पहन।

 तू तो बिना घुंघट में भी हमारा बहुत सम्मान करती है ।अगर घुंघट में रहने वाली बहू,बड़ों का ऐसे आदर सम्मान करती है तो मुझे नहीं चाहिए ऐसी घूंघट वाली बहू  और सबके मुंह पर ताला लग गया सावित्री जी की देवरानी के घर वालों के, क्योंकि उनकी यह बहू सिर्फ सबके सामने घुंघट रखकर दिखावा करती थी और आदर सम्मान करने का ढोंग करती थी। पर समाज और बिरादरी में सबके सामने नाक ना कटे और हमारी इज्जत बनी रहे, इसलिए सबके सामने बढ़ाई करते रहते थे, कि मेरी बहू कभी भी बिगर घुंघट के नहीं रही पर अफसोस आज सबके सामने यह पोल खुल चुकी थी । क्योंकि आज उसी * और घूंघट वाली बहू ने पूरी बिरादरी और समाज के सामने अपने ससुराल की नाक कटवा दी।

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और सब बहुत लज्जित थे, उनकी आंखों में बहुत ही शर्म थी, क्योंकि आज आज इसी घूंघट वाली बहू ने सबके सामने तमाशा बना कर रख दिया।

 हेमा दिलीप सोनी

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