घमंडी दोस्त

एक बार की बात है एक गाँव मे एक किसान रहता था। उसका बेटा पढ़ने मे बहुत तेज था। जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसके शिक्षक ने किसान से बोला की तुम अपने बेटे को शहर भेज दो पढ़ने के लिए क्योकि तुम्हारी बेटा पढ़ाई मे तेज है जरूर कोई बड़ा आदमी बनेगा।

किसान ने अपनी जमीन बेचकर अपने बेटे को पढ़ाने लगा। किसान का बेटा भी  काफी मन लगाकर पढ़ता था। स्नातक करने के बाद वह सिविल सर्विस की तैयारी करने लगा और पहली ही बार मे आईएएस बन गया। गांव मे जब गांववालों को ये बात पता लगा सब खुश थे कि उनके गाँव का लड़का आईएएस बन गया है।

आईएएस बनने के बाद अब किसान का लड़का घमंडी हो गया था। छूटियों मे शहर से गाँव आया। गाँव आने के बाद वह अपने सभी दोस्तो और परिचितों से उनके घर जाकर मिल रहा था। इसी क्रम मे वह अपने बचपन के मित्र रमेश के घर भी गया।

वहाँ गया तो पता चला कि वह गाँव के पुराने पीपल के पेड़ के नीचे सोया हुआ है। वह सीधे पीपल के पेड़ के पास पहुचा। उसका बचपन का साथी रमेश वहाँ आराम से लेटा हुआ है।



बजाए इस के कि किसान का पुत्र अपने पुराने मित्र का हाल चाल पूछे, उस ने रमेश  को टेढ़ी नज़र से देख कर कहा-

“ओ रमेश , तू तो बिल्कुल निठल्ला है। न पहले कुछ करता था और न अब कुछ करता है। मुझे देख मैं कहाँ से कहाँ पहुँच गया हूँ।”

यह सुनकर रमेश  थोड़ा बुड़बुड़ा कर बैठ गया। किसान का पुत्र का हालचाल पूछा और कहने लगा कि समस्या क्या है। किसान का पुत्र के ये कहने पर कि वो काम क्यों नहीं करता, रमेश  ने पूछा कि उस का क्या फ़ायदा होगा। किसान का पुत्रने कहा कि तेरे पास बहुत सारे पैसी हो जाएँगे।

“उन पैसों का मैं क्या करूँगा?” रमेश  ने फिर प्रश्न किया।

“अरे मूर्ख, उन पैसों से तू एक बहुत बड़ा महल बनाएगा।”

“क्या करूँगा मैं उस महल का?” रमेश  ने फिर तर्क किया।

“ओ मन्द बुद्धि उस महल में तू आराम से रहेगा, नौकर चाकर होंगे, घोड़ा गाड़ी होगी, बीवी बच्चे होंगे।” किसान का पुत्रने ऊँचे स्वर से गुस्से में कहा।



“फिर उसके बाद?” रमेश  ने फिर प्रश्न किया।

अब तक किसान का पुत्र अपना धीरज खो बैठा था। वो गुस्से में झुँझला कर बोला-

“ओ पागल रमेश , फिर तू आराम से लम्बी तान कर सोएगा।”

ये सुन कर रमेश  ने मुस्कुराकर जवाब दिया- “सुन मेरे भाई दौलत, तेरे आने से पहले, मैं लम्बी तान के ही तो सो रहा था।”

ये सुनकर किसान का पुत्रके पास कुछ भी कहने को नहीं रहा। उसे इस चीज़ का एहसास होने लगा कि जिस दौलत को वो इतनी मान्यता देता था वो एक सीधे-साधे रमेश  की निगाह में कुछ भी नहीं। आगे बढ़ कर उसने रमेश को गले लगा लिया और कहने लगा कि आज उसकी आँखें खुल गई हैं। दोस्ती के आगे दौलत कुछ भी नहीं है। इंसान और इंसानियत ही इस जग मैं सब कुछ है।

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