ममता जब से बाज़ार से लौटी थी,बहुत उदास थी,रह रह कर उसे आज की घटना का ध्यान आता और वो
अपना सा मुंह लेकर रह जाती…जैसे घड़ों पानी गिर गया हो उसपर…किसी ने कुछ कहा भी नहीं उसे लेकिन
अपनी हरकत, ओछी सोच याद करते ही वो लज्जित हो जाती।क्या नाम रखा था उसके पेरेंट्स ने उसका
ममता..जिसके दिल में सबके लिए मोहब्बत,ममता,प्यार हो पर क्या वो उनका दिया नाम सार्थक कर पाई
थी?नहीं…बिल्कुल भी नहीं…ममता दिखाती थी वो लेकिन उनपर जिससे कोई फायदा हो,जिनपर उसका रौब
पड़े या जिनसे कोई वापिसी में उम्मीद हो,वो ममता नहीं बिजनेस कहलाता है ,ये वो जानती थी।
अब हुआ क्या आज,चलिए उसे जानते हैं लेकिन उससे पहले कुछ पिछले दिनों की घटनाक्रम का जिक्र
करना भी जरूरी है।
कुछ ही दिन पहले की बात है कि बड़ी कोशिशों और मिन्नतों से ममता के बड़े बेटे आयुष का रिश्ता पक्का
हुआ था, घर में काफी काम,चहल पहल और रौनक थी।उसकी काम वाली चंपा ने आते ही कहा…
“मालकिन..!अगले हफ्ते सोमवार की मुझे छुट्टी दे देंगी आप प्लीज!”
ममाता बिदक गई छुट्टी का नाम सुनते ही…बिल्कुल नहीं…कहा था न सबसे अगले महीने तक कोई छुट्टी नहीं
अब…आयुष भैया की शादी बाद ही छुट्टी मिलेगी अब।
सिर्फ एक दिन की ही तो मांग रही हूं मालकिन!वो गिड़गिड़ाई।
सब जानती हूं तुम लोगों के बहाने…आज मेरी ननद की सास मर गई,आज मेरे देवर के साढू के घर फंक्शन है
और न जाने क्या क्या…
नहीं,वो बात नहीं मालकिन…आंखों में आंसू लाते वो बोली,भैया की शादी के लिए कोई बहाना क्यों बनाऊंगी
मैं,मुझे भी बहुत खुशी है उसकी…वो तो मेरी अपनी बेटी गौरी की शादी तय हुई है उस दिन की..
क्या??आश्चर्य से आंखे फैलाते ममता बोली..
“गौरी की शादी..कब ,किससे?बेख्याली में उसके मुंह से फिसल गया…ये कांगली क्या शादी करेगी
उसकी?एक हमारी बेटी है रिया…शादी को तैयार ही नहीं होती,एक से बढ़कर एक रिश्तों की लाइन लगी है
और एक ये लोग…बीस बाइस साल की लड़की को अच्छा घर वर भी मिल जाता है।
“छुट्टी मिल जाएगी न मालकिन उस दिन?”चंपा ने उसे चुप देखकर पूछा।
हम्मम…वो परेशान सी वहां से हट गई,उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था चंपा से बोलना इस वक्त।
थोड़े दिन बाद ही गौरी की शादी थी,ममता कुछ जरूरी शॉपिंग के लिए बाजार गई,उसने सोचा,चलो!गौरी के
लिए कुछ गिफ्ट ले लूं..!
उसने ड्राइवर से कहा…किसी छोटी दुकान पर गाड़ी रोक लेना…सोचा.. काम वालों के लिए ज्यादा मंहगा गिफ्ट
क्या लेना..उनकी हैसियत के हिसाब से ही लूंगी।
थोड़ी देर में एक सस्ती सी साड़ी पैक करवा के वो बाहर निकली,तभी सामने से बड़ी साड़ी शॉप रामा वस्त्रालय
से चंपा आती दिखी।
ममता को बड़ा आश्चर्य हुआ…”ओहो!इतनी बड़ी दुकान से अपनी बेटी के लिए शॉपिंग कर रही है…बहुत रुपए
हैं इसकी जेब में..वैसे ही सारे दिन रुपए की कमी का नाटक करती है हमारे सामने…जिससे ज्यादा पैसे हड़प
सके…ये छोटे लोग..!!”
तभी चंपा उसके सामने आ खड़ी हुई..अरे मालकिन आप यहां!!वो आश्चर्य से बोली।
चोरी पकड़ी गई इसलिए फिर चिरौरी करने लगी मेरी …ममता ने व्यंग करते कहा…”कर ली खरीदारी बेटी के
दान दहेज की?”
अरे नहीं मालकिन..हमारी इतनी हैसियत कहां जो इतनी बड़ी दुकान से खरीदेंगे ,वो तो मैं आयुष भैया की
दुल्हन को मुझ दिखाई में देने के लिए कोई ढंग की साड़ी देख रही थी,बस वो एक ही ली है।
ममता पर उसकी बात सुनते ही घड़ों पानी गिर गया,वो अपना सा मुंह लेकर रह गई…गरीब ये है कि मैं? मैं
इसकी हैसियत से गिफ्ट ले कर आई और ये रोज कमाने खाने वाली मेरी हैसियत की परवाह कर रही है।आ
दोस्तों!गरीब अमीर आदमी पैसे से नहीं सोच और मानसिकता से होता है,आप पर सब कुछ है लेकिन संतोष
नहीं,सब कुछ हड़पने,लेने की प्रवृति है,किसी को देने के नाम जान निकलती है तो आपसे गरीब कोई नहीं है
और वो व्यक्ति जो जितना मिल जाए,उसमें खुश रहता है, बांट कर खाता है,वो कभी दुखी,दरिद्र और परेशान
नहीं रहता।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
#अपना सा मुंह लेकर रह जाना(लज्जित होना)