घर वापसी – लक्ष्मी कानोडिया : Moral Stories in Hindi

निधि का ससुराल और पीहर दोनों पास ही था। वह जब जी चाहे अपने पीहर आ जाती थी। उसके मां-बाप को बुढ़ापे में अकेलापन ना लगे इसलिए उन्होंने अपनी लड़की की शादी लोकल में ही कर दी थी।  निधि के भाई की शादी को तीन-चार साल हो गए थे तथा निधि के माता-पिता निधि के भैया भाभी के पास ही रहते थे।

आखिर इकलौता भाई जो ठहरा। निधि की मां ने निधि को अच्छा पढ़ाया लिखाया था इसलिए उसने शादी के बाद भी जॉब करनी नहीं छोड़ी। 

एक दिन निधि और उसकी मम्मी आपस में फोन पर बात कर रहे थे। निधि की मम्मी ने निधि को बताया कि उनके दांतों में बहुत दिनों से दर्द है। उनकी डॉक्टर की दवाई चल रही थी। निधि रोज फोन पर अपनी मां का हाल-चाल पूछ लेती थी। 

एक दिन अचानक ही निधि अपनी मां के हाल-चाल जानने अपने पीहर आ गई। उसने देखा कि उसकी मां दाल रोटी सब्जी खा रही है। आते ही अपनी मां के पास बैठ गई और बोली की मां जब आपके दांत में इतना दर्द है तब आप यह सब रोटी सब्जी क्यों खा रही हो क्या भाभी आपको खिचड़ी नहीं बना कर दे सकती हैं?

वह अपनी भाभी को बहुत उल्टा सीधा सुनने लग गई।  वह अपनी भाभी से बोली कि आप मेरे माता-पिता की सेवा करके थक गए हो आपसे मेरे माता-पिता की सेवा नहीं हो रही है भला दांत दर्द में कौन रोटी सब्जी खाता है? इससे तो इनके दांत में दर्द और बढ़ जाएगा।

इस पर निधि की मां ने निधि को कुछ नहीं कहा और जवाब दिया  अब बेटा बहू जैसे रखेंगे वैसे ही तो रहना पड़ेगा। दोनों मां बेटी की बात उनकी बहु साक्षी भी सुन रही थी। साक्षी ने सोचा मैंने तो मम्मी जी से पूछ कर ही उनके लिए दाल सब्जी रोटी बनाई है फिर यह दीदी को क्यों नहीं बता रही है कि यह तो मैंने ही कहा था इसे बनाने के लिए। इन्होंने ही मुझे कहा था कि मैं खिचड़ी खाते-खाते थक गई हूं आज मैं रोटी सब्जी खाने का मन है।

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लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं बोली और चुपचाप काम करती रही। उधर निधि अपनी मां को भड़काती रही। मां भाभी तुम्हारा बिल्कुल भी ढंग से ख्याल रखती नहीं है। पापा की सारी पेंशन जो आती है वह आप सारी भैया के हाथ पर रख देते हो।वह भी घर में ही इस्तेमाल हो जाती है और आपने इस घर के लिए क्या कुछ नहीं किया?क्या बहू बेटे आपकी सेवा भी नहीं कर सकते?

मम्मी आप मेरे साथ चलो। आपको बढ़िया-बढ़िया दाल सब्जी रोटी बनाकर खिलाऊंगी। निधि की मां को निधि की बातें सही लग रही थी उसे भी ऐसा लगा हां सही में ही मेरी  बहु  सेवा नहीं कर रही है।  बेटी ने मां के साथ मिलकर मां की अटैची लगा दी। निधि मां को अपने साथ अपने घर ले गई। 

उनके जाने के बाद निधि का भाई घर पर आया। उसने आते ही साक्षी से पूछा मां कहां गई। साक्षी ने जवाब दिया मां  तो दीदी के साथ चली गई। दीदी का मां  को ले जाने का बहुत मन था और मां का भी जाने का बहुत मन था इसलिए निधी दीदी मां को अपने साथ ले गई। कुछ दिन मां को दीदी के पास रहे आने दो।

उनका मन बदल जाएगा। इस पर साक्षी के पति  रोहन ने पूछा कि कोई झगड़ा तो नहीं हुआ ना तुम्हारे साथ? तब साक्षी ने कहा नहीं मैं तो मम्मी जी को ऐसा कुछ नहीं कहा? मैं  तो उनसे पूछ कर ही सारा काम करती हूं। 

इधर निधि अपनी मां को अपने साथ अपने घर ले गई। वह  खुद तो सुबह जॉब पर चली जाती थी और उसकी मां को उसके बेटे का पूरे दिन ध्यान रखना पड़ता था। पीछे से नौकरों से काम करवाना,  खाना बनवा के रखना, सारा   घर साफ करवाना, कपड़े धुलवाना आदि काम करती थी। निधि केवल रात को आती थी

और रात को अपनी मां से थोड़ी देर बातें करके अपने कमरे में चली जाती थी। दिन भर निधि की मां उसके घर पर अकेली रहती थी। घर में इतना काम था पास – पड़ोस  किसी से बोल भी नहीं सकती थी। निधि का छोटा बच्चा होने के कारण उसकी पूरी देखभाल करनी पड़ती थी।

निधि और निधि का पति जॉब से आकर देर रात खाना खाते थे। निधि का परिवार बहुत चटपटा खाना खाता था जिससे निधि की मां की तबीयत खराब रहने लगी। दिन भर अकेले रहने के कारण और अधिक काम के कारण निधि की मां और बीमार हो गई। 

जल्द ही निधि के घर से उसकी मां का मन भर गया ।फिर एक दिन अपनी बेटी से विदा लेकर वह अपने घर चली आई। साक्षी ने जब देखा की उसकी सास वापस आ गई है तो वह बड़ी हैरान हुई उसने सोचा मम्मी जी शायद ज्यादा दिन लगा कर आएंगे परंतु मम्मी जी तो पांच ही दिन में वापस आ गई थी।

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घर आकर उसने अपनी बहू साक्षी को गले लगा लिया और कहा बहू मैं बहुत गलत थी।उस दिन निधि तुम्हें इतना उल्टा सीधा कह रही थी लेकिन मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया उल्टा उसके साथ हो ली और उसके घर चली गई। यहां तुम मेरी इतनी सेवा करती हो और वहां मुझे सारे दिन उसके घर पर काम करना पड़ता था।

मैं  तुम्हारी कदर न कर  बहुत पछता रही हूं। अब मुझे समझ में आ गई है कि मेरी सेवा तो मेरी बहू ही करेगी और तुम मेरी बहू नहीं हो मेरी बेटी ही हो। तुम्हें तो मैं फिर  भी डांट   लेती हूं मगर बेटी के घर में तो मैं एकदम बंध गई थी वह जैसा कहती थी जैसा खाती थी वैसे मुझे करना पड़ता था। क्या तुम मुझे माफ नहीं करोगी? मैं अब अपने बेटे बहु को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। जो बहू अब मेरे लिए बढ़िया सी चाय बना लो। हम दोनों मिलकर पियेंगे। दोनों सास बहू में मिलकर हंसती हैं।

लक्ष्मी कानोडिया

अनुपम एंक्लेव किशन घाट रोड

खुर्जा  203131(बुलंदशहर), 

उत्तर प्रदेश

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