Moral Stories in Hindi : “ माँ इस बार दीवाली और छठ में जो खर्चे होंगे वो बता देना मैं आज ऑफिस से आते वक्त पैसे लेते हुए आ जाऊँगा।” मनन ने अपनी माँ रेवती जी से बोला
“ जो तेरा मन करें … वैसे इस बार छठ नहीं करूँगी…अब मेरा शरीर जवाब देने लगा है…अकेले सब कुछ करना संभव नहीं है उपर से दिवाली की सफ़ाई में ही मेरी जान निकल गई ।”रेवती जी वहीं पास में बैठ कर अपने घुटने पर खुद ही तेल लगा मालिश कर रही थी
“ अरे जब इतनी तकलीफ़ है तो करती ही क्यों हो… कौन सा पूरे घर में सफ़ाई की ज़रूरत है …और ये चंपा कहाँ है वो भी नहीं दिख रही ?” सोफे पर पसर कर बैठे नज़रें अख़बार पर टिकाएँ रमेश जी पत्नी से कहने लगे आवाज़ में तल्खी साफ़ दिख रही थी
“ हा हा आप लोगों का क्या है मदद के नाम पर हाथ पीछे खींच लेते हो और जो मदद करती थी उसे तो घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया है ।” रेवती जी मायूस हो बोली
“ माँ पर छठ तो आप हर बार करती ही हो फिर क्यों नहीं करना ?” इस बार मनन माँ के मना करने पर आश्चर्य व्यक्त करता हुआ बोला
“ कैसे करेगी तुम ही बताओ …इस घर की गृहलक्ष्मी ही तो घर में नहीं है वो होती तो तेरी माँ ख़ुशी ख़ुशी दिवाली छठ सब करती पर अब इस बेचारी से अकेले सब होता कहाँ है ?” मनन के सवालों का जवाब रमेश जी ने दिया
“ फिर वही बात पापा…मिहिका अब यहाँ नहीं है और ना अब वो यहाँ आने वाली है भगवान के लिए आप सब उसे भूल जाइए ।” कहते हुए मनन घर से निकल गया
“ ये लड़का क्यों नहीं समझता है जी … जब से हमारे गृह से गृहलक्ष्मी उदास होकर गई है सब तरफ़ उदासी ही दिखती है ।” रेवती जी उदास हो बोली
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उधर मनन मिहिका के बारे में सोचते सोचते मोबाइल में उसकी तस्वीर देखते देखते उसे कब कॉल लगा दिया उसे उसकी आवाज़ सुन कर एहसास हुआ ।
“ कैसे याद किया मनन… घर पर सब ठीक तो है ना… और तुम … अब तो कोई शिकायत नहीं होती होगी किसी से?” मिहिका के आवाज़ में तल्खी भी थी फ़िक्र भी और कही ना कही प्यार भी झलक रहा था
“ हाँ.. हाँ सब ठीक है वो माँ…!” इतना कह कर मनन चुप हो फोन काट दिया
पता नहीं मिहिका के मन में क्या आया उसने रेवती जी को फोन कर दिया
“ हैलो माँ कैसी है आज आपकी बहुत याद आ रही थी तो सोचा फोन कर लूँ ।” मिहिका ने कहा
“ सब ठीक हो सकता है बहू बस तुम वापस यहाँ आ जाओ… ये घर अपनी गृहलक्ष्मी का का इंतज़ार कर रहा है…..मेरा बेटा ही नालायक है उसे ग़ुस्सा ही इतना आ जाता है कि वो फिर कुछ नहीं देखता समझता…लौट आओ बहू ये घर गृहलक्ष्मी के बिना अधूरा है और दीवाली छठ भी अधूरी है ।” रेवती जी मिहिका से कहे जा रही थी इस बात से अंजान थी कि मनन अपना एक ज़रूरी फ़ाइल घर पर भूल जाने की वजह से वापस लौट कर दरवाज़े पर खड़ा सब सुन रहा था ।
मनन चुपचाप अपनी फ़ाइल ले कर पुनः निकल गया।
ऑफिस जाकर काम में मन ना लगा और उसने मिहिका को फोन कर के कहा ,”शाम को मिलना है प्लीज़ उसी कॉफी शॉप पर आ जाना जहाँ शादी के बाद पहली बार गए थे ।”
मिहिका मनन की बात सुन बस हाँ बोल फ़ोन रख सोचने लगी…
“ कितनी बार कहाँ है तुमसे मेरी चीजों को हाथ मत लगाया करो.. इस कमरे में कहाँ क्या है इस पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है ….तुम्हें अपने सामान के साथ जो करना है करो पर मेरी चीजों के साथ नहीं ।” शादी के पन्द्रहवें दिन ही मनन ने ग़ुस्से में मिहिका से कहा
“ मैं वो ऽऽऽ बस सब अरेंज कर रही थी…ये सारे काग़ज़ात एक जगह कर रही थी जो आपने जगह जगह फैला कर रखे हुए ।” मिहिका रोनी सूरत कर बोली
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मनन की ये बाते दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी और ऐसे ही एक दिन उसकी फ़ेवरेट शर्ट प्रेस करते मिहिका से जल गईं फिर तो मनन ने आव देखा ना ताव चटाक से थप्पड़ मार दिया और बहुत कुछ सुना दिया.. जाहिल गंवार हो क्या कोई भी काम सही से करना नहीं आता …तुम्हारे साथ मेरा गुज़ारा मुश्किल लग रहा है तुम यहाँ से चली जाओ … मेरे साथ रहोगी तो तुम्हारी इन बेकार की हरकतें देख पागल हो जाऊँगा ।” मनन चिल्लाते हुए बोला
रेवती जी शोर सुन कमरे में आई मनन को बहुत डांटा ,” ये तरीक़ा है अपनी पत्नी से बात करने का …सही से नहीं बोल सकता … गलती किससे नहीं होती ।”
“ माँ प्लीज़ आप लेक्चर मत दो… मेरा दिमाग़ बहुत ख़राब हो रखा है…..और हाँ मिहिका की ओर मुख़ातिब हो बोला….. मेरी चीजों को अब हाथ लगाने की ज़रूरत नहीं है… मैं अपना काम खुद कर सकता हूँ मुझे तुम्हारी ज़रूरत भी नहीं है।” मनन ग़ुस्से में कह ऑफिस निकल गया था
मिहिका जार जार रो रही थी फिर उठी सामान पैक कर निकल गई ।
रेवती जी लाख रोकने की कोशिश करती रही पर मिहिका का यही कहना था कि,”जब पति को ही पसंद नहीं तो यहाँ रह कर क्या करूँ माँ जिस दिन पति की पसंद होगी वो लाएँगे आ जाऊँगी पर अभी जाना ज़रूरी है।”
इस तरह चार महीने बीत गए थे ।
“ मैडम चाय।” ऑफिस में चाय देने आए स्टाफ़ की आवाज़ सुन मिहिका अतीत से बाहर आ गई ।
जल्दी जल्दी अपना काम निपटाने के बाद वो कॉफी शॉप पहुँच गई देखा तो मनन बेचैनी से दरवाज़े की तरफ़ देख रहा था ।
“ आ गई तुम .. मुझे लग रहा था नहीं आओगी ।” मनन की आँखों में बेचारगी झलक रही थी
“इतने दिनों बाद याद किए…. आना तो था ही पता करने…आख़िर अब क्या चाहिए?” मिहिका अब पहले की तरह नहीं रही थी थोड़ा बोल्ड होकर बोली
“ माफ़ी “ बिना किसी झिझक के मनन ने कहा
“ पर क्यों… तुम्हें ना तो मेरे साथ रहना ना तुम मुझे देखना चाहते फिर माफ़ी क्यों?” मिहिका ने पूछा
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“ अपने घर की गृहल़क्ष्मी को वापस ले जाने के लिए… जिसके बिना मेरी माँ टूट गई है पिता को अपनी बहू के हाथ की चाय नहीं मिलती … पूरा घर उदासी के आवरण में लिपटा पड़ा है और …!” मनन कहते कहते चुप हो गया
“ और.. क्या मनन?” मिहिका ने पूछा
“ मुझे अपनी पत्नी का साथ चाहिए मिहिका… बहुत ग़ुस्से और अकड़ में तुम्हें बहुत कुछ बोल गया था…. पर जब भी घर आता तुम्हारी खनकती आवाज़… माँ पापा के चेहरे की चमक और घर का सूनापन मुझे कचोट रहा था और आज तो माँ ने भी कह दिया कैसी दिवाली और छठ जब घर की गृहलक्ष्मी ही घर में नहीं हो… बस मुझे आज से बेहतर कोई और दिन समझ नहीं आया तुमसे माफ़ी माँग कर तुम्हें वापस ले जाने का … तुम चलोगी ना?” मनन ने मिहिका के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए याचक दृष्टि से पूछा
“ पहले प्रॉमिस करो मुझे अपने कमरे में नहीं बल्कि हमारे कमरे में जगह दोगे… वहाँ कुछ तेरा मेरा नहीं होगा…गलती हो तो प्यार से डाँट देना पर चाँटा नहीं…!” मिहिका ने सवालिया लहजे में कहा
“ प्रॉमिस पक्का प्रॉमिस मैं अब कुछ कहूँगा ही नहीं…कहने से दो दो औरतें नाराज़ होकर बैठ जाती है और दोनों ही मुझे अज़ीज़ ।” मनन की आँखों में मिहिका की बात सुन एक चमक सी आ गई थी और प्यार भी
“ कल आ जाना लेने …फिर आऊँगी ।” मिहिका ने कहा
“ मैडम कल नहीं अभी ही आपको चलना होगा… कल तक के इंतज़ार में तुम्हारी सास के ना जाने कहाँ कहाँ दर्द होने लगे… ।”कहते हुए मनन ने सुबह की बात मिहिका को बता दी
मिहिका मनन के साथ जब घर पहुँची….रेवती जी की बाँछें खिल उठी …
“ अच्छा किया बहू जो वापस आ गई… नहीं तो जब मेरी गृहलक्ष्मी ही घर में नहीं तो लक्ष्मी पूजन का क्या महत्व ।”
दूसरे दिन से सास बहू मिल कर सब काम करने लगी जिसे देख कर रमेश जी मंद मंद मुस्कुरा रहे थे… रेवती जी का दर्द बहू को देखते ही जो रफ़ूचक्कर हो गया था ।
मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#गृहलक्ष्मी
(GKK M)