घर की इज्जत – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

चंडीगढ़ के गांव में रहने वाली निर्मला देवी के दो पुत्र थे। बड़ा बेटा निरंजन और छोटा आशीष। निरंजन की पत्नी का नाम पायल था और उनके दो बच्चे थे। आज आशीष का विवाह निकिता से संपन्न हुआ था। निकिता को सब निक्की कहते थे। आज निक्की बहू बनकर निर्मला देवी के घर आ गई थी। 

 निरंजन खेती-बाड़ी देखा था और आशीष एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था। शादी से पहले निक्की भी जॉब करती थी। हंसी खुशी शादी का काम निपट गया था और सारे मेहमान भी वापस जा चुके थे। 

 दोनों भाइयों के स्वभाव में बहुत अंतर था और निर्मला देवी थोड़े से सख्त स्वभाव की थी। निरंजन हमेशा कहता था कि औरत पांव की जूती होती है, लेकिन उसकी मां और उसके भाई आशीष को यह बात अच्छी नहीं लगती थी। आशीष औरतों की बहुत इज्जत करता था। पायल को भी निरंजन की यह बात अच्छी नहीं लगती थी। निरंजन, जब पायल का अपमान करता था तो उसे बहुत बुरा लगता था। पायल का स्वभाव बहुत अच्छा था। वह निक्की को छोटी बहन की तरह देखती थी और निकिता भी उसका बहुत सम्मान करती थी। दोनों की आपस में बहुत जमती थी। 

 विवाह का 1 वर्ष बीत चुका था। अब धीरे-धीरे लोगों ने संतान के बारे में पूछना शुरू कर दिया था। कहो निकिता कब गुड न्यूज़ सुना रही हो। पहले तो निकिता और आशीष इस बात पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन समय के साथ-साथ उन्हें भी चिंता सताने लगी थी। 

  उन्होंने कुछ समय तक और इंतजार किया, और फिर उसके बाद वे लोग चुपचाप घूमने के बहाने शहर में डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर ने निकिता और आशीष दोनों के कुछ टैस्ट करवाए। आशीष के  टैस्ट की रिपोर्ट में कुछ कमियां थी। डॉक्टर साहब ने कहा चिंता की कोई बात नहीं है लेकिन आशीष को कम से कम 6 महीने दवाई खानी पड़ेगी। दोनों घर वापस आ गए और आशीष ने अपनी दवाई शुरू कर दी। 

      एक दिन अचानक उसकी मां उसके कमरे में आई, तब दवाइयां देखकर वह हैरान रह गई और आशीष से पूछने लगी-” सच-सच बात यह दवाइयां किसकी है, और अगर यह तेरी है तो तू यह दवाइयां क्यों खा रहा है? ” 

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 आशीष-” हां मां यह मेरी दवाइयां है, हम दोनों डॉक्टर के पास गए थे, डॉक्टर ने कुछ महीने तक दवाई खाने के लिए कहा है। ” 

 यह सुनकर निर्मला देवी को गुस्सा आ गया। उन्होंने निकिता को बुलाकर कहा -” तू क्या साबित करना चाहती है, चुपचाप मेरे बेटे को दवाइयां खिला रही है, बच्चा तुझे नहीं हो रहा और तू मेरे बेटे की कमियां गिनवा रही है, इसे डॉक्टर के पास ले जाकर तूने हमारे घर की इज्जत को खराब कर दिया। मेरे बेटे में कोई कमी नहीं है, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे में कमी बताने की। ” 

 निकिता-” मां जी, यह मैंने नहीं कहा, यह तो डॉक्टर ने कहा है और दवाइयां भी उसी ने दी है और कहा है की चिंता वाली कोई बात नहीं है और फिर इलाज करवाने में घर की इज्जत कैसे खराब हो गई? ” 

 यह सब कुछ निरंजन सुन रहा था, उसे तो मौका मिल गया आशीष के पीठ पीछे कहने लगा नपुंसक कहीं का। यह बात निकिता ने सुन ली और उसे  बहुत खराब लगा,उसने अपनी जेठानी को पूरी बात बताई। 

    पायल ने निरंजन से कहा कि वह आपका छोटा भाई है आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए। निरंजन उसके ऊपर चिल्लाने लगा। 

 एक बार निर्मला देवी अपने कमरे में लेटी हुई थी, गर्मियों में दोपहर का समय था। निकिता अपने कमरे में थी। उसकी जेठानी पायल दोनों बच्चों के साथ अपने कमरे में सो रही थी। निरंजन दबे पांव निकिता के कमरे में आ गया,निकिता तुरंत उठकर बैठ गई। और निरंजन से कहने लगी-” जेठ जी, आप यहां क्या कुछ काम है आपको? ” 

 निरंजन ने बेशर्मी से मुस्कुराते हुए कहा-” वह नपुंसक तुम्हें क्या बच्चा देगा, मैं तैयार हूं। ” 

 तब निकिता ने उठकर उसके मुंह पर कसकर तमाचा मारा। निरंजन अपने गाल को सहलाता हुआ वहां से चला गया। 

 निकिता ने पूरी बात उसी समय अपनी जेठानी को बता दी। आशीष के ऑफिस से आने पर निकिता ने उसे भी पूरी बात बताई। अपने भाई की हरकत पर आशीष बहुत शर्मिंदा था, उसे गुस्सा भी बहुत आ रहा था। उसने अपनी मां से बात करने के लिए सोचा। लेकिन निकिता ने उसे कहा मां से अभी कुछ मत कहो।

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उसके बाद आशीष ने वहां न रहने का फैसला कर लिया और उसने अपना ट्रांसफर दिल्ली करवा लिया। वह अपनी पत्नी निकिता के साथ तुरंत दिल्ली शिफ्ट हो गया। 

 उधर निर्मला देवी को असली बात का पता नहीं था। वह हर समय निकिता को कोसती रहती थी  कि वह मेरे बेटे को उड़ा ले गई। बांझ तो खुद थी, पर मेरे बेटे की कमियां निकालती थी। 

 आखिर ऐसा सुन सुन कर पायल तंग आ गई और उसने तब निरंजन की गंदी हरकत निर्मला देवी को बताई। अपने बेटे की नीच हरकत सुनकर निर्मला देवी हैरान थी और उन्हें गुस्सा भी बहुत आ रहा था। तब उनकी समझ में आया कि निकिता ने घर की इज्जत को बचा लिया है। 

 एक दिन आशीष ने फोन करके अपनी माता जी को खुशखबरी सुनाई कि मां आप दादी बनने वाली हो। निर्मला जी बहुत खुश थी और उन्होंने आशीष से कहा कि ” मैं एक हफ्ते के अंदर ही तुम्हारे पास पहुंचती हूं। निकिता से कहना किसी बात की चिंता ना करें मैं सब कुछ संभाल लूंगी। ” 

 और फिर एक दिन ऐसा आया कि उनकी गोद में एक प्यारी सी गुड़िया खेल रही थी। 

 स्वरचित, अ प्रकाशित, गीता वाधवानी दिल्ली

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