आज व्यंजना के भाई आर्यन का विवाह था। मम्मी पापा के प्रसन्नता से खिले मुखों को देखकर वह भी बहुत खुश थी। मम्मी के तो जैसे पैर ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। तभी उसके कानों में चहकती हुई मम्मी की आवाज पड़ी – ” बच्चों के मन मिलने अधिक आवश्यक हैं। बच्चे खुश, सुखी और प्रेम से रहें। बाकी जाति- पात, धर्म, कुण्डली मिलान तो सब व्यर्थ की बातें हैं। मन मिल जायेंगे तो गण खुद मिल जायेंगे। आजकल तो प्रेम विवाह सामान्य बात हो गई है बल्कि मैं तो मानती हूॅ कि बच्चे एक दूसरे को पहले से जानते समझते हैं तो विवाह अधिक सफल होते हैं।” सुनकर व्यंजना के सारे उत्साह पर जैसे पाला पड़ गया। उसे बहुत कुछ याद आ गया।
बचपन से मुहल्ले के सभी बच्चों के साथ उसे पता ही नहीं चला था कि लड़कों और लड़कियों में भी भेद होता है। उसके लिये तो दोस्त सिर्फ दोस्त थे – लड़का और लड़की नहीं।
छठवीं कक्षा में आने के बाद मम्मी ने उससे कह दिया – ” अब तुम बड़ी हो रही हो और बेटियॉ घर की इज्जत होती हैं। इसलिये अब तुम केवल लड़कियों के साथ खेला करो। लड़कों से ज्यादा बात करने वाली लड़कियों को गन्दी लड़की कहते हैं।”
उसने चुपचाप मम्मी की बात मान ली लेकिन उसका मन अपने उन दोस्तों के साथ खेलने के लिये बहुत छटपटाता जिन्हें या तो मम्मी बाहर से ही वापस कर देतीं या उसे स्वयं जाकर बहाना बनाना पड़ता।
बी०ए० के बाद प्रशासनिक परीक्षाओं में बैठने की इच्छा और प्रतिभा होते हुये भी उसे बी० एड० करना पड़ा क्योंकि मम्मी पापा की दृष्टि में लड़कियों के लिये अध्यापन ही सर्वश्रेष्ठ कार्य है। अपनी ओर उठती हर प्यार भरी नजर को उसने अनदेखा कर दिया क्योंकि वह घर की इज्जत थी और उसके हर कदम पर माता पिता की इज्जत का पहरा था।
उसे आश्चर्य तो तब हुआ जब छोटे भाई की जेब से निकले प्रेम पत्र को देखकर मम्मी ने कह दिया –
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” इस उमर में लड़के तो यह सब करते ही हैं। कौन सा वह लड़की है जो यह सब करने से बदनामी होगी या घर की इज्जत चली जायेगी ? सम्हलकर तो लड़कियों को रहना चाहिये क्योंकि वे घर की इज्जत होती हैं।”
पापा ने भी हॅसते हुये मम्मी की ओर देखकर कहा – ” बधाई हो, तुम्हारा लड़का जवान हो गया है। जवानी तो इसी को कहते हैं, वरना पता कैसे चलेगा कि लड़का जवान हो गया है।” मम्मी भी हॅस पड़ी।
फिर पापा ने मम्मी से कहा – ” अपनी बिटिया पर कड़ी नजर रखना। जरा सा ऊॅच नींच हो गई तो घर की इज्जत तो जायेगी ही हमारे खानदान की नाक कट जायेगी।”
मम्मी ने बड़े गर्व से कहा – ” तुम चिन्ता मत करो। मैंने व्यंजना को इतनी छूट नहीं दी है कि वह किसी से नैन मटक्का करती फिरे। सीधे घर से स्कूल और स्कूल से घर।”
व्यंजना अपने मन में उठते प्रेम के आवेगों को दबा देती क्योंकि जानती थी कि यदि उसके हृदय में प्रेम का अंकुर भी उठा तो कुचल दिया जायेगा। सारी जिन्दगी असफल प्रेम के लिये तड़पने से अच्छा है प्रेम के बीज को मिट्टी में ही समाप्त कर दिया जाये।
इसके बावजूद दिल तो दिल ही है। यौवन का आविर्भाव होते ही विपरात लिंग के प्रति एक स्वाभाविक आकर्षण से कोई भी व्यक्ति अछूता नहीं रहता लेकिन व्यंजना के दिल को इस सबकी इजाजत नहीं थी। किसी के प्रति जरा भी मन आकर्षित होता तो वह स्वयं वर्जना की तर्जनी दिखाकर उसे शान्त कर देती –
” तुम संस्कारी बेटी हो। तुम अपने घर की इज्जत हो। प्यार भरी नजरों का प्रतिउत्तर देने भर से तुम्हारे माता पिता की इज्जत चली जायेगी।”
इसके बावजूद कई युवक न केवल उसकी ओर आकर्षित होते बल्कि किसी न किसी माध्यम से उस तक विवाह का प्रस्ताव भी भेज देते। व्यंजना डरकर कॉप जाती।
एक बार तो उसकी मौसी ही उसके एक सहकर्मी पंकज का प्रस्ताव लेकर आईं लेकिन मम्मी इतनी बुरी तरह नाराज हो गईं कि उन मौसी से हमेशा के लिये सम्बन्ध समाप्त कर दिये –
” दीदी, आपके घर के सामने से निकलता है वह लड़का। कल आपको दिखा दूॅगी। उनकी दहेज की कोई मॉग नहीं है और सजातीय भी हो।”
” मुझे नहीं करनी किसी सहकर्मी से बिटिया का विवाह। मेरी इतनी सीधी और संस्कारी बिटिया पर व्यर्थ का कलंक लग जायेगा कि पहले से कोई चक्कर रहा होगा।”
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” तो क्या हुआ, कहने दो। प्रेम विवाह करना कोई गलत बात तो है नहीं। तुम एक बार लड़के को देख लो, इसके बाद ही कोई निर्णय करना।”
” मुझे न देखना है और न यह विवाह ही करना है। तुम्हारे लिये प्रेम विवाह बहुत अच्छा है लेकिन मेरे लिये तो यह बहुत बड़ा पाप है। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, मुझसे ऐसी बात करते हुये? मेरे घर की इज्जत उछालते तुम्हें शर्म नहीं आई।”
” एक बार व्यंजना से तो पूॅछ लो।” मम्मी द्वारा इतनी बेइज्जती करने पर भी मौसी हार नहीं मान रही थीं।
” उससे क्या पूॅछना? उसकी शादी के लिये निर्णय मैं और उसके पापा करेंगे, कोई ऐरा गैरा नहीं।”
मौसी के जाने के बाद मम्मी उसे संदेह भरी दृष्टि से देखते हुये उस पर बरस पड़ीं – ” सच सच बताओ, तुम्हारा उस लड़के से कोई चक्कर तो नहीं चल रहा? पता है ना कि तुम्हारे पापा को पता चलेगा तो तुम्हें काटकर फेंक देंगे।”
” नहीं मम्मी, मुझे तो पता भी नहीं था।” उसने रोते हुये कहा।
” तब वह क्यों कह रही थीं कि व्यंजना से पूॅछ लो? बिना तुम्हारी मर्जी के तुम्हारी मौसी की इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि वह उस लड़के का प्रस्ताव लेकर आ गईं? “
” मैं कुछ नहीं जानती, मेरा विश्वास करो।” व्यंजना के ऑसू रुक नहीं रहे थे। पंकज उसे भी बहुत पसंद था। वह पंकज की ऑखों के भावों से भी परिचित थी। जबकि वह अपनी सीमा जानती थी इसलिये पंकज से कुछ अतिरिक्त ही दूरी रखती थी परन्तु मम्मी को उस पर विश्वास नहीं हो रहा।
” ठीक है, अब तुम यहॉ से स्थानान्तरण करवा लो और जब तक स्थानान्तरण न हो जाये, चिकित्सा अवकाश लेती रहो। यहॉ पर दुबारा जाने की जरूरत नहीं है।”
शायद पंकज को मौसी की बातों से कुछ अनुमान हो गया होगा, इसलिये जब वह एक सप्ताह तक स्कूल नहीं गई तो उसके आवेदन पत्र देने के पहले ही पंकज ने अपने स्थानान्तरण का आवेदन पत्र दे दिया। शायद पंकज ने स्कूल में स्टाफ को अपनी भावनायें बता दी थी और सभी मन ही मन इस जोड़ी को एक बंधन में बॅधा हुआ देखना चाहते थे। इसलिये सच्चाई जानकर सबका दुखी होना स्वाभाविक था।
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पंकज ने एक अध्यापिका को भेजकर व्यंजना से क्षमा भी मॉगी, साथ ही स्कूल न छोड़ने की प्रार्थना भी की। व्यंजना अपनी विवशता पर बहुत रोई कि पंकज को उसके कारण अपना स्थानान्तरण करवाना पड़ा।
उसके बाद मम्मी पापा ने जाति, धर्म ,गोत्र, कुण्डली, ग्रह – नक्षत्र देखकर उसका विवाह कर दिया जिसे आजीवन ढोना उसकी विवशता है क्योंकि उसे पति रूप में मालिक और स्वामी मिला था जिससे साथी, हमसफर या संगी की कामना ही व्यर्थ थी।
रात में जब वह पति की इच्छा पूर्ति के रूप में बलात्कार को सहन कर रही होती तब वे सभी पुरुष जो उसे प्रेयसी रूप में पाना चाहते थे, दूर खड़े ऑसू भरी ऑखों से उससे पूॅछा करते – ” क्या इसी पशु को पाने के लिये मेरी ओर दृष्टि उठाकर नहीं देखा था? शायद घर की इज्जत के लिये यह सब सहन करना ही अब तुम्हारी नियति है।”
इच्छा पूर्ति के पश्चात पति के करवट बदल कर सो जाने के बाद वे सब उसके करीब आ जाते। कोई उसके ऑसुओं को अपनी गर्म सॉसों से सुखाता, कोई उसे अपनी बॉहों में भरकर हृदय से लगा लेता, कोई उसकी सम्पूर्ण देह को अपनी हथेलियों से सहलाता तो कोई भीतर ही भीतर उठती सिसकियों को दबाने के प्रयत्न में बन्द अधरों पर अपने जलते अधर रख देता।
कभी मम्मी या पापा ने जानने का प्रयत्न ही नहीं किया कि वह खुश और सुखी है या नहीं और व्यंजना के स्वाभिमान ने कभी उन्हें कुछ बताने की आवश्यकता नहीं समझी। मम्मी-पापा के घर की इज्जत अब पति के घर की इज्जत थी बल्कि विवाह के बाद तो उस पर दो घरों की इज्जत का भार आ गया था।
काश! आज मम्मी-पापा भाई के लिये जो कह रहे हैं, उसके लिये भी कहा होता। ऐसा नहीं है कि उसे आर्यन से ईर्ष्या हो रही है बल्कि अपने भाई को अपने अभीप्सित साथी को प्रेम से निहारते देखकर खुशी ही हो रही थी। इसके बावजूद एक कसक से बार बार उसका हृदय आन्दोलित जरूर हो रहा है। काश! केवल लड़कियों पर ही माता पिता और घर की इज्जत का भार न होता।
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर