मालती का मन बड़ा ही बेचैन था, सुबह से शाम हो गई पर वो कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी, विनोद के ऑफिस से आने का समय हो गया था, उसने खाने की तैयारी कर ली और बेचैनी से बॉलकोनी में टहलने लगी, हर आती -जाती कार पर उसकी निगाह थी, जैसे ही विनोद की कार दूर से आती दिखाई दी उसके मन को राहत मिली, एक विनोद ही थे जो उसकी मनःस्थिति को समझते हैं और सही सलाह देते हैं।
घंटी बजने से पहले ही उसने दरवाजा खोल दिया, और पहले से उबलते चाय के पानी में दूध डालकर दो कप चाय के लेकर आ गई।
विनोद जब तक कमरे से कपड़े बदलकर आ गये थे।
क्या बात है? घर में बड़ी शांति है, बच्चे कहां गये है? चाय की घुट लेकर कमरे में नजर दौड़ाकर विनोद बोले।
बच्चे पार्क में खेलने गये है, मालती ने हल्के स्वर में कहा।
तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ है? और आवाज भी धीमी है, कुछ हुआ क्या? कोई परेशानी है? चाय का प्याला हाथ से टेबल पर रखकर विनोद मालती के करीब आकर बोले।
हां, परेशानी तो है, पर आप पहले चाय पी लीजिए, फिर आपसे कोई परेशानी छुपी भी नहीं है, मालती ने चाय का प्याला विनोद के हाथ में फिर से पकड़ा दिया और खुद भी चाय पीने लगी।
अब तो चाय भी पी ली, बताओ क्या हो गया? मुझसे तुम्हारी ये परेशानी देखी नहीं जाती है, तुम्हें पता है, मै तुम्हारे चेहरे पर शिकन की एक रेखा भी नहीं देख पाता हूं, विनोद बड़े प्यार से समझाते हुए बोले।
मालती बिना लाग लपेट के बोली, ‘बड़े भैया का फोन आया था, उन्होंने मुझे कल सुबह बुलाया है, पर मेरा मायके जाने का जरा भी मन नहीं है, सहन करने की भी कोई सीमारेखा होती है, मै वहां जाकर बार-बार अपना अपमान नहीं करवा सकती हूं, और इस बार तो मैंने सोच लिया है कि मै बिल्कुल भी नहीं जाऊंगी, मालती आंखें भिगोकर बोली।
आपको याद है उन्होंने मेरे साथ क्या -क्या नहीं किया, जब मां बीमार थी तो वो अकसर मुझको मिलने बुला लिया करती थी, उनसे घर में कोई बात करने वाला नहीं था, उन्हें अपने ही घर में कितनी घुटन होती थी, भाभी तो बस दो वक्त का खाना दे देती थी, कभी उनके पास भी नहीं बैठती थी, ना ही कभी तबीयत पूछती थी, तो मां मुझे हर दस पन्द्रह दिन में बुला लिया करती थी।
एक दिन मै उनसे मिलने गई थी तो भाभी ने दरवाजा खोला और मुझसे ढंग से बात भी नहीं की, मै वो अपमान का घुट भी अपनी मां के लिए पी गई, अंदर गई तो भैया ने मुझसे ये तक नहीं पूछा कि तू आ गई क्या? तुझे कोई परेशानी तो नहीं हुई, और अपनी दुकान पर चले गए, यूं लगा कि अपने ही घर में शादी के बाद लड़की की कितनी बेइज्जती होती है और उसे वो भी बर्दाश्त करनी होती है।
मै फिर भी मुस्कराते हुए मां के कमरे में गई, और उनसे हंस-हंसकर ढेर सारी बातें की, शाम तक मै उनसे बातें करती रही, तभी मां ने कहा कि तेरे हाथ की अदरक वाली चाय बनाकर ले आ।
मै रसोई की तरफ गई और तभी भाभी भैया से बोल रही थी, आपकी मां मरती भी नहीं है, और उस पर आपकी बहन हर दस दिन में आ धमकती है, आपकी मां की सेवा करो, खर्चा उठाओ, उस पर आपकी बहन के खाने-पीने का भी खर्चा उठाओ, लोगों के घर बहन-बेटियां साल में एक दो बार आती है, और यहां तो जैसे मैंने धर्मशाला खोल रखी है, हर दस दिन में आ धमकती है।
जाने आपकी मां से कब मुक्ति मिलेगी? साथ ही आपकी बहन से भी, मै तो दोनों से परेशान हो गई हूं, मेरी तो कोई खुशी ही नहीं रही, हर रविवार आ धमकती है, अरे! मुझे भी तो अपने पति और बच्चों के साथ वक्त बिताना होता है।
अपनी भाभी की बातें सुनकर मै जडवत रह गई और अगली सुबह ही जल्दी वापस घर आ गई, उसके बाद मां ने कई बार बुलाया पर मै मां से फोन पर ही समाचार लेती रही, उनसे मिलने कभी नहीं गई।
एक सुबह भाभी का गुस्से से फोन आया, ‘मालती आखिर तुमने मांजी को बहला-फुसलाकर कर उनसे वो जडाऊ सोने के कंगन हथिया ही लिए, इसीलिए तुम मांजी के पास आती थी, बिना लालच के कोई अपने मां- बाप को नहीं पूछता है, चुपचाप बता दो, वरना तुम्हारे भाईसाहब पुलिस में रिपोर्ट करने चले जायेंगे।”
मेरी भाभी ने मुझपर चोरी का इल्ज़ाम लगाया, वो बात मै आज तक भी भुली नहीं हूं, ये बात अलग है कि बाद में वो कंगन मां के बक्से में मिल गये।
आखिरकार मां भी चली गई, वो सब रिश्ते एक कडवाहट के साथ खत्म हो गये।
मालती सिसकियां लेने लगी, विनोद ने उसे पानी पिलाया।
लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि भैया ने तुम्हें क्यों बुलाया है? विनोद अचरज से बोले।
‘मां के नाम सारी संपत्ति है, और अब मां को गये छह महीने हो गए हैं, भैया मुझसे हस्ताक्षर करवाके मुझे संपत्ति में बेदखल करना चाहते हैं, मालती ने कहा।
और तुम क्या चाहती हो? जो भी होगा, वो सिर्फ तुम्हारा फैसला होगा, और मै हमेशा की तरह तुम्हारे साथ हूं, विनोद ने मालती को दिलासा देते हुए कहा।
मै संपत्ति में अपना हिस्सा लेना चाहती हूं, वो हिस्सा लेकर मै मां के नाम से उनकी इच्छा थी, वहां दान कर दूंगी, पर भैया को अपना हिस्सा किसी भी कीमत पर नहीं दूंगी।
बर्दाश्त की भी एक सीमारेखा होती है, मैं बहुत मर्यादा में रही और गलत भी बर्दाश्त किया,पर अब और नहीं, घर की बेटी और बहन बनकर सब सहा पर अब और नहीं, सहनशक्ति की सीमारेखा मै पार कर चुकी हूं, घर की बेटी अब और ना सहेगी, अगर मैंने अपना हिस्सा छोड़ दिया तो मुझे जिंदगी भर ये दर्द सालता रहेगा
कि जिन भैया और भाभी ने मां को इतने कष्ट दिये, मुझे इतनी मानसिक तकलीफ दी, मैंने उन्हें ऐसे ही माफ कर दिया, जायदाद में आधा हिस्सा लूंगी, तभी उन्हें अपनी गलती का अहसास होगा।
मालती ने तुरन्त आंसू पौंछे और अपने भैया को कहा, ‘ भैया मां के मरने के बाद मैंने कसम खाई थी कि मै आपकी चौखट पर कभी कदम नहीं रखूंगी, इसलिए मै नहीं आऊंगी, और जायदाद में अपना हिस्सा भी नहीं छोड़ूंगी, उम्मीद है हम बहुत जल्दी कोर्ट में मिलेंगे, अपना फैसला सुनाकर मालती ने सूकून की सांस ली और फोन रख दिया।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
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