घर आँगन – अनु माथुर : Moral Stories in Hindi

घर की लाडली और चार भाई – बहनों में सबसे छोटी सुरुचि… जिसे सब रुचि कह कर पुकारते थे जिसका ग्रेजुेएशन  का  सेकंड इयर पूरा हुआ था …

उसकी शादी की बात जब ओमकार जी ने घर में की की तो सबने कहा अभी ये छोटी है … लेकिन ओमकार जी के ज़ोर देने पर…..

लड़के और लड़के के परिवार से मिलने के बाद सबने हाँ कर दी …. धूम – धाम से सुरुचि की शादी रजत से हो गयी….

रजत का अपना बिज़निस था  और उसके पापा भी एम. एन सी. में डायरेक्टर के पद पर कार्यरतथे…. कुल मिला कर संपन्न परिवार था….

शादी के वक़्त सुरुचि की माँ ने उसकी सास को बता दिया था कि उसे ज़्यादा काम करना नहीं आता….

सुरुचि की सास एक कुशल गृहणी थी….. और उन्होंने बड़े प्यार, से सुरुचि को अपना लिया था…..  घर में खाना बनाने और साफ सफाई के लिए नौकर चाकर…

लेकिन सुरुचि की सास सब खुद देखती थी…. उन्होंने सुरुचि को कोई भी काम करने को मना  किया हुआ था….ज़रूरत भी नहीं थी क्योकि घर में सब काम करने के लिए नौकर थे…..उसे ऐसा घर परिवार मिला था कि किसी को भी अपनी किस्मत पर नाज़ हो

सुरुचि कॉलेज जाती पढाई करती जैसे वो अपने मायके में रहती थी वैसे ही अपने ससुराल में रहती थी…..कोई काम उसे करना नहीं पड़ता था …

दिन बीते और देखते – देखते सुरुचि की पढाई पूरी हो गयी…u अब उसे जॉब करनी थी रजत ने सुरुचि कि अपने ही बिजनिस में हाथ बटाने को बोला  …. सुरुचि तैयार हो गयी …. अब वो रजत के साथ ऑफिस जाने लगी….

ऑफिस अपना ही था तो सुरुचि शाम को 5 बजे तक घर आ जाती थी…एक दिन सुरुचि जब घर आयी  तो उसकी सास उसे किचन में कुछ करती हुयी दिखाई दी…. वो किचन में गयी तो देखा वो खाने की तैयारी कर रहीं थी

उसने पूछा ” मम्मी आज कुक नही हैं जो आप काम कर

रहीं है “?

” वो आज आधे दिन की छुट्टी पर है उसकी माँ की तबियत खराब है.. “सुरुचि की सास ने कहा

अच्छा तो मैं आपके साथ काम करवा देती हूँ कह कर सुरुचि ने पास में रखा हुआ एपरिन पहन लिया और बोली आप बताएं मै क्या करूँ…..?

सुरुचि की सास ने कहा – ये दाल – चावल है जितना मैं बताऊँ उतना तीन बार पानी से धो कर उसमें थोड़ा पानी डाल कर छोड़ दो… .. सुरुचि ने वैसा ही किया

तब तक सुरुचि की सास ने आटा निकाला और सुरुचि को दिखाते हुए उसे गूंध दिया… उन्होंने सुरुचि के साथ मिलकर सब्ज़ी काटी और और थोड़ी ही देर में पूरा खाना बना दिया….

सुरुचि बड़े चाव से एक एक चीज देख कर समझ रही थी…..

डाइनिंग टेबल पर जब सब खाना खाने बैठे तो सुरुचि की सास ने बताया की आज सुरुचि और उन्होंने मिल कर खाना बनाया है….

अब रोज़ ही ऐसा होता सुरुचि ऑफिस से घर आती और कोई एक चीज़ अपनी सास के साथ मिल कर बनाती …बाकी सारा खाना कुक ही बनाता था…

धीरे – धीरे सुरुचि को उसकी सास ने घर के सारे काम करना और खाना बनाना सिखा दिया… सुरुचि अब सब करने लगी थी… घर और ऑफिस उसने बहुत अच्छे से संभाल लिया था

समय बीता सुरुचि दो प्यारे बच्चो की माँ बन गयी थी और इसी के साथ उसके सास ससुर की शादी की शादी को पचास साल पूरे हो गए थे घर में जश्न का माहौल था … सुरुचि ने कोई कमी नही छोड़ी थी …. बहुत अच्छे से उसने सब किया था….जो आया उसकी तारीफ़ कर रहा था

सब हो जाने के बाद सुरुचि को मंच पर बोलने के लिए बुलाया….. उसने भरी आँखों से अपनी सास की तरफ देखा और बोलना शुरू किया ” मैं बहुत भाग्यशाली हूँ की मुझे ऐसा घर परिवार मिला…. एक माँ ने मुझे इस संसार में लाया तो दूसरी ने मुझे इस संसार में रहना सिखाया….. सही गलत में फर्क बताया….. हमेशा मेरा साथ दिया…..

ये सब जो आप देख रहे हैं ना सब इनका ही सिखाया हुआ है ….इनकी समझदारी ने आज मुझे इस क़ाबिल बनाया…..सच है घर का आँगन बहू से सजता है तो सास बिना ससुराल भी फीका होता है …कहते हुए सुरुचि अपनी सास के गले से लग गयी उसकी सास ने भी बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा…. पास ही खड़ा हुआ रजत  मुस्कुरा रहा था |

#घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी तो सास के बिना फीका होता है 

 

धन्यवाद

स्वरचित

कल्पनिक कहानी

अनु माथुर

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