ममता जब ब्याह कर इस घर में आई थी, तबसे ही उसकी दुनिया बदल गई थी। नए रिश्ते, नई जिम्मेदारियाँ और सबसे बड़ी बात हर पल खुद को साबित करने की चुनौती। ममता स्वभाव से सीधी-सादी, समझदार और मेहनती थी।
उसने आते ही पूरे घर की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी। सुबह सबसे पहले उठना, घर की सफाई,पूजापाठ, सास-ससुर के लिए चाय, नाश्ता और फिर पूरे परिवार के लिए भोजन बनाना । ये सब उसका दैनिक क्रम बन गया था। लेकिन जितना वह करती, उतनी ही उपेक्षा उसे मिलती।
उसकी सास हर बात में ममता की तुलना जेठानी शशि से करती थीं। “शशि कितनी सलीकेदार है, कितनी होशियार है!” ममता सुनती और चुप रह जाती। उसे मालूम था कि घर में बहस करने से रिश्ते नहीं निभते।
गर्मी की छुट्टियाँ आईं और शशि अपने बच्चों के साथ घर आई। घर में जैसे त्योहार सा माहौल हो गया। सास की मुस्कान अब अक्सर दिखने लगी थी, जो ममता के रहते कभी नहीं दिखती थी। शशि भी समझदार थी, उसने देखा कि ममता कितनी तन्मयता से सबका ख्याल रखती है, बिना किसी शिकवा के।
एक दिन शशि ने ममता से कहा- तुम्हें कभी थकान नहीं लगती?”
ममता मुस्कुराई, जब दिल से कोई काम करो तो थकान नहीं होती दीदी।शशि को उसकी बात दिल से छू गई।पर उसकी सास ने मुह बनाकर कहा बाते बनाना तो कोई इससे सीखे।
छुट्टियां खत्म होने में अभी 5 दिन बाकी थे तभी एक दिन ममता की सास की तबीयत अचानक बिगड़ गई। शशि अपने बच्चों के स्कूल का बहाना बनाकर जल्दी लौट गई। ननदें फोन पर हाल-चाल तो लेतीं, पर साथ निभाने कोई नहीं आया। सारा भार ममता पर आ गया।
ममता दिन-रात सास की सेवा में जुटी रही।हर काम उसने दिल से किया। दो रातों से उसने ढंग से सोया भी नहीं था, पर शिकवा न कोई, न कोई दिखावा।
एक रात जब सास की हालत थोड़ी सुधरी, उन्होंने ममता को पास बुलाया और कांपते स्वर में कहा –
बेटा, आज समझ आया कि घर कौन संभालता है। अब तक मैं तुझमें शशि की परछाईं ढूँढ़ती रही, पर असल में तू तो इस घर का आधार है।
ममता की आँखें नम हो गईं। पहली बार सास ने उसे अपनाया था।
ममता ने सिर झुकाया और मुस्कुरा दी। उसे किसी पुरस्कार की लालसा नहीं थी, बस स्वीकृति की एक मुस्कान ही काफी थी।
कभी-कभी हम अपनों की कद्र तब करते हैं जब वे हमारी उम्मीदों से परे जाकर हमारे लिए खड़े होते हैं। बहुओं को केवल बहू नहीं, बेटी मानने से ही घर में सच्चा सुख आता है।
स्वरचित/मौलिक
प्रतिमा पाठक
दिल्ली
#सास को बहू की तकलीफ नही दिखती है।