बच्चे स्कूल जा चुके थे और पीयूष भी अपने दफ्तर को जैसे ही निकले हर रोज की तरह माधवी ने जल्दी से रसोई घर में जाकर दो कप इलायची वाली कड़क चाय बनने के के लिए रख दी |
यही तो समय होता था जब सुबह की भागदौड़ और शोर शोरगुल के बाद दो घड़ी आराम से बैठकर सास बहू सुकून से चाय पीती थी और उसके बाद घर के बाकी काम में लगती थी |
अभी चाय बन ही रही थी कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी | घड़ी में देखा तो 10:00 बजे थे | समझ में नहीं आया इस समय अचानक कौन होगा परंतु इतने में शीला जी ने जाकर दरवाजा खोल दिया और माधवी को आवाज लगाई,
“माधवी! चाय ना बनी हो तो एक कप और चढ़ा दे | देख कौन आया है?”
गैस धीमी करके माधवी उत्सुकता वश जैसे ही बाहर निकली तो देखा सामने सजी-धजी जेठानी नेहा खड़ी थी |
“अरे दीदी आप अचानक यहां! इस समय कैसे?” माधवी के मुँह से निकल गया |
“क्यों भाई! देवरानी और सासु माँ से मिलने का मन किया तो आ गई मिलने | नहीं आ सकती क्या! या तुम्हारे निमन्त्रण का इंतजार करना पड़ेगा?” जेठानी नेहा ने अपने स्वभाव के अनुकूल उत्तर दिया |
माधवी भी चुप हो गई उसे अपनी गलती का एहसास हुआ | अभी इसी बात का बतंगड़ बन ही जाएगा ऐसा ही तो होता था | जेठानी हर बार अपने अमीर मायके के दंभ और जेठानी होने के नाते कोई भी मौका नहीं छोड़ती नहीं थी माधवी को नीचा दिखाने का |
जेठानी जी के मायके अमीर थे उनका घर बड़ा और उसमें सभी सुख सुविधाएं थीं जबकि माधवी के घर में ऐसी सुविधाएं नहीं थी और घर भी मात्र दो कमरों का था | अमीरी का घमंड तो नेहा में कूट-कूट कर भरा हुआ था|
बैठते ही बोली,
“यह क्या हालत बना रखी है घर की? चारों तरफ सामान बिखरा हुआ है? माधुरी तुमको तो घर संभालने की भी अक्ल नहीं है | घर वह होता है जिसमें हर चीज व्यवस्थित रखी हुई हो |”
माधुरी ने उनकी उम्र और उनके जेठानी के पद का मान रखते हुए कहा,
“दीदी! सुबह के समय काम ही इतना होता है | बस मैं और मम्मी जी इस समय चाय पीते है और फिर मैं काम करने ही लगी थी अभी तो बच्चों को स्कूल भेजा और पीयूष को भी दफ्तर विदा किया है और आप तो जानती है कि सुबह की आपाधापी में घर बिखर ही जाता है थोड़ा बहुत” माधवी ने मानो सफाई देते हुए कहा |
” अपने साथ काम के लिए कोई आया क्यों नहीं रखती हो तुम्हारी भी सहायता हो जाएगी |”
नेहा ने जानबूझकर कहा जबकि जानती थी कि माधवी की इतनी सामर्थ्य नहीं कि वह एक नौकर रख सके |
माधवी ने हर बार की तरह संयम के साथ कहा,
” दीदी! छोटा सा तो घर है कितनी देर लगती है संभालने में और सारा दिन मुझे काम ही क्या होता है तो जल्दी से हो जाता है | छोटा सा घर है ना तो बिखरता भी जल्दी से है और सम्भलता भी जल्दी से है| आप और मम्मी जी चाय पीजिए मैं अभी सब कुछ व्यवस्थित कर देती हूँ |” यह
कहते हुए माधवी रसोई में चली गई और चाय की ट्रे लाकर सासू मां और जेठानी जी को दे दी और खुद बिखरे हुए कपड़े और सामान को संभालने में लग गई |
आधे घंटे में पूरा घर व्यवस्थित हो गया था | सासू मां ने पूछ लिया,
” नेहा! आज अचानक यहाँ कैसे आ गई? “
” बस दिल किया तो आ गई | बच्चे भी स्कूल से सीधा इधर ही आ जाएंगे |उनके वैन वाले को मैंने कह दिया और उनके कपड़े और समान भी के आयी हूँ”
माधवी ने भी खुश होते हुए कहा,
“हाँ दीदी! य़ह अच्छा किया | बहुत दिन से सभी बच्चे इकट्ठे जो नहीं हुए थे|”
जैसे ही दोपहर को चारों बच्चे इकट्ठे हुए तो नेहा के बच्चों ने बातों बातों में बता ही दिया कि घर पर आज दोनों काम वाली छुट्टी पर थी | असली बात तो अब जाकर माधवी और शीला जी को समझ आयी थी |
इधर माधवी के दोनों बच्चे बड़ी शालीनता से अपने खाना खाने के बाद झूठे बर्तन उठाकर रसोई घर में गए परंतु जेठानी नेहा के बच्चों में खाने के जूठे बर्तन वही छोड़ दिए और अपने-अपने मोबाइल फोन लेकर उसमें लग गए |
“बस इन बच्चों का तो यही है सारा दिन के अपने-अपने कमरों में मोबाइल में लगे रहते हैं | तुम्हें दिक्कत नहीं होती माधवी इतने छोटे से घर में? दो ही तो कमरे है एक में मम्मी जी रहती हैं और दूसरी में तुम और पीयूष | बच्चों की तो कोई प्राइवेसी ही नहीं है | मम्मी जी को भी तो तकलीफ़ होती होगी ना ” फिर से नेहा माधवी को नीचा दिखाने के मूड में थी |
दरअसल शीला जी कुछ महीने बड़ी बहू के घर रहती थी तो कुछ महीने छोटी बहू के घर |
इससे पहले माधवी को कुछ जवाब देती इस बार सास शीला ने जवाब दिया,
बहू तुम्हारा घर बड़ा है य़ह बात तो सही है परंतु यह भी सत्य है कि बच्चे तुम्हारे बिखरे-बिखरे से रहते हैं अलग- अलग कमरों में | घर में घुसते ही ना दादी से दुआ सलाम ना मां-बाप से बस स्कूल से आते ही अपने-अपने कमरे में चले जाते हैं | खाना तक अपने कमरे में खाते हैं मगर इस छोटे घर की एक खास बात यह है कि घर तो बिखरा रहता है परंतु यहां पर सब एकजुट रहते हैं कारण कि सब लोग एक ही कमरे में रहने के कारण यहाँ रिश्ते एक मुट्ठी की तरह बंद ही रहते हैं|
तुम्हारे घर में तो मैं खुद दीवारों से बात करती हूं परंतु इस घर में तो आते-जाते मेरा बेटा या मेरी बहू मुझसे बात कर लेते हैं |
पोता पोती तो सोते ही मेरे साथ मेरे कमरे में है तो बताओ य़ह तो अच्छा है ना इतनी पास रहने से वे एक दूसरे का दर्द महसूस कर पाते हैं |
तुम्हारे बड़े घर के कारण ही तुम्हारे बच्चों को तुम्हारी तकलीफ दिखाई नहीं देती | याद है जब मैं आई थी तो तुम बुखार में दो दिन तक पड़ी रही थी परंतु तुम्हारे बच्चे तुम्हारा हालचाल तक पूछने नहीं आए थे परन्तु इस छोटे से घर में माधवी को छींक
भी आती है तो झट सब भागे चले आते हैं |
छोटे से घर में एक दूसरे की कद्र होती है और भावनाओं की भी | सो घर चाहे छोटा हो या बड़ा, सामान व्यवस्थित हो या ना हो बस रिश्तों में बिखराव नहीं होना चाहिए “
आज पहली बार नेहा की सासु माँ के आगे बोलती बंद हो गयी थी और माधवी के चेहरे पर मुस्कान थी|
दोस्तों अक्सर आज कल हम अपने घरों को व्यवस्थित करके होटलो का रूप देने में लगे हैं परंतु बिखरते रिश्तों की ओर ध्यान नहीं जाता इसलिए आवश्यकता है रिश्तों को सहेजने की |
उम्मीद है कि हर बार की तरह लीक से हटकर य़ह स्व रचित कहानी आपको पसन्द आएगी |
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आपके कमेंट्स के इंतजार में..
पूजा अरोरा