“माँ आपको तो चाची जी को इतनी देर तक बिठाना ही नहीं चाहिए था उपर से आपने उनकी हर बात की हामी भर दी…
अपना समय भूल गई क्या जब उन्होंने कैसे हम सब पर झाड़ू मारकर ( निरादर कर)अपने घर से निकाल दिया था और आप उनको ही इतना मान सम्मान दे रही थी ।
” गरिमा जो हमेशा सब कुछ चुपचाप बर्दाश्त करती रहती थी बेवजह बात ना बढ़ जाए इसलिए चुप रहने में भलाई समझती थी पर आज वो भी बोल ही दी
“ बहू मैं कुछ भी नहीं भूली हूँ… सब ताजे चलचित्र की तरह घूम रहा था पर सोच रही थी क्या सच में ऐसे दिन भी आ सकते हैं किसी के…..जब हम साथ में रहते थे तब हमसे ज़्यादा धन सम्पदा इसके पास थी जिसके दंभ में वो किसी को भी भला बुरा कहते ना चुकती थी…
मुझे याद है जब हम अलग हो कर अलग घर में रहने आए तो हमारे घर की टीवी देख कैसे बोल रही थी… हूऽऽ इससे ज़्यादा की औक़ात थी भी ना दीदी आपके बच्चों की ….भाई साहब ने तो कभी कुछ जमा ही ना किया सब बच्चों पर लगा दिया..अपना सोचते तो कितना कुछ कर सकते थे पर …
खैर अब जो भाई साहब ने ना पूरा किया बच्चे कर रहे ..और देखो हमने सब कुछ कितना अच्छा जुटा रखा है… हाँ ठीक है ना बच्चे ज़्यादा ना पढ़ पाए पर बाप की अर्जित संपत्ति का करेंगे क्या ….उसने कह तो दिया पर लो देख लो आज मेरे बच्चों ने तो अपनी ज़िंदगी बना ली ….
सक्षम भी हो गए पर तेरे चाचा ससुर के जाने के बाद बच्चों ने तो पहले ही सब अलग कर लिया अब तेरी चाची सास को पूछते तक ना और काम क्या करेंगे वो सब बाप की अर्जित संपत्ति गंवा रहे हैं बस… अब बता जब वो अपना दुखड़ा सुना रही थी..घर में राशन भी नहीं…मैं कैसे ना कह देती….
मैं बोल दी सामान भिजवा दूँगी जो ज़रूरी हो ….और तो और सबसे बड़ी बात उसे हमारे पास आकर कहने या मदद माँगने के लिए कितनी हिम्मत जुटानी पड़ी होगी सोच तू सकती हैं ।” अंजना जी ने कहा
“ हाँ माँ जी ये बात तो सही कह रही है जो हमेशा अपनी अकड़ में रहता रहा हो… दूसरे की परिस्थितियों को कभी ना समझा… मिलने जाने पर भी झाड़ू मारते रहे हो ऐसे इंसान का सामने से आकर मदद की गुहार करना उसकी मजबूरी ही दर्शाता है… अच्छा किया जो आपने उनकी तरह झाड़ू मार उन्हें बाहर जाने को नहीं कहा।” गरिमा ने पुरानी बातें याद करते हुए कहा
“ सही में बहू कब किसकी ज़िन्दगी किस तरफ़ करवट बदले कोई नहीं जानता इसलिए हर अतिथि का आतिथ्य सत्कार मन से करना चाहिए ना कि झाड़ू मारकर उन्हें भागने पर मजबूर करना चाहिए….कब किसको किसकी ज़रूरत पर जाए ये कोई नहीं जानता ।” अंजना जी बहू को समझाते हुए बोली
गरिमा को भी समझ आ गया कि कभी कभी हम ज कृत्य करते हैं वो जाने अंजाने हमारे मुँह पर तमाचा ज़रूर मार जाते हैं ।
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#मुहावरा ( झाड़ू मारना ~निरादर करना)