घर आंगन- सोनिया अग्रवाल  : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : ढोलक पर पड़ती चम्मच की थाप और महिलाओं द्वारा गाया जा रहा गीत,“ यह गलियां यह चौबारा यहां आना ना दोबारा” रह रह कर अंजना को अपना ही घर अंजाना सा होता हुआ महसूस करा रहा था। बस दो ही दिन तो शेष थे, उसके बाद तो वह सच में इस घर के लिए पराई होने वाली थी और अपनी एक अलग दुनिया एक नए संसार में बसाने जा रही थी। जहां नए-नए अरमान, नए-नए सपने उसे अपनी और खींच रहे थे। वही अपनों से खोने का गम उसकी आंखों को नम करे जा रहा था।

विदा होकर ससुराल आई। थोड़ी बहुत जीवन के उतार-चढ़ाव को देख शादी के भी 20 बरस देखते देखते पार हो गए। कहने को तो यह बरस ऐसे ही निकल गए, लेकिन कितने उतार-चढ़ाव, कितने मान सम्मान, कितने सपनों का दमन, कितने खुशियां,और कितने दुख अंजना ने देखें, उसका तो जिक्र उसने कभी किसी से न किया।

बस अपने सीने में ही दफन रखा ।आज भी जब जब उसे फागुन कि वह अपनी पहली होली याद आती है कि कैसे उसने सासू मां के आगे गिड़गिड़ाते हुए अपने मायके जाने की बात रखी थी तो सासु मां ने भी यह कह की बहुरिया अब उस घर आंगन को भूल, इस नए घर आंगन में अपना डेरा जमाओ। जो खुशियां वहां बनाती थी, वह खुशियां यहां बनाओ।

अंजना को भी इनकी बातों में कभी कोई कमी नजर नहीं आई। मगर कहते हैं ना माइका माइका ही होता है ,सुख हो या दुख हो याद आ ही जाता है ।जब भी कभी अंजना अकेली हुआ करती तो वह भगवान से बस एक ही बात पूछती कि भगवान तुमने लड़कियों के नसीब में ही उनके घर आंगन की जुदाई क्यों लिखी।

शादी के कुछ वर्षों में ही उसके दो मुन्ने और दो मुनिया ने उसके घर आंगन को हरा भरा कर दिया। अब तो बस वह मायके जाती तो या तो एक-दो दिन या उसी रात वापस लौट आती।बड़की मुनिया का जी तो बहुत चाहता कि वह अपनी नानी के यहां खेले ।थोड़ा समय बिताए। चौक में पड़े झूले पर ऊंची ऊंची पींगे बढ़ाए।मगर अंजना बड़े प्यार से समझाती की मुनिया मोह बुरा है ।

अब इतने बरस बीत जाने के बाद अंजना ने अपने घर आंगन को ऐसे सजाया है की देखते ही बन पड़ता है। उसमें लगी फुलवारी , छोटे छोटे से पेड़ जब उन पर आ कर कोई चिड़िया चहकती तो मानो वातावरण झनझना जाता । अंजना को लगता कि उसने अपने मायके का आंगन यहां बसा लिया हो जैसे। अब यह द्वार तो कभी उस के मरने के बाद ही बिछड़े तो बिछड़े।

कितने दुख की बात है अब जब अंजना अपने मायके का आंगन भूल अपनी दुनिया में खुश रहना सीख गई थी। आज अंजना को अपना बसाया हुए इस आंगन को छोड़ बेटे के साथ दूसरे शहर में बस जाना था ।अंजना तो चाहती ही ना थी कि वह इसे छोड़कर कहीं जाए और सच भी तो था कितनी मेहनत की थी उसने।

मगर कहते हैं ना बच्चों के भविष्य के आगे मां-बाप अक्सर अपने भावनाओं के साथ समझौता कर लेते हैं ।आज फिर अंजना एक बार फिर अपना आंगन छोड़कर जैसे ही कार में बैठी ,तो कहीं दूर किसी बस में वही गाना सुनाई प्रतीत हुआ

,“यह गलियां यह चौबारा, यहां आना ना दोबारा”

एक कसक सी उठी और भगवान के आगे हाथ जोड़कर बोली हे भगवान अब इस दुनिया के गलियां और चौबारा में जो अब भेजा तो दोबारा ना भेजना।

सोनिया अग्रवाल

#घर-आंगन।

V M

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