मुंबई के पॉश इलाके में रहने वाले आलोकनाथ जी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनके घर में धन, रुतबा, और समाज में इज्ज़त की कोई कमी नहीं थी। उनकी बेटी सौम्या भी उन्हीं की तरह महत्वाकांक्षी और तेज-तर्रार स्वभाव की थी। लेकिन उसके स्वभाव में एक गहरी कमी थी—धन और स्वार्थ के प्रति उसका लगाव। उसने अपनी सारी महत्वाकांक्षाओं को धन से जोड़ लिया था।
दूसरी ओर, रामप्रसाद जी एक साधारण परिवार से थे, लेकिन उनके बेटे सौरभ ने अपने परिश्रम और बुद्धिमानी से एक सफल करियर बनाया था। सौरभ एक सुलझा हुआ और आधुनिक विचारधारा का युवा था। जब रामप्रसाद जी ने सौम्या के परिवार से सौरभ के लिए रिश्ता तय किया, तो दोनों परिवारों ने इसे खुशी-खुशी स्वीकार किया।
सौरभ और सौम्या दोनों आधुनिक विचारधारा के थे। उन्होंने अपने परिवारों के सामने यह प्रस्ताव रखा कि शादी से पहले वे एक-दूसरे को अच्छे से समझना चाहते हैं। सौरभ ने कहा, “हम छह महीने तक एक-दूसरे से फोन पर बात करेंगे। इससे हमें एक-दूसरे की पसंद-नापसंद को समझने का मौका मिलेगा।”
इस पर दोनों परिवार सहमत हो गए। सौरभ और सौम्या रोज फोन पर बातें करते और अपने जीवन से जुड़ी चीज़ों को साझा करते। शुरू में दोनों के बीच की बातचीत काफी सामान्य और सकारात्मक रही।
कुछ ही दिनों में सौरभ ने महसूस किया कि सौम्या का ध्यान उसकी ओर कम और अपने दोस्तों की ओर ज्यादा है। जब भी वह फोन करता, वह या तो किसी पार्टी में होती या अपने दोस्तों के साथ। कई बार वह उसकी बात को अनसुना कर देती।
एक दिन, जब सौरभ ने सौम्या को फोन किया, तो उसने सुना कि कमरे के अंदर किसी पुरुष की आवाज़ें आ रही थीं। सौम्या ने फोन मेज पर रख दिया था और गलती से बंद करना भूल गई। सौरभ को उस बातचीत में जो सुनाई दिया, उसने उसे अंदर तक झकझोर कर रख दिया।
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सौरभ ने ध्यान से सुना। सौम्या और दीपक नाम के एक व्यक्ति के बीच heated बातचीत हो रही थी। दीपक कह रहा था, “सौम्या, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। मेरे प्यार को पैसे से मत तोलो। मैं धनवान नहीं हूँ, लेकिन तुम्हें हमेशा खुश रखूँगा।”
सौम्या ने कठोर स्वर में जवाब दिया, “दीपक, तुम समझ क्यों नहीं रहे? बिना पैसे के ज़िंदगी नहीं चलती। मैं तुमसे अलग नहीं हो रही, बल्कि एक योजना बना रही हूँ।”
सौरभ की आँखें नम हो गईं जब उसने सौम्या की योजना सुनी। वह कह रही थी, “अभी मैं सौरभ से शादी कर लूंगी। कुछ महीनों बाद दहेज और प्रताड़ना का आरोप लगाकर उससे तलाक ले लूंगी। उसके अमीर माता-पिता इज्जत बचाने के लिए मुंहमांगी रकम दे देंगे।”
सौम्या यहीं नहीं रुकी। उसने आगे कहा, “मेरे माता-पिता की भी काफी संपत्ति है। मेरा भाई विदेश में रहता है और उनकी देखभाल नहीं करता। मैं उनसे सारी संपत्ति अपने नाम करा लूंगी। फिर मैं और तुम आराम से अपनी ज़िंदगी जीएंगे।”
सौरभ ने अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखा और इस बातचीत को रिकॉर्ड कर लिया। उसने फैसला किया कि वह सौम्या की सच्चाई को सभी के सामने लाएगा।
अगले दिन, सौरभ ने सौम्या के माता-पिता, आलोकनाथ जी और उनकी पत्नी को फोन कर मिलने के लिए बुलाया। उन्होंने रिकार्डिंग सुनाई। जैसे-जैसे रिकॉर्डिंग चलती गई, सौम्या के माता-पिता के चेहरे का रंग उड़ता गया।
आलोकनाथ जी की पत्नी ने रोते हुए कहा, “हमने इसे अच्छे संस्कार दिए, लेकिन यह क्या कर रही है? हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हमारी बेटी इतनी गिर जाएगी।”
सौम्या की सच्चाई उजागर होने के बाद, दीपक ने भी उससे रिश्ता तोड़ लिया। उसने कहा, “जो लड़की अपने माता-पिता की सगी नहीं हो सकती, वह किसी और की वफादार कैसे होगी? मैं तुमसे रिश्ता खत्म करता हूँ।”
सौरभ ने साफ शब्दों में कहा कि वह सौम्या से शादी नहीं करेगा। उसने कहा, “मैं एक ऐसा जीवनसाथी चाहता हूँ, जो ईमानदार और सच्चा हो। पैसा और चालाकी से रिश्ते नहीं बनाए जाते।”
सौम्या के माता-पिता ने भी उसे सबक सिखाने का फैसला किया। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपनी मृत्यु के बाद अनाथालय को दान करने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा, “जो बेटी अपने परिवार का सम्मान नहीं कर सकती, वह हमारी संपत्ति की हकदार नहीं है।”
सौम्या ने अधिक धन के लालच में सब कुछ खो दिया। उसे न सच्चा प्यार मिला, न अच्छा घर, और न ही अपने माता-पिता की संपत्ति। वह अकेली और कंगाल हो गई।
स्व रचित मौलिक रचना
सरोज माहेश्वरी पुणे (महाराष्ट्र)