क्या मम्मी जी!आज फिर आपने अपना गीला तौलिया पलंग के सिरहाने सुखा दिया कितनी बार कहा है गीले कपड़े बाहर आंगन में सुखा दिया करिये ,बदबू आती है कपडों से”तमतमा कर टीना अपनी सास सुनीता जी पर चिल्लाई!
सुनीता जी आर्थराईटिस की मरीज ऊपर से धुलाई के बाद गीला आंगन! कहीं गिर पड़ गई और हड्डी पसली टूट गई तो और आफत होगी यही सोचकर तौलिया वहीं सुखा दिया था।टीना जब-तब सुनीता जी को कभी चाय का गिलास पलंग के नीचे छोड़ देने पर कभी जूठी प्लेट टेबल पर छोड़ने पर टोका करती!
सुनीता सोचती एक बार उठेंगी तो एक साथ सारे बर्तन ले जाकर किचन में रख देंगी।
इसी तरह टीना के ससुर रमेश जी बारिश में भीगते आते और उनकी चप्पलों की मिट्टी फर्श पर लग जाती तो बेटा सुधीर ही टोक देता “क्या पापा बारिश में घूमने जाने की क्या जरूरत थी देखिये कार्पेट कितना गंदा हो गया बेकार में काम बढ़ाते रहते हैं!
रही सही कसर पोता पोती पूरी कर देते!जब कभी रमेश जी टीवी पर न्यूज़ या क्रिकेट मैच देख रहे होते वह आते ही उनके हाथ से रिमोट छीन कर अपने कार्टून लगा लेता !रमेश जी और सुनीता कभी भी अपनी मनपसंद का कोई टीवी प्रोग्राम नहीं देख पाते थे!टीना और सुधीर यह देखकर भी अनदेखा कर जाते!कभी बच्चों को नहीं टोकते!
घर में खाना पीना सब बच्चों के हिसाब से बनता रमेश जी को पिज्जा-बर्गर बिल्कुल नहीं भाता था और सुनीता उन्हें तो चाऊमीन देखकर ही उबकाई आने लगती!वहीं हर इतवार और छुट्टी के दिन घर में वही खाया जाता।
यही सब देखकर रमेश और सुनीता अक्सर अकेले में बैठे बातें करते कि जमाना कितना बदल गया है!
“सुनीता तुम्हें याद है अम्मा तुम्हें कैसे उठते बैठते टोकती थी कभी सर ढकने को ,कभी दूध उबलकर गिरने पर,कभी सुबह उठने पर जरा सी देर हो जाने पर और तुम आंखो में आंसू भरकर मेरी तरफ देखती तो मैं असहाय सा खड़ा रहता पर अम्मा के डर से एक शब्द भी ज़बान पर नहीं ला सकता था!”रमेश जी ठंडी सांस लेकर बोले!
अब तो बहुऐं भी लड़कों को खड़े खड़े ऐसे घुड़क देती हैं जैसे पति ना हुआ कोई मातहत हो ,और सास-ससुर जरा सा बहू को टोक दे तो लड़के आँखें निकाल के खड़ें हो जाऐं”
सुनीता–“हां ये तो है ये ही तो जेनरेशन गैप है
हम तो बड़ों के सामने मुँह खोलने की हिम्मत भी नहीं कर सकते थे और आजकल तो बच्चे मां-बाप को कुछ भी कहने ,खड़े खड़े उनकी इज्ज़त उतारने में भी देर नहीं लगाते,हमने तो सारी जिंदगी तुम्हें सुनो और ए जी पुकार कर निकाल दी यहाँ बहुऐं सास-ससुर के सामने ही पति को उसके नाम से बुलाती जैसे मरद ना हो गली का बच्चा हो।
और ये रोज रोज की देर रात तक पार्टियाँ/क्लब और आऐ दिन बहुओं की किट्टी पार्टियों का चलन भई हमारे तो समझ नहीं आ रहा?
हमारे टाइम में तो तीज त्योहार जो पकवान बन जाते समझो वही पार्टी हो गई। क्यूं ठीक कह रही हूं ना?अब तो लड़के हों या लडकियां किसी को भी हाथ में पैग लिए कोई गुरेज ना है।
‘हां एक बात तुमसे और कहनी है बहू कुछ भी पहने तुम ना मुँह बनाना और ना कुछ कहना!अब तो सर ढकने की छोड़ो अब तो बहू बेटियों का दुपट्टा भी गायब हो गया!पर जैसे पहनने ओढ़ने में उन्हें ठीक लगे!हमारे टाइम में तो मजाल था कि सिर पे से पल्ला जरा सा भी सरक जाए तुम्हारी अम्मा ताने दे देकर मेरे पूरे खानदान को कटहरे में खड़ा कर देती थीं ‘सुनीता जी ठंडी सांस लेकर बोलीं!
“हां!पर हमारी तो हिम्मत ना थी कि अम्मा को समझा सकें”रमेश जी गर्दन धड़ में रखते हुए बोले!
अभी उस दिन बबलू ने जिद करी कि उसे वो मंहगा वाला मोबाइल लेना है !मैने समझाया भी कि बेटा खो जाऐगा अभी सस्ता वाला ले लो पर वो कहाँ मानने वाला था सुधीर ने फौरन उसे दिलवा दिया कि क्लास के सब बच्चों के पास है!पैसों की तो जैसे कद्र ही नहीं है आजकल की पीढ़ी को!तब से बबलू मेरे से सीधे मुँह बात नहीं कर रहा जैसे मैने कोई बडा गुनाह कर दिया हो।और तो और सुधीर ने ही बबलू के सामने मुझे सुना दिया!
“आप बच्चे को छोटी छोटी बातों पर ना टोका करें!बार बार टोकने से बच्चों की ग्रोथ रूक जाती है!आप तो मुझे एक सस्ते से पैन दिलाने में कितने दिन यूं ही टहला दिया करते थे !आज मैं अपने बच्चे को महंगा मोबाइल दिलवा सकता हूँ तो आपको क्या परेशानी है आखिर इन्हीं लोगो के लिए तो कमाता हूं”
सुनकर रमेश जी ने सोचा कि बेटा हमारे टोकने पर अगर तुम्हारी ग्रोथ रूक जाती तो तुम आज इतने बड़े पद पर ना बैठे होते!
हमारी तनख़्वाह तो तुम्हारे जितनी ना थी, उसपर अपनी मां और विधवा बहन और छोटे भाई बहनों का बोझ उठाता या तुम्हारी फरमाइशें पूरी करता!ये तो कहो कि सारी जिम्मेदारियां हमने उठा ली तुम्हारे ऊपर कुछ नहीं छोड़ा!रमेश जी ने गर्दन झुका ली!
“हां”सुनीता ने दबे सुर में कहा”एक तो ये बच्चों और बड़ों का भी बाहर के खाने का राग मेरे समझ में नहीं आता”आऐ दिन या तो बाहर खाने जाऐंगे या ऑन लाइन आर्डर देकर कभी पिज्जा-बर्गर चाऊमीन मंगाऐंगे!भई! हमारे जमाने में तो कभी तुम्हारे बहन-बहनोई आया करते तब अम्मा कह देती आज हलवाई के यहां से जलेबी-कचौड़ी ला दो!इसके अलावा तो जो रोटी-दाल रोज बनती सब वही खाते!घर में खाना बनाने का रिवाज तो जैसे खतम ही होता जा रहा है!
सुनीता जी को भी आज अपनी सास का सताया एक एक वाक्या याद आने लगा !अपनी सास की लगाई-बुझाई, उनकी बंदिशें सबकुछ।
वे सोचने लगीं कितना जमीन आसमान का फर्क हो गया है ।
फिर कहने लगीं “चलो छोड़ो! अब नई पीढ़ी के साथ चलने में ही भलाई है!वे भी अपनी जगह ठीक हैं पहले तनख़्वाह भी तो बहुत कम मिला करती थी!बच्चे खूब कमाते हैं तो अपने शौक भी पूरे करने का हक है उनका!किसी से कुछ मांग तो नहीं रहे ना।
हमारी हमारे हिसाब से कट गई जैसे भी।हम लोग हमेशा संयुक्त परिवार में रहे हमें आदत थी।अब तो हम दो हमारे दो का जमाना है।टोका टाकी करके घर की चैन शांति क्यूं खत्म करें?कम से कम सब साथ तो रह रहे हैं!”
रमेश जी बोले कह तो तुम सोलह आने सही रही हो, चलो !बहुत बतिया लिए अब अंदर चलें!बेकार की सोचा साची में अपना दिमाग क्यूं खराब करें!पीढ़ी दर पीढ़ी अभी और कितने बदलाव आएंगे क्या पता?”
दोस्तों
यह ब्लॉग आज की पीढ़ी के ऊपर व्यंग्य नहीं है यह आज की सच्चाई है!बड़े लोग सोचते वे ठीक हैं बच्चे अपनी जगह ठीक हैं!
एक बात जरूर है कि पहले औरतें घर गृहस्थी चुल्हे चौके से ही फुर्सत नहीं पातीं थी !आज की पीढ़ी फटाफट काम निपटा कर घर और बाहर दोनों जगह सामंजस्य बैठाकर लाइफ ऐंजॉय करना जानती है!अपने अपने लाईफ स्टाइल सब खुश है!
आपको सही लगा हो तो प्लीज़ लाइक-कमेंट अवश्य दें!
धन्यवाद
आपकी
कुमुद मोहन