जाने किस घड़ी में इसे पसंद किया था, मेरी तो मति ही मारी गई थी जो मै इसे बहू बनाकर लाई, एक काम भी ये ढंग से नहीं करती है, पता नहीं कैसे घर संभालेंगी? इसके तो खुद के ही काम नहीं होते हैं।’
मंजुला जी बड़बड़ कर रही थी, लेकिन सोनिया पर कोई असर ही नहीं हो रहा था, वो घर के काम में लगी हुई थी, काम की उसे भी जल्दी थी, लेकिन वो अपनी सास की बातें इस कान से सुनकर उस कान से निकाल रही थी, उसे अब सालों हो गये थे। हांलांकि सोनिया सालो से घर संभाल रही थी, और वो घर पर ना हो तो सबके काम रूक जाते हैं, लेकिन मंजुला जी आज भी उसे नई नवेली बहू की तरह ही तानें देती है।
बगल में खड़ी कामवाली ममता बोली, भाभी आप अपनी सास को जवाब क्यों नहीं देती है? आप कहें तो उन्हें मै कुछ कहूं, समझाऊं? सालों से काम कर रही हूं, मेरी बात तो मान ही लेगी।
अरे!! ममता रहने दें, आखिर मम्मी जी की इन्हीं बातों से मेरी रोज सुबह होती है, अब देखो ना मेरी बहू आने वाली है, और ये आज भी मुझे नई नवेली बहू की तरह तानें देती है, इससे ही इनको खुशी मिलती है, मम्मी जी कहीं चली जाती है तो मुझे सुबह बड़ी ही सूनी-सूनी लगती है, चुपचाप अपना काम कर और मुझे भी करने दें।
सोनिया रसोई से बाहर निकल आती है और अपनी सास को चाय का कप दे देती है, वो रूंसते हुए कप ले लेती है।
चाय लाने में बड़ी देर कर दी, सात बज गये है, और मुझे सुबह उठकर चाय चाहिए होती है, मंजुला जी घुंट लेकर बोलती है, तो सोनिया कहती हैं, ‘ मम्मी जी जब मै शादी होकर आई थी तो आपने ही कहा था कि सबसे पहले घर में मेरे बेटे का ख्याल रखना, पति को खुश रखोगी तो घर की रानी बनकर रहोगी, बस उन्हीं के काम में लगी थी, आप कहो तो पहले आपकी सेवा में हाज़िर हो जाऊं? सोनिया ने चुटकी लेते हुए पूछा।
नहीं… नहीं…. पति पहले है, बूढ़ी सास का क्या है, वो आज है तो कल नहीं, तू मेरे बेटे का हर काम पहले किया कर, तुझे इसीलिए तो लेकर आई हूं।
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सोनिया भी ये सुनकर वापस रसोई में चली गई, मंजुला जी को सब बर्दाश्त है, पर उनका बेटा राजीव परेशान हो, ये बात उन्हें कतई मंजूर नहीं है, राजीव और उनका रिश्ता बहुत गहरा है, उनके बीच का प्यार देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वो राजीव की मां नहीं है।
दरअसल राजीव उनकी सहेली का बेटा है, मंजुला जी और उनकी सहेली सरिता जी में बड़ा प्रेम था, दोनों एक साथ समय व्यतीत करती थी, आस-पड़ोस में रहते हुए उनके रिशते बहुत गहरे हो गये थे, मंजुला जी की गोद शादी के पांच साल बाद भी नहीं भरी थी, वो बहुत परेशान रहती थी, और जब भी नन्हे राजीव को देखती तो उनकी परेशानी दूर हो जाती थी, सरिता जी के घर उनका बहुत आना-जाना था।
सरिता जी के भाई की शादी की तैयारी चल रही थी, वो खरीददारी में व्यस्त थी तो राजीव को वो मंजुला जी के घर में छोड़ जाती थी, राजीव उनसे काफी घुल-मिल गया था।
सरिता जी अपने पति और बेटे के साथ अच्छे से शादी करके आ रही थी, लौटते वक्त उनकी बस का एक्सीडेंट हो गया और सरिता जी और उनके पति गंभीर रूप से घायल हो गये थे, मंजुला जी दौड़कर अस्पताल पहुंची, सरिता जी के पति की मौत हो गई थी और वो भी अपनी आखिरी सांसे गिन रही थी, जाते-जाते वो अपना राजीव मंजुला जी की गोद में दे गई, “अब तुम ही मेरे राजीव की मां हो, इसे कभी कोई तक़लीफ मत होने देना।” ये कहकर सरिता जी ने हमेशा के लिए आंखे मूंद ली।
अपनी सहेली की मौत ने उन्हें एकदम से तोड़ दिया, काफी समय वो परेशान रही, राजीव की उन्होंने अच्छे से परवरिश की और जब राजीव की सही उम्र आई तो उन्होंने उसे सच्चाई भी बता दी।
राजीव और मंजुला जी का ममता का, मन का रिश्ता था, दोनों एक-दूसरे पर जान देते थे, जब राजीव की सगाई सोनिया के साथ हुई तो राजीव ने सोनिया को सब सच्चाई बता दी, और कहा कि मेरी मां का ख्याल रखना, उनकी किसी बात को दिल पर मत लेना।
जब सोनिया राजीव की पत्नी बनकर घर आई तो मंजुला जी ने उसे कहा कि ‘बहू मेरे बेटे का ध्यान रखना, उसका काम सबसे पहले करना, राजीव को खुश रखना।
दोनों मां -बेटे नहीं थे, पर मन के रिश्ते से जुड़े हुए थे, एक-दूसरे का ख्याल रखते थे, सोनिया दोनों को संभाल रही थी क्योंकि उसे भी पता था, मंजुला जी ने राजीव को जन्म नहीं दिया था, उनका तन का नहीं मन का गहरा अटूट रिश्ता है, जिसकी सभी तारीफ करते हैं।
सोनिया पुरानी यादों से बाहर आती है, तभी मंजुला जी बोलती है, ‘केवल चाय पर रखेगी या कुछ नाश्ता भी खाने को देगी? इससे तो एक भी काम ढंग से नहीं होता है, मंजुला जी रोज की तरह बड़बड़ाना शुरू कर देती है और ये सुनकर सोनिया और ममता एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगते हैं।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना