गहने – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

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 रात को 2:00 बजे फोन पर रमेश जी की माता जी की रोने की आवाज आ रही थी और रमेश जी केवल एक ही बात दोहरा रहे थे तो मैं क्या कर सकता हूं?  मैं तो आपके किसी भी लेने देने में नहीं हूं ना।अगर आप चाहो तो मैं तो आपको बैंगलोर ला सकता हूं ‌।

        फोन बंद होने तक सीमा भी उठ चुकी थी। रमेश जी ने सीमा को बतलाया कि रजत अब मकान भी बेचना चाह रहा है। घुटनों की बीमारी के कारण मां को डर लग रहा है कि वह रजत के साथ सातवीं मंजिल पर फ्लैट पर कैसे रह पाएंगी?

मनु दीदी का भी फोन आया था वह बता तो रही थी कि रजत ने जब अपने बड़े बेटे को विदेश पढ़ाई के लिए भेजा तो रजत भइया ने सारे गहने बेच दिए थे और अब छोटे बेटे को भी व्यापार के लिए पैसे देने हैं। जब से ऑनलाइन कपड़ों का चलन चला है तब से रजत की दुकान भी कोई खास नहीं चल रही। 

         हूंऊंऊं कहकर सीमा ने भी दूसरी तरफ मुंह फेर लिया और अपनी पुरानी यादों में खो गई। मेरठ का बड़ा सा घर और विवाह के समय ससुराल से इतने गहने चढ़े थे कि सब हैरान हो गए थे। बाबूजी ने अपनी दोनों बहुओं और बेटी के लिए बहुत अच्छे गहने बराबर बनवा कर रखे थे। सीमा तो अपने मायके से ज्यादा गहने नहीं ला पाई थी

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परंतु हर मौके पर सीमा नए से नए गहने पहनती थी। विवाह के बाद राजेश की बेंगलुरु में नौकरी लग गई थी और रजत तब पढ़ ही रहा था। बाबूजी की मृत्यु के बाद रजत ही मेरठ की दुकान पर बैठने लगा था। सीमा अपनी दोनों बेटियों के समय मेरठ ही गई थी वहीं उसका मायका भी था। कोई भी शादी विवाह हो, यदि सीमा नहीं भी जा पाती थी

तब भी सासू मां उसकी तरफ से उपहार स्वरूप कोई ना कोई गहना दे ही दिया करती थी। सासू मां का कहना था बाबूजी ने तुम्हारे लिए तो इतने गहने बना रखे हैं कि तुमको और गहने खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी

दोनों बेटियों का विवाह इन्हीं गहनों से हो सकता है। अपनी दोनों बेटियों के होने पर उसने अपने मायके से आए हुए कड़े और झुमके इत्यादि मनु दीदी को दे दिए थे परंतु उसे जरा भी मलाल नहीं था क्योंकि गहने उसके पास फिर भी बहुत थे। 

        रजत की शादी के बाद उसके दोनों बेटे होने के समय वह जब ससुराल गई थी तब भी उसने बहुत गहने पहने थे और वह आते हुए अपनी मायके की चेन और छोटे-मोटे गहने लेकर आ गई थी अभी तक तो उसे यही डर था कि किराए के मकान में सामान कहां रखेंगे परंतु  वहां पर लोग अधिकतर सोने के ही गहने पहनते थे।

     धीरे-धीरे उन्होंने एक फ्लैट भी ले लिया था और दोनों बेटियों के बड़े होने पर उसने बेटियों के स्कूल में ही टीचर की नौकरी भी  ज्वाइन कर ली थी। 

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       किसी कारणवश जब रमेश की नौकरी छूटी तो उसने भी अपना व्यापार करने की सोची। रमेश को अनुभव तो हो ही गया था। सीमा ने सोचा कि हमारे पास में इतने गहने हैं हम ऐसा करते हैं उन गहनों को ले आएंगे और उनसे गोल्ड लोन ले लेंगे तब तुम अपना व्यापार कर लेना और घर का खर्चा तो मेरी तनख्वाह से चलता ही रहेगा।

ऐसा सोचते हुए अब के जब वह मेरठ गए और सीमा ने सासू मां से जब अपने गहने देने के लिए कहा तो सासु मां ने कहा तुम्हारे तो सारे गहने में दे चुकी हूं वह तो तुम ले ही गई थी और बाकी तुम्हारे कड़े वगैरा तुमको याद नहीं है कि तुमने अपनी बेटियों के होने बहन को दिए थे। हां पर वह तो मेरे मायके के थे ना?

आप ही तो कह रही थी कि मायके के हल्के गहने हैं उन्हें किसी को भी दे दो तुम्हारे पास तो भारी गहने ससुराल के हैं ही। मुझे तो वह वाले गहने दे दो जो मेरे  आपके पास रखे हैं। अब तो वहां हमारा अपना घर भी हो गया है हम आराम से पहन और रख सकते हैं। 

    इतना सुनकर सासूमां ने तो बहुत कलह ही कर दी कि तुमको किस बात के गहने दें। वहां तुम दोनों कमा रहे हो तो अपने गहने आट बनाओ। अब यहां पर रजत के दो दो बेटे हैं उन्हें भी तो सब कुछ चाहिए इन लड़कियों के लिए क्यों अपने घर का सामान लुटाएं ? जो मेरी करेगा मैं तो सब कुछ उसको ही दूंगी।

सीमा ने कहा अगर आपको ऐसा ही करना था तो आप यह बात पहले ही बतला देती मैं तो आज तक एक भी गहना बनवाया भी नहीं कि मेरे पास में तो बहुत है और आपके कहने पर मैं तो सबको ही अपना सामान लुटाती रही। परंतु इसके आगे रमेश ने सीमा को कोई भी बात बढ़ाने के लिए मना कर दिया और वह भारी मन से बैंगलोर वापस आ गए। 

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          कुछ लोन लेकर कुछ सीमा का ट्यूशन पढ़ाकर,  रमेश का भी काम अच्छा चल निकला। उन्होंने अब बेंगलुरु में अपना एक मकान ही बना लिया था। अब वह कभी मेरठ जाते तो भी सीमा तो अपने मायके में ही रुकती थी।मीनूदीदी ने ही बताया था कि मां से मेरठ वाला घर भी रजत ने अपने नाम करवा लिया। गहने तो उसने तब ही बेच दिए थे जब उसके बेटे ने विदेश जाना था। मां कभी-कभी रमेश से यूं ही बात करती थी। अब रमेश घर  की राजनीति में कोई दखलअंदाजी भी नहीं करता था। रमेश की बड़ी बेटी सरकारी स्कूल में टीचर लग चुकी थी और छोटी डॉक्टर की पढ़ाई कर रही थी। 

     वह समझ नहीं पा रही था कि घर टूटने पर हर बार बेटे बहु को ही क्यों दोष दिया जाता है? क्या वह सदा ही दोषी होते हैं?

मधु वशिष्ठ 

#घर टूटने पर हमेशा बेटे बहु को ही क्यों दोष दिया जाता है#

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