इस कहानी में दो बहुओं की भावनाओं और उनके बीच की खटास का चित्रण है। आरती और विधि, दो बहुएँ जो एक ही परिवार का हिस्सा थीं लेकिन एक-दूसरे से बहुत अलग। जहाँ आरती संपन्न परिवार से थी, वहीं विधि का मायका साधारण था। इसी असमानता ने दोनों के बीच एक खाई बना दी थी। आइए इस कहानी को विस्तार से समझते हैं।
विधि ने इस घर में कदम रखते ही उसे अपनी जिम्मेदारी समझकर सबका मन जीत लिया था। वह बचपन से ही संस्कारों और साधारण जीवनशैली में पली-बढ़ी थी। उसके माता-पिता ने उसे सिखाया था कि अपने परिवार को खुश रखने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। उसकी शादी के बाद से ही वह इस घर की जिम्मेदारियों में खुद को झोंक चुकी थी। घर के सभी बड़े-बुजुर्ग उसे मान-सम्मान देते थे और विधि भी उनकी देखभाल में कोई कमी नहीं करती थी। उसकी निस्वार्थ सेवा और सहज स्वभाव ने उसे घर में एक खास स्थान दिला दिया था।
पर समय के साथ आरती भी इस घर में आ गई। आरती का मायका संपन्न था, उसका रहन-सहन, खान-पान, बात करने का ढंग सभी कुछ आलीशान था। उसके माता-पिता हर बार उसे घर भेजते वक्त ढेर सारे उपहारों से नवाजते थे। शुरू-शुरू में तो सबको यह अच्छा लगा, पर धीरे-धीरे यह आरती की आदत बन गई। वह जब भी मायके जाती, अपने साथ ढेर सारा सामान लेकर लौटती। यह देखकर घर के सभी लोग उससे प्रभावित हो गए। आरती का अपने मायके की संपन्नता का बखान करना और उपहारों की बारिश करना धीरे-धीरे उसके ससुराल के सभी लोगों के लिए आकर्षण का कारण बन गया।
विधि, जो अब तक घर में सभी की चहेती थी, धीरे-धीरे एक किनारे होती चली गई। विधि का मायका साधारण था, इसलिए वह महंगे उपहार नहीं ला सकती थी। विधि ने कभी इस बात की शिकायत नहीं की, उसने हमेशा अपनी परिस्थितियों को समझा और अपनी सीमाओं में रहकर ही सबके लिए अच्छा करने की कोशिश की। लेकिन आरती की अमीरी और उसकी बेबाक बातें धीरे-धीरे विधि के दिल को ठेस पहुँचाने लगीं।
आरती जब भी मायके से लौटती, घर के सभी सदस्य उसके पास इकट्ठे हो जाते। वह बड़े गर्व से सबके सामने अपने मायके की तारीफों के पुल बांधती और अपनी अमीरी का बखान करती। आरती जानबूझकर ऐसे वक्त पर उपहार बाँटती जब विधि वहाँ मौजूद होती, ताकि वह देख सके कि किस तरह आरती के उपहारों का सभी लोग इंतजार करते हैं। यह सब देख विधि का दिल छलनी हो जाता, लेकिन वह चुपचाप सब सहती और अपनी जिम्मेदारियों को निभाती रहती।
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आरती की बातों में छिपे ताने, उसकी दिखावे की आदतें, और अपनी अमीरी का दिखावा, सब कुछ विधि को अंदर से तोड़ रहे थे। आरती हर बार यही कोशिश करती कि वह अपनी महंगी चीजों और उपहारों से सभी का ध्यान अपनी ओर खींच सके। उसकी बातें जैसे विधि के दिल पर वार करतीं। लेकिन विधि के पास कोई चारा नहीं था, वह सिर्फ अपनी किस्मत को कोसते हुए सब कुछ सहन करती रही।
विधि को समझ नहीं आता कि लोगों को क्या मजा आता है दूसरों की मजबूरियों पर नमक छिड़कने में। उसके मन में कई सवाल उमड़ रहे थे। आखिर यह समाज और यह परिवार इतनी छोटी-छोटी बातों में क्यों उलझता है? क्या संपन्नता और दिखावे से ही परिवार का प्यार मिलता है? क्या सच्ची सेवा और निस्वार्थता की कोई कीमत नहीं होती? विधि का मन इन सवालों के जवाब खोजने में लगा था, लेकिन हर बार उसे बस निराशा ही मिलती थी।
धीरे-धीरे, घर के लोग भी इस बात को समझने लगे थे कि आरती का मायके से बार-बार महंगे उपहार लाना और विधि के सामने अपनी संपन्नता का बखान करना कहीं न कहीं विधि के मन में टीस पैदा कर रहा था। परिवार के कुछ समझदार सदस्यों ने महसूस किया कि विधि की खामोशी में एक गहरी वेदना छुपी हुई है। उसकी मुस्कुराहट अब केवल औपचारिकता बनकर रह गई थी।
एक दिन, विधि की सास ने उससे इस विषय में बात की। उन्होंने विधि को समझाया कि घर में हर किसी का अलग महत्व होता है। जहाँ आरती अपनी अमीरी का प्रदर्शन करती है, वहीं विधि के सादेपन और सेवा भावना का कोई मुकाबला नहीं। विधि ने उनकी बात सुनी और अपनी सास को भरोसा दिलाया कि वह अपने परिवार की सेवा यूं ही करती रहेगी, चाहे उसे किसी की कितनी भी नजरअंदाजी सहनी पड़े।
आरती को देखकर विधि के मन में एक तरह की ईर्ष्या की भावना भी पैदा हो रही थी, जिसे वह मन ही मन गलत मानती थी। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह किसी के प्रति इतनी नकारात्मकता महसूस करेगी। लेकिन आरती की दिखावे की आदतों ने उसे इतना कमजोर बना दिया था कि अब उसे अपनी मजबूरियाँ बोझ लगने लगी थीं।
एक दिन, जब आरती फिर से अपने मायके से ढेर सारे उपहार लेकर आई और सबके सामने उसे बाँटने लगी, तो विधि चुपचाप वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली गई। उसकी आँखों में आँसू थे, जो रोकने के बावजूद बह रहे थे। उसे अपनी बेबसी पर गुस्सा आ रहा था। उसकी इच्छा हो रही थी कि वह किसी को अपनी भावनाएँ समझा सके। लेकिन वह जानती थी कि किसी से कुछ कहने का कोई फायदा नहीं।
विधि ने यह निर्णय लिया कि वह अपनी स्थिति के अनुसार ही जीवन जिएगी और किसी से कोई उम्मीद नहीं रखेगी। उसने मन ही मन ठान लिया कि वह अपने मन की शांति और परिवार की सेवा को ही प्राथमिकता देगी। धीरे-धीरे उसने खुद को इस मानसिकता में ढालना शुरू किया।
फिर एक दिन एक ऐसा मौका आया जिसने सबकी सोच को बदल कर रख दिया। परिवार में एक बड़ा आयोजन था। विधि ने इस आयोजन की सारी तैयारियाँ अपने कंधों पर ले लीं और बखूबी निभाई। इस आयोजन में आने वाले सभी मेहमानों ने उसकी मेहनत, संयम और सेवा-भाव की सराहना की। सभी ने देखा कि आरती ने तैयारियों में कोई सहयोग नहीं दिया, जबकि विधि ने बिना किसी शिकायत के सब कुछ संभाल लिया।
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आयोजन के बाद, परिवार के सभी लोग विधि की प्रशंसा करने लगे। सभी ने महसूस किया कि विधि की सच्ची सेवा और निस्वार्थता ही घर को खुशहाल रखती है। आरती की अमीरी और दिखावे का महत्व अब सबके लिए कम हो चुका था। इस दिन विधि के दिल में एक नई उमंग जाग उठी। उसे एहसास हुआ कि सच्ची सेवा और प्रेम से बढ़कर कोई चीज नहीं है।
विधि को अपने इस जीवन से एक नई प्रेरणा मिली। उसने आरती की दिखावे की आदतों को नजरअंदाज करना सीख लिया और अपने परिवार को खुश रखने के लिए वह वैसे ही अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने लगी जैसे वह पहले करती थी। उसने इस बात को समझ लिया कि लोग चाहे जितने भी दिखावे में खो जाएँ, असली मूल्य सेवा, निस्वार्थता और प्रेम का ही होता है।
इस तरह, विधि ने अपने दिल के जख्मों पर खुद ही मरहम लगाना सीख लिया और अपनी सच्चाई के बल पर परिवार में अपनी एक खास जगह बनाई। अब वह मुस्कुराते हुए जीवन जीती थी, क्योंकि उसने अपने दुखों को भुलाकर खुशियों में जीना सीख लिया था।
मूल रचना
अंजना ठाकुर .