गंतव्य की ओर बढ़ते कदम – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

शालिनी  बैठी  सोच रही थी कि कबतक मैं इसी तरह मार खाती रहूंगी। कब तक सहन करूं ।आज पीटने की इन्तहा हो गई करीब एक घंटे तक लात-घूंसे बरसाता रहा। फिर भी मन नहीं भरा तो बेल्ट उठा ली। अब शरीर मार खा खा कर थक चुका है। और शक्ती नहीं रही यदि इसी तरह जीवन चलता रहा तो किसी दिन पिटते- पिटते ही मेरा दम निकल जाएगा। फिर मेरे बच्चों का क्या होगा। क्या वह भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चल पड़ेंगें। कौन उन्हें शिक्षा दिलायेगा। बेटे बड़े हो रहे हैं ऐसे माहौल में क्या सीखेंगें।

सोचते सोचते वह अतीत की गालीयों में भटक गई । तीन भाई बहनों में वह सबसे बड़ी थी। कितनी लाड दुलारी, सबके आँखों का तारा  थी। कभी उसकी आँखों में आँसू नहीं आने दिये मम्मी पापा ने ।  मारना तो दूर कभी फूल से भी नहीं छुआ उन्होंने ।आज यदि बेटी की यह दुर्दशा देखेंगे तो उन पर क्या बीतेगी। शादी कितनी धूमधाम से की थी। पोस्ट ग्रेजुयेशन करने के  बाद मैं नौकरी करना चाहती थी किन्तु अच्छा रिश्ता मिलते ही उन्होंने शादी कर दी यह कहकर नौकरी तो शादी के बाद भी की जा सकती है

पर यदि अच्छा रिश्ता हाथ से निकल गया तो फिर मिलना मुश्किल है। नीलेश अच्छा ही था आर्कषक व्यतित्व, एम.बी.ए. किया हुआ साफ्टवेयर इंजिनीयर, अच्छे पद पर कम्पनी  में कार्यरत। दो साल शादी के बाद के हंसते खेलते गुजर गये। फिर बेटे के आने की आहट होते  ही इन्तजार में कब नौ माह निकल गये पता ही नहीं चला। बेटे यश को पाकर हम निहाल हो गये ।हँसी खुशी दिन गुजर रहे थे दो साल बाद अंश का जन्म हुआ। उसके बाद ही एक दिन निलेश शराब पीकर आया। उसके पूछने पर बोला पार्टी थी ,दोस्तों ने जबरजस्ती पिला दी।

किन्तु वह चुपचाप सो गया। उसके बाद से तो निरंतर क्रम बन गया रोज  पी कर आने का। अब वह कभी-कभी गालीयां देने लगा एक दो बार उस पर हाथ भी उठा दिया फिर सुबह उठकर अपने व्यवहार की माफी माँग लेता। वह भी चुप रह जाती। अच्छे मूड में देखकर उसे समझाने की कोशिश करती। पूछती ऐसी कौनसी परेशानी है तुम्हें जो इतनी पीने लगे ।अपनी समस्या तो मुझसे शेयर  करो शायद मैं कुछ समाधान सुझा सँकूं। पापा जी भी समझाते उस समय तो हां करता अब नहीं पीऊंगा किन्तु शाम को फिर वही पीकर लेट आना ।साल बीतते-बीतते उसे पीने की इतनी लत लग गई कि अब कभी कभी दिन में भी पी लेता।

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काम पर फर्क पड़ने से कम्पनी ने भी निकालने की धमकी दी ।किन्तु वह बेपरवाह पीने में लगा रहा। अब घर आकर रोज हंगामा करता, गालीयां देना, उसे मारना रोजमर्रा की बात हो गई। वह बहुत समझाती बेटों के भविष्य का वास्ता देती किन्तु वह एक कान से सुनकर  दूसरे से निकाल देता ।वह परेशान हो कई बार घर छोड मायके जाने की सोचती किन्तु वहां अभी उसके छोटे भाई-बहन की शादी होनी थी सो वह सोचती की कहीं उसके जाने से उनके भविष्य पर असर  न पड़े। दूसरे मम्मी पापा की परेशानी नहीं बढाना चाहती थी।

फिर वह बेटों को उनके पिता से भी अलग नहीं करना चाहती थी। सास से जब भी इस बारे में बात करती वह यही कहतीं- कैसी पत्नी हो जो पति को काबू में नहीं रख सकती। सब तुम्हारी ही गल्ती है तुम यदि उसे बॉधकर रखती तो यह सब नहीं होता।

 एक दिन  ज्यादा मार  खाकर वह दुखी हो गई सास से बोली मम्मी जी अब मैं यहाँ और नहीं रह सकती,थक गई  हूं पिटते-पिटते। अब सहन नहीं हो रहा है घर छोड़  कर जाना चाहती हूं। बच्चे भी ऐसे माहोल में क्या सीखेंगे।

हां चली जाओ  पर सोच लेना एक बार घर से बाहर कदम निकाला तो वापस नहीं आ पाओगी और न तुम्हारा  न बच्चों का इस घर में कोई हक  होगा। में अपने निलेश की दूसरी शादी कर लूंगी।

यह सुन वह अवाक रह गई। बच्चों को उनके हक से कैसे  वंचित करूं ।मायके जाती हूं तो पापा पर दो बच्चों के साथ बोझ बनूंगी। अकेली बिना नौकरी के कहाँ रहूंगी। समाज में सफेदपोश घूमते भेड़ियों से सुरक्षा कैसे करूंगी ,कुछ तो सम्बल हो। सहायता के नाम पर हाथ तो बहुत आगे बढ़ेंगे  किन्तु अधिकांश सहायता के बदले कीमत बसूलना चाहेंगे जिसके लिए में कभी तैयार नहीं।

बस इसी उहापोह में छः साल से नारकीय जीवन जीने को मजबूर हूँ। किन्तु अब नहीं आज निर्णय  ले लिया कि बच्चों के भविष्य के लिये अब मैं यह घर छोड दूंगी। एक तरफ बच्चों का भविष्य है दूसरी तरफ उनका हक । यदि वे पढ़ लिख ही नहीं सके तो अवारा हो जायेंगे तो फिर  हक का क्या उसे भी बरबाद कर देंगे तो भविष्य चुनना ही बेहतर विकल्प है।

 दूसरे दिन निलेश के ऑफिस जाने के बाद वह मम्मीजी-पापा जी से बोली में यह घर छोड़ कर जा रही हूँ अब और मुझसे सहन

 नहीं हो रहा।

 उसकी हालत देख पापाजी ने कहा जा बेटा खुश रहो, मैं  समझ सकता हूँ तुम्हारी स्थिती। 

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किन्तु मम्मी जी बोलीं में पहले भी कह चुकीं हूं  लौट कर आने का रास्ता इस घर की तरफ नहीं  आयेगा। तुम कदम नहीं रख सकती  हो इस घर में।

पापा बोले यह क्या अनाप-सनाप बोले जा रही हो उसकी हालत नहीं देख रही हो। मार-मार कर अघमरा कर दिया है उसने वो ये बच्ची कब तक सहन करेगी जा बेटा जहाँ भी रहे खुश रहना और कभी जरूरत पड़े तो इस पिता को याद करना मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।

मम्मी फिर बोलीं नीलेश से पूछ लिया। 

हां रात को ही बात करली थी उसने साफ झूठ बोला। 

बच्चों को ले कुछ कपडे वगैरह ले वह निकल पडी अपने गंतव्य की और आज उसने  निर्णय कर  लिया था कि अब अपना आत्म-सम्मान खोकर वह  यहाँ नहीं

रहेगी।

 शाम को घर पहुँच कर जैसे ही उसने बेल बजाई पापा ने ही दरवाजा खोला और उसे इस हालत में बच्चों के साथ देख सकपका गये। शालू तू बेटा इस हालत में बच्चों के साथ  अकेली ।क्या हुआ तुझे। वह  पापा के गले लग  बिलख पड़ी। चल अन्दर चल बैठ कर बातें करते हैं उसकी पीठ सहलाते पापा बोले और दोनों बच्चों को ले अन्दर आ गये ।तब तक मम्मी , भाभी भी आ चुकीं थीं ।सब उसके शरीर पर पडे बेल्टों के निशान जगह-जगह से खून रिसता देख सकते में थे।

 पापा बोले- सिया बेटा तुम पहले पानी लाओ फिर चाय-नाश्ता लाओ पता नहीं कब से भूखे हैं सब । फिर पत्नी से बोले तुम बच्चों  को दूध, खाने को दो कैसे चेहरे मुरझाये हैं। कुछ खाने के बाद थोडा संयत होने के बाद सारी बात उसने कह सुनाई। 

बेटा तुम इतना सहन करती रहीं कभी हमें बताने की जरूरत नहीं समझी।

पापा, मैं अपने बहन भाई के बारे में सोचती इनकी जिम्मेदारी भी आप पर है ओर में यदि यहां आ जाती तो इनके शादी व्याह परअसर न पडे कहीं ,बस यहि सोच कर नहीं आई। 

मम्मी जब भी में तुझको  उदास देख कर पूछती कि शालू तुझे कुछ तकलीफ है क्या इतनी उदास क्यों रहती है। हमेशा टाल देती थी कभी नहीं बताया इतना पराया कर दिया हमें। 

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नहीं मम्मी में तो आप लोगों की परेशानी सोचकर नहीं बोली। मेरी किस्मत में जो था वह तो हो ही रहा था अपने भाई बहन की जिन्दगी मेरे कारण से खराब हो यह मैं नहीं चाहती थी।

वाह दीदी क्या हमें इतना  स्वार्थी समझ लिया हम आपकी परेशानी नहीं समझते अकेली इतना झेलती रहीं हम समझते थे आप खुश हैं ।

पापा बोले बेटा जो हुआ सो हुआ अब बताओ आगे क्या करना है।

देखो बेटा तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं एक तो वापस तुम्हारे घर की ओर ही जाता है जहाँ तुम नारकीय जीवन जीति रही हो वहीं उसी दशा  में  रहो।

दूसरा सब कुछ छोड कर आगे बढ़ो तुम अकेली नहीं हो  दो  बच्चों की जिम्मेदारी भी अब तुम्हारे कंधों पर है उनका भविष्य भी तुम्हें सवांरना है सो पढी लिखी हो अपने पैरों पर खडी होकर अपना  और बच्चों का भविष्य सवारों। अप्रत्यक्ष रूप से तुम्हारी इस हालत का जिम्मेदार में भी हूँ तुम्हारी इच्छानुसार मैंने शादी की जल्दबाजी न कर नौकरी करने दी होती तो आज परिस्थिती अलग होती। अब  पिछला भूल आगे बढ़ो । निर्णय तुम्हें लेना है  कौन सा रास्ता चु‌न‌ना चाहोगी। अब  आत्मसम्मान खोकर  जीना चाहोगी या सिर  ऊंचा कर जीना चाहोगी। तुम्हारे हर निर्णय में हम तुम्हारे साथ हैं।

भाई बोला दीदी ये घर भी तुम्हारा ही है आराम से रहो। बच्चों का एडमिशन स्कूल में करवा देते हैं और आपकी नौकरी प्राइ‌वेट स्कूल में लग जाएगी। क्योंकि प्रतिष्ठित विद्यालय ज्योति निकेतन के निदेशक का बेटा मेरे साथ ही काम करता है मेरा अच्छा दोस्त है उससे कहकर लगवा दूंगा। आप किसी तरह की चिन्ता न करें।

छः सात महिने तो वह साथ रही घर खर्च में कोई उससे पैसे भी नहीं लेता उसे अच्छा नहीं लगता इसलिए उसने पड़ोस में ही मकान किराये से ले लिया और बच्चों के साथ आत्मसम्मान से रहने लगी। बच्चे पढ़ने में होशियार थे और उचित वातावरण मिलने के कारण बडा बेटा प्रथम श्रेणी से  पास होता।माता-पिता, भाई- भाभी का पूर्ण सहयोग मिलता एवं पापा बच्चों की पढ़ाई भी देख लेते आज उसे अलग रहते दस वर्ष हो गए, शांति से जीवन जी रही है। समय मिलने पर बच्चों को ट्यूशन भी घर पर पढ़ा देती जिससे आगे चलकर बच्चों की पढ़ाई के लिए कुछ पैसे जमा कर सके। 

कभी-कभी शांत जल में जैसे कंकरी मारने पर हलचल होने लगती है वैसे ही रात्री के सन्नाटे में अपने विगत जीवन की यादें उसे झिंझोड़  देती। 

निलेश के साथ  बिताए सुखद क्षण उसके मन को आह्लादित कर देते फिर उसके गलत व्यवहार के क्षण उसे दुःखी कर देते। आज इतने वर्ष बीत गए उसे नीलेश की कोई खबर नहीं मिली ।कैसा है वो जानने को मन उत्सुक हो उठता। उसकी मम्मी की कही बात याद आती। क्या निलेश  ने दूसरी शादी कर ली तो उसे अभी तक तलाक क्यों नही दिया। कभी उसने यह भी जानने की कोशिश नहीं की कि हम लोग कहाँ  गये ,कैसे, किस हाल में हैं। शायद वह सुधर गया हो, पीना छोड़ दिया हो जो भी हो अच्छा हो आखिर अभी भी वो मेरा पति एवं बच्चों का पिता है। क्यों उसने अचानक अपने आपको बदल लिया यह आज तक उसके लिए अनुत्तरित प्रश्न एवं उसका व्यवहार अबूझ पहेली है।

 

शिव कुमारी शुक्ला 

29/9/24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

वाक्य****निर्णय तो लेना पड़ेगा कब तक आत्म सम्मान खोकर जिएगी

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