गंगा नहाना – माधुरी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

बात करीब ४० वर्ष पहले की है पंडित दीनानाथ हमारे पड़ोसी थे,बेटे की आस में पंडित जीके घर पांच बेटियों का जन्म हो चुका था।पंडित जी अधिक पढ़ें लिखे तो थे नहीं लेकिन उनके जजमान दो बड़े बड़े सेठ थे। जिनके यहां

पूजा पाठ का आयोजन होता ही रहता था।उन दोनों घरों से पंडित जी को इतना कुछ मिलता कि उनकी जीवनचर्या सुचारु रूपसेचल रही थी।फिर भी पंडित जी कभी कभी बेटियों की शादी की बावत सोच-सोच कर परेशान होउठते,ऐसे में उनके जजमान सेठ मेवाराम उन्हें ढांढस बंधाते , क्या पंडित जी आपकोऊपरबाले पर जराभी विश्वास नहीं हैं उसने हम सबके लिए कुछ न कुछ अच्छा सोच रखा होता है ,बसहमही नहीं समझ पाते उसकी मर्जी को।समय अपनी रफ़्तार से निकलता रहा और पंडित जी ने अपनी चार बेटियों की शादी उचित शिशिक्षा दिलबा

करनिपटा दी।लेकिन पांचबी बेटी जिसका नाम ललक्ष्मी था,ने जिद पकड़ ली बावूजी मुझेकम से कम बीऐ तक की शिशिक्षा पास करनी ही है,क्यों कि अब आपकी भी उमर हो चली है,मैंपढ लिखकर नोकरी करके आपके ऊपर से घरका बोझकुछ कम करना चाहती हूं।

पंडित जी रूडिबादी बिचार, धारा के थे किसी भी कीमत पर बेटी को नौकरी करने के पपक्षधर नहीं थे।इसी उहापोह की स्थिति में ऐक दिन पूजा कराने सेठ मेबाराम के यहां पहुंचे,उनकी चिंतित मुख मुद्रा को देखकर सेठजी ने कारण पूछा, क्या बात है पंडित जी ,घर में सब कुशल मंगल तो हैं न आपकी चारों बिबाहित बेटियां तो ठीक ठाक हैं न।या पंडिताइन की तबियत कुछ गडबड है।कुछ तो बताइए,इतने दिनों से आप हमारे घर पूजा पाठ करकेकर हमारे कष्ट निवारण कर रहे है ,आप हमारे सिर्फ पंडित जी ही नही है बल्कि अब हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं।बताइए हम आपकी किस तरह मदद कर सकते है।

क्या बताऐं जजमान ,ये जो हमरी छोटी बेटी ललक्ष्मी है न कहती है में नौकरी करके आपका भार कुछ हल्का करना चाहती हूं ,बीए पास करके।अब चलो बीए पास करवा भी दें किसी तरह, परंतु नौकरी की बात तो हमें मंजूर नहीं है।लडकी की जात नौकरी करने बाहर गई और कुछ ऊंच नीच हो गई तो हम तो इस उम्रमें कहीं के नहीं रहेंगे।ऊपर से भगवान ने रूप भी ऐसा दिया है इसको कि गली मौहल्ले के लडके ।

ही आते जाते तरह तरह की फब्तियां कसते रहते हैं।

सेठ मेबाराम ने उनकी बात सुन कर कहा कि यदि ऐसा है तो आप लक्षमी बिटिया को हमारे घर भेज दिया कीजिए,सेठानी की तबियत भी ठीली रहती है घर के काम काज व रसोई में उनकी मदद कर दिया करेगी।बदले में हम आपकी कुछ मदद कर देंगे ,जानते है कि आप इतने स्वाभिमानीहैे कि बिना काम के तो मदद लेंगे नही।

पंडित जी को सेठजी की यह बात जच गई। दूसरे दिन से लक्ष्मी सेठजी के यहां जाने लगी। पंडित जी ने सुबह शाम उसको सेठ जी के घर छोड़ने व वापस लाने की जिम्मेदारी ली।

सेठजी ने लक्षमी से बात करके उसको प्राइवेट बीए की परीक्षा देने के लिए फॉर्म भरवा दिया।पढाई के साथ साथ बह सेठानी का हाथ भी बटाने ने लगी।दो साल का समय गुजर गया था। ललक्ष्मी ने बीऐ पास कर लिया था,समय के साथ साथ उसकी सुन्दरता और निखर गई थी,साथ ही बह घर के कामों में भीनिपुण हो गई थी।

सेठानी ने एक दिन ललक्ष्मी से कहा कि कल तुम अच्छे से तैयार होकर आना,कल हमारे बेटे यश का जन्म दिन है और कल ही बह अपनी पढ़ाई पूरी करके बापस घर आरहा है।सो घर में कल पार्टी रखी है,सो तुम लोगों को भी पार्टी में शामिल होना है।

इस बीच सेठानी ने सेठ जी से बात करके ललक्ष्मी को अपनी बहू बनाने की इच्छा जाहिर की ,तो सेठजी चौंकते हुए बोले,अरे, तुम ने तो मेरे मन की बात कह दी।मै भी तो यही सोच रहा था कि पार्टी में यश व ललक्ष्मी का रिश्ता पक्का करने की घोषणा करके यश व पंडित जी को सरप्राइज देते हैं।बसमन में यहीडर था कि कहीं तुम इस रिश्ते के लिए न तो नही करेगी।

दूसरे दिन पार्टी खत्म होने पर जब सेठजी ने लक्षमी अपने बेटे यश के रिश्ते की घोषणा की तो सभी

हैरान रह गए और पंडित जी तोसेठ जी के पैरों पर ही झुक गए,जजमान किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूं आपने तो मुझे गंगा ही नहा दिया इतना बड़ा उपकार करके।

नहीं पंडित जी पहले तो जजमान न कहिए अब आप हमारे समधी हैं,दूसरे हमने कोई एहसान नहीं किया है यह सब तो भगवान् की मर्जी से हुआ है,आप तो हमारे गले मिलिए अब,अपने घर का हीरा हमें सौप दिया आपने।

ललक्ष्मी के हमारे घर बहू बन घर आने से हमारा घर खुशियों से भर जायगा।

मैं तो फिर भी यही कहूंगा कि आपकी सदहरदयता से मैं तो घर बैठे ही #गंगा नहा लिया।

स्व रचित व मौलिक

माधुरी

मुहावरा प्रतियोगिता

गंगा नहाना

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