रामदीन जी सेवा निवृत्त अध्यापक थे उनकी पत्नी देविका जी की अचानक हृदयाघात से मृत्यु हो गयी थी । उनका पार्थिव शरीर बड़े बेटे हर्ष के इंतज़ार में रखा हुआ था । जीवन संगिनी के जाने का गम रामदीन जी को अंदर ही अंदर खाए जा रहा था । घर में सभी परिवार रिश्तेदारों की भीड़ एकत्रित हो गयी थी । रामदीन जी के दो बेटे एक बेटी थी ।बड़ी बेटी सलोनी, हर्ष, और छोटा बेटा शुभ । हर्ष और सलोनी ऑस्ट्रेलिया में अलग – अलग अपने परिवार के साथ रहते थे । हर्ष को आने में बस कुछ ही देर थी ।
सलोनी मायके ही घूमने आयी हुई थी । इधर देविका जी को साड़ी और श्रृंगार पहनाकर विदा करने की तैयारी थी । थोड़ी देर में हर्ष पहुँच गया और माँ के पास बैठकर माँ से भेंट करने लगा । रामदीन जी ने हर्ष के पीठ पर हाथ फेरते हुए अपनी बड़ी बहू और पोता के बारे में पूछा..” नीलिमा , चीकू कहाँ हैं बेटा, वो लोग नहीं आए ? हर्ष ने दो टूक जवाब दिया…”वो नहीं आ सकी पापा । मैं आया हूँ न ! और पापा के गले लगकर बिफर के रो पड़ा । रामदीन जी समझ नहीं पाए हर्ष के बेरुखे जवाब की वजह ।उनका मन पुराने गलियारों में घूमने लगा…”
देविका अक्सर नाराज़गी जताती थी नीलिमा पर । जब बाजार से या बाहर से मैं आता था तो देविका को हमेशा समझाता हुआ ही पाता था । पर नीलिमा भी अच्छी थी देविका की बातों को बुरा नहीं मानती थी और हमारे घर के रिवाजों को सीखना चाहती थी । हर्ष और नीलिमा ने अंतर्जातीय विवाह किया था ।
इसलिए पहले तो देविका हमेशा उसपर गुस्साई रहती थी और जो कुछ बातें वह नहीं समझना चाहती या नहीं सीख पाती थी तो देविका उस पर बहुत झल्लाती थी फिर मुझे भी मना कर देती थी ..सुनिए जी ! वो लड़की हमारे परिवेश हमारे परिवार में नहीं ढलने वाली है, आपको उससे बात करने की कोई जरूरत नहीं है ।
मैं असमंजस में हो जाता पत्नी तो पत्नी है अगर बहू को बसाना है तो मुझे थोड़ा शांत होना चाहिए । देविका के भी विरुद्ध नहीं जाना चाहता था और बहू के भी विरुद्ध भी नहीं । यही सब बातें जब देविका हर्ष को परोसती तो वो गुस्सा जाता ।
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“पापा ! अब सिंदूर भरिए मम्मी की माँग में ! सलोनी ने सिसकते हुए कहा तो रामदीन जी जैसे अतीत से बाहर आए । घाट से वापस आने के बाद रामदीन जी निढाल से हो गए । शुभ ने हिम्मत बंधाते हुए कहा..”ऐसे टूटने से नहीं काम चलेगा पापा ! आपको ध्यान तो रखना ही होगा, जल्दी से ये माँ के काम निपट जाएँ तो फिर आप मेरे साथ चलिएगा । रामदीन जी ने बोला “नहीं बेटा ! तुम्हारा जॉब इतने मुश्किल से हुआ है अभी । मैं बिल्कुल ठीक हूँ , तुम अकेले मेरा कहाँ ध्यान रख पाओगे । जब तुम्हारी शादी होगी तब सोचूँगा आने के लिए ।
रामदीन जी की एक बड़ी दीदी थीं..पुष्पा दीदी ! वो भी आई हुई थीं । तेरहवीं की रस्म पूरी होने के बाद उन्होंने रामदीन जी से कहा..”रामा ! अब बच्चे ही तुम्हारी पूँजी हैं, तुम्हारा ध्यान रखने वाली देविका नहीं रही अब । बच्चों के पास ही जाकर रहना होगा, कोई दूसरा रास्ता नहीं है । सबके जाने के बाद इस घर में तुम्हारा जी नहीं लगेगा । हम सबको तो अपने – अपने परिवार के पास लौटना ही है । मन को मनाओ और थोड़े – थोड़े दिन सभी बच्चों के पास रह लो, दिन कट जाएँगे ।
रामदीन जी ने पुष्पा दीदी का हाथ पकड़ते हुए कहा..” मैं इसी घर में रहना चाहता हूँ दीदी ! देविका की यादों के साथ, उसके एहसासों के साथ । यहाँ से अलग सोचना भी मेरे लिए नामुमकिन है ।
सलोनी के पति धीरज ने रामदीन जी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा..”चलिए पापा जी हमारे साथ । मैं आपको इस घर में अकेले नहीं रहने दूँगा । किसी को छोटे बच्चे की जिम्मेदारी , किसी को नए जॉब की जिम्मेदारी । मैं आपके लिए समय निकालूंगा और आपके साथ टहलने जाऊँगा । सलोनी की सोलह वर्षीय बेटी चारु ने भी मनुहार करते हुए कहा…” प्लीज नाना जी चलिए न ! मेरे साथ आप योगा करिएगा और मुझे पढाईएगा ।चारु की बातें सुनकर रामदीन जी का दिल पिघलने लगा ।
सलोनी ने जैसे ही ट्रॉली निकालकर पापा के कपड़े पैक करने शुरू किए रामदीन जी को ध्यान आया हर्ष नहीं दिख रहा है । उन्होंने घर के दूसरे कमरों में जाकर खोजा तो वो नहीं दिखा । स्वयं में ही बुदबुदाने लगे रामदीन जी ..जाने कौन सी बात का बुरा मानकर बैठा है । समझ नहीं आ रहा माँ के जाने का दुःख है, मेरी जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहता या नीलिमा ने कुछ समझाकर भेजा है ।
तभी हवाओं में घुलती हुई हर्ष की हल्की सी आवाज़ सुनाई दी । देखा तो हर्ष छत पर खड़ा था । आज सोचा पीछे से जाकर आवाज़ सुनूं ऐसी कौन सी जरूरी बात है जो दिमाग से वो बेचैन और गुमसुम सा दिख रहा है । रामदीन जी छत पर जाकर जब धीरे से सुनने की कोशिश किए तब तक सिर्फ इतनी ही बात सुनाई दी..”तुम किसी तरह दो दिन पूर्णिमा भाभी के साथ और बिता लो मैं बस कल आ ही जाऊँगा । कमरे को थोड़ा व्यवस्थित कर देना । चलो अब रख दो फोन ।
रामदीन जी के दिमाग में ये बात झट से आ गयी कि नीलिमा बहू से बात कर रहा है हर्ष । शायद बुलाने की इच्छा नहीं है उसकी। ठीक ही समझ रहा था मैं । मुझे लगता था बड़ा बेटा है, जिम्मेदार है लेकिन गलत था मैं ।
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खैर..उसकी गृहस्थी अच्छी चले बस ! क्या सोचना और .. जैसे फोन रख के हर्ष पलटा तो पापा को देखते ही बोला…”पापा ! आप ? आपके टिकट के लिए बात किया अभी । आप मेरे साथ चल रहे हैं । कल हमे निकलना है आज शाम तक टिकट मिल जाएगा । रामदीन जी ने कहा..”जिसको जहाँ ले जाना है ले चलो बेटा । तुम्हीं लोगों पर आश्रित हूँ । जैसे रखोगे रह लूँगा , जो हो तुम्हीं लोग तो हो । हर्ष के आँखों से अविरल आँसू बहने लगे और वो टकटकी लगाए देख रहा था । मैं कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हूँ पापा । किन हालातों में यहाँ आया हूँ सिर्फ मुझे पता है ।
रामदीन जी और हर्ष दोनों नीचे आए । सलोनी और चारु ने रामदीन जी को दिखाकर पैकिंग किया । हर्ष ने सबके सामने कहा..”पापा को मैं ले जाऊँगा सलोनी ! चारु की परीक्षाएँ हैं तुम उसपर ध्यान दो । सलोनी ने गले लगते हुए कहा..भाई ! आपके घर के हालात मुझसे छिपे हैं क्या ? कैसी दुखद अवस्था में माँ हमे छोड़कर गयी कहीं रोशनी नहीं दिख रही । सब ठीक हो जाएगा सलोनी शांत रहो करके हर्ष ने ढाढस बंधाया ।
अगले दिन सुबह हवाई जहाज पर बैठे बेटे बेटी के साथ रामदीन जी यात्रा के लिए उड़ान भरने को तैयार थे । जैसे ही ऑस्ट्रेलिया पहुँचे सलोनी ने फिर ज़िद की साथ ले जाने की पर हर्ष ने बिल्कुल मना कर दिया और वो पापा को प्रणाम करके पति और बेटी के साथ टैक्सी में बैठकर अपने घर चली गई ।
हर्ष पापा का सामान लेकर अपने घर आया । बेल बजाकर जैसे ही दरवाजा खोलना चाहा दरवाजा खुला हुआ था । अंदर से चीकू दादाजी..दादाजी कहते दादा से लिपट गया । रामदीन जी ने उसे गोद मे उठाकर पुचकार लिया । हर्ष ने पापा को पानी और उनका मनपसंद गुड़ दिया ।
रामदीन जी की नजरें नीलिमा को तलाश रही थी । हर्ष ने पूछा..”किसे ढूंढ रहे हैं पापा ? तब तक नीलिमा की भाभी ने आकर रामदीन जी के पैर छुए उन्होंने आशीर्वाद तो दे दिया पर वो असमंजस में थे । हर्ष रामदीन जी का हाथ पकड़कर ड्राइंग रूम से अंदर ले जाने लगा तो देविका जी की बड़ी सी मुस्कुराती तस्वीर पर उनकी नज़र पड़ी । भाव – विभोर हो उठे वह । उनकी आँखों से आँसू छलक गए,। कमरा दिखाते हुए हर्ष ने कहा..”कपड़े बदल लीजिए पापा ! फिर नीलिमा से मिलेंगे । रामदीन जी ने शर्ट बदला और नीलिमा..नीलिमा कहकर आगे बढ़ने लगे तो चीकू हाथ पकड़कर रामदीन जी को नीलिमा के कमरे में ले गया ।
नीलिमा के दोनो पैर में प्लास्टर लगा हुआ था । दरअसल चार – पाँच दिन पहले वो बाजार जाने में दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी ।
रामदीन जी को देखकर उसकी आँखों से भी शैलाब फूट पड़े । वो तकिए के दूसरे छोर पर मुँह छिपाकर ज़ोर ज़ोर से
बोलते हुए रोने लगी..पापाजी !मम्मी जी की पसन्द नहीं थी मैं पर उन्होंने मुझे इतना भी मौका नही दिया कि अपनी गलती को प्रायश्चित कर सकूं । कम से कम एक अंतिम दर्शन का ही सौभाग्य मिल जाता ।
रामदीन जी के पास कोई जवाब नहीं था निरुत्तर थे वो । कितना कुछ उसके बारे में वो गलत सोच रहे थे । उसके माथे पर हाथ फेरते हुए रामदीन जी ने बोला…”वो चली गयी बेटा, कोई गिला शिकवा नहीं अब । तुम्हारी ये स्थिति होती मुझे पता तो यहाँ नहीं आता ।
हर्ष ने कहा..”ये नीलिमा की ही ज़िद थी पापा । मैं चाह रहा था आप दो महीने सलोनी के पास रह लेंगे तभी मैं यहाँ लाऊंगा पर इसकी भाभी ने कहा वो सब देख लेंगी तभी आपको यहाँ बुलाया । ऐसे समय मे माँ का जाना, दिमाग काम करना बंद कर दिया था बिल्कुल ।
रामदीन जी अपनी सोच से शर्मिंदा थे । चीकू को लेकर देविका जी के तस्वीर के सामने खड़े हुए तो लग रहा था मानो देविका जी मुस्कुराते हुए बोल रही हों..कोई शिकवा शिकायत नहीं । ये बच्चों का घर अपना ही घर समझिए और मेरे हिस्से का प्यार भी सबको दीजिए ।
(अर्चना सिंह)
मौलिक, स्वरचित