बात आइंस्टीन से जुड़ी है। वह जर्मनी छोड़ चुके थे और दुनिया भर के विश्वविद्यालय उन्हें अपने यहां नियुक्त करने के लिए उत्सुक थे, लेकिन उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी को चुना, क्योंकि वहां का वातावरण शांत और बौद्धिक था। जब आइंस्टीन पहली बार प्रिंसटन पहुंचे, तब वहां के प्रशासनिक अधिकारी ने उनसे पूछा- सर, मैं आपके लिए किन-किन उपकरणों की व्यवस्था कर दं? आइंस्टीन ने बड़े सहज स्वर में कहा, एक ब्लैक बोर्ड, कुछ चाक, पेपर और पेंसिल। अधिकारी सूची देखकर आश्चर्य में पड़ गया। वह कुछ कहता, इससे पहले ही आइंस्टीन ने फरमाइश की- और हां, एक बड़ी-सी टोकरी भी चाहिए।। वह क्यों सर? अधिकारी ने आश्चर्य से पूछा। आइंस्टीन ने हंसते हुए कहा, अपनी गणनाओं के दौरान मैं जगहजगह गलतियां करूंगा, तो छोटी टोकरी रद्दी से जल्द भर जाएगी। दरअसल, आइंस्टीन बहुत सादगी पसंद थे। वह कहते कि गलतियां तो आप करेंगे, इनका सामना करना सीखिए, इनसे सीखिए कि आगे से क्या नहीं करना है।। हम सब गलतियां करते हैं, पर एक-दो गलतियों के बाद ही घबरा जाते हैं। भूल जाते हैं कि गलतियां होती ही| इसलिए हैं कि आप काम को सही तरीके से कर सकें।
साहित्यकार फ्रेंज काफ्का ने कहा था, अच्छा साहित्य लिखने के लिए क्या चाहिए? एक कलम, एक मेज व ढेर सारे रद्दी कागज, ताकि आप बार-बार लिखें, उनको काटकर फिर दूसरा लिखें। जाहिर है, वैज्ञानिक हों या साहित्यकार, भाव एक ही है कि गलतियों से घबराएं नहीं, उनसे आपमें निखार आता जाएगा और फिर आप वह कर पाएंगे, जो दूसरे ने अब तक नहीं किया है।