“तुम मुझसे जलते हो । तुमसे मेरा नाम, ओहदा,ख़ुशी कुछ भी देखा नहीं जाता है।तुम तो बचपन से ही मुझसे जलते हो । तुम पढ़ने मे मेरे जैसे तेज नहीं थे,तुम पापा की इक्छाओ पर कभी खरे नहीं उतरे,मैंने हमेशा परिवार और समाज मे पापा का मान बढ़ाया इसलिए तुम मुझसे जलते हो।तुम बड़े बेटे हो फिर भी तुमने पापा को एक भी ऐसा सुख नहीं दिया जिसकी एक पिता अपने बेटे से उम्मीद रखता है।”
आज शशिकांत रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उनके मन मे अपने बड़े भाई रविकांत के लिए जो जो दुर्भावनाए थी उन्हें आज वह बोले जा रहे थे। रविकांत जी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। वह तो यह सोच ही नहीं सकते थे कि बच्चा उनके बारे मे ऐसी राय रखता है। एक बार उन्होंने टोका भी कि बच्चा यह क्या अनाप शनाप बक रहे हो।
मै तुमसे या तुम्हारी प्रगति से क्यों जलूंगा? पर शशिकांत जी कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे। क्यों जलूंगा पूछ रहे हो? मैंने अभी तो हजारों कारण बता दिया। मै अभी तक तुम्हे माँ पापा के लिहाज के कारण कुछ नहीं बोलता था। सोचता था कि तुम्हे कुछ भी कहने पर झगड़ा होगा। फिर माँ बाप के सामने बच्चे झगड़े,यह सही बात नहीं है बच्चो को आपस मे झगड़ते देखेगे तो उन्हें बहुत दुख होगा,जैसे भी हो आखिर हो तो उन्ही की संतान।
पर तुम्हारी जलन इतनी ज्यादा बढ़ गईं कि आज जब तुमने जाना कि मेरी बेटी की शादी बहुत ही बड़े घर मे हो रही है। दामाद कलक्टर है, तो तुम मेरे सामने मेरे होने वाले दामाद की शिकायत करने आ गए। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे होने वाले दामाद के बारे मे गलत बात बोलने की?शशिकांत जी की बातो को सुनकर रविकांत जी को बहुत धक्का पहुंचा।
वे यह सोच भी नहीं सकते थे कि मेरा भाई मेरे लिए अपने मन मे इतना क्लेश भर के रखा है। वे अब एक मिनट भी वहाँ रुक नहीं सके, शशिकांत जी नें भी रोकने की कोशिश नहीं की। रविकांत जी भाई के घर से निकलकर सीधे रेलवे स्टेशन गए और जाकर प्लेटफार्म पर एक कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगे कि उनसे या माँ पापा से कहाँ चूक हो गईं जो शशिकांत के मन मे उनके लिए इतना विष भर गया है।
उनके आँखो के सामने पिछला पचपन वर्ष चलचित्र की भांति घूमने लगा। लग रहा था कि जैसे अभी कल की ही बात हो जब शशिकांत का जन्म हुआ था। घर मे सब कितने खुश थे। आखिर पांच बेटियों के बाद बेटा हुआ था। दूसरे बेटे की आशा मे एक पर एक पांच बेटियां हो गईं थी। बहनो को बेटा बेटी का फर्क नहीं मालूम था,पर इतनी समझ जरूर थी कि यह हमसे कुछ विशेष है।
रविकांत जी तब बारह वर्ष के थे। उन्होंने और उनसे छोटी पांचो बहनो नें कभी शशिकांत जी को नाम लेकर नहीं पुकारा। हमेशा बच्चा कहकर ही सम्बोधित करते है और उन्हें हमेशा बच्चे की तरह ही प्यार भी किया। रविकांत जी पढ़ने मे औसत विद्यार्थी थे या यह भी कह सकते है कि तब बच्चो के पढ़ाई पर आज के जितना ध्यान नहीं दिया जाता था।
उन्होंने जैसे तैसे पढ़कर क्लर्क की नौकरी प्राप्त कर ली। उनकी नौकरी गृह जिला मे ही थी इसलिए वे नौकरी के साथ खेती बाड़ी भी संभाल लेते थे। शशिकांत जी बचपन से ही पढ़ने मे तेज थे। रविकांत जी नें पिता से कहा कि बच्चा पढ़ने मे तेज है इसलिए हम इसे बाहर बोर्डिंग मे भेज कर पढ़ाएंगे। इसकी पढ़ाई मे कोई कमी नहीं होनें देंगे।
मै कॉलेज के बाद एक दो ट्यूशन पढ़ा लिया करूंगा। पैसो की कोई दिक्कत नहीं होंगी। रविकांत जी की बात मानकर उनके पिता नें शशिकांत जी को छोटी उम्र मे ही बोर्डिंग स्कूल मे डाल दिया फिर कॉलेज के लिए भी दिल्ली भेज दिया। दिल्ली मे रहकर शशिकांत जी नें कम्पटीसन देकर रिजर्व बैंक मे क्लास वन रैक की नौकरी प्राप्त कर ली। उनके ओहदे को देखते हुए अच्छे घरो से रिश्ते आने लगे। एक पढ़ी लिखी लड़की देखकर उनका विवाह कर दिया गया। बहू दो चार दिन ससुराल रहकर पति के साथ चली गईं।
काम की अधिकता और पत्नी की जाने की खास इक्छा नहीं होने के कारण दोनों पति पत्नी बहनो के विवाह के आलावा शायद ही कभी घर गए थे।कहाँ चूक हुई हमसे यह सब सोचते सोचते रविकांत जी को हार्ट अटैक आ गया और वे कुर्सी से प्लेटफार्म पर गिर गए।रेलवे पुलिस नें उन्हें उठाकर अस्पताल पहुंचा दिया। उनकी जान बच गईं थी पर वो अभी बेहोश ही थे।तभी उनका मोबाईल बजा उठाने पर उधर से आवाज आई पापा आप पहुंच गए?
पुलिस वाले नें पूछा आप कहाँ से बोल रहे है? यह आपके पापा का नंबर है? आप जहाँ भी हो अभी अस्पताल पहुंचीए आपके पापा को हार्ट अटैक आया है और यह कहकर उसने अस्पताल का पता बता दिया। बेटे नें कहा मै दिल्ली मे रहता हूँ। मुझे पहुंचने मे कुछ समय लगेगा।मेरे चाचा भोपाल मे ही रहते है। पापा उन्ही से मिलने जा रहे थे।
मै उनको फोन कर देता हूँ। वे तुरत पहुंच जाएगे। बेटे नें तुरत ही शशिकांत जी को कॉल लगाया और बोला चाचा पापा आपसे मिलने के लिए जा रहे थे। उन्होंने कहा था कि बहुत जरूरी बात करनी है मिलकर ही करूंगा, पर आपके पास पहुंचने के पहले ही उन्हें स्टेशन पर ही हार्ट अटैक आ गया है। आप जल्दी से अस्पताल पहुँचिए, मै भी इधर से निकलता हूँ।शशिकांत जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया। भैया नें मेरी बातो को एकदम से दिल पर ले लिया।
मैंने गलत क्या कहा है। सही ही तो है,भैया मेरे बाहर रहने का भरपूर इस्तेमाल करके माँ पापा को मेरी तरफ से भड़काते थे। बहनो के विवाह मे पैसे देने के बाद भी पापा को लग रहा था कि मैंने बहनो के विवाह मे ठीक से मदद नहीं की। सोचते सोचते अस्पताल आ गया। वे अस्पताल के अंदर भागे और अपने भाई के बारे मे पता करके उनके पास पहुँचे।
माइनर अटैक था इसलिए रविकांत जी को होश आ गया था। शशिकांत जी को देखते ही रविकांत जी नें उनका हाथ पकड़ लिया और बोले पता नहीं यह सब तुम्हारे मन मे कहाँ से आ गया है पर मेरी बात मानो मेरे मन मे तुम्हारे लिए ज़रा भी रंज नहीं है।यह सब तुम्हारी गलतफहमी है तुम्हे मुझे जो भी कहना है कहो,पर इसके लिए हमारी गुड़िया की जिंदगी मत खराब करो।मै सच कह रहा हूँ वह लड़का हमारी गुड़िया के लिए सही नहीं है।
गरीब लड़का से विवाह कर दो तो भी लड़की सुखी रह लेगी, पर चरित्रहीन लड़का से कभी भी बेटी का विवाह नहीं करना चाहिए,उसके साथ वह कभी सुखी नहीं रह सकती। मेरी बात मान लो बच्चा।मुझे सही जानकारी मिली है वह लड़का चरित्रहीन है।शशिकांत जी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे, उन्होंने सिर्फ इतना कहा ठीक है भैया सोचते है। तुम आराम करो।ज्यादा बोलना तुम्हारे लिए सही नहीं है।फिर वे यादो मे खो गए।
मै जब भी छुट्टी मे घर जाता था तो भैया फिर भाभी सभी कितने प्यार से मिलते थे।पर बहनो के विवाह मे मैंने काफ़ी पैसे खर्च किये फिर भी बहने भैया-भाभी का ही गुण गाती है । बाद मे तो माँ -पापा को भी सिर्फ भैया ही सही लगते थे।मै तो जैसे कही था ही नहीं।पर यह सब हुआ क्यों? उन्होंने हमेशा इसके लिए भैया को ही जिम्मेदार समझा।
पर अब जब फुरसत मे उन्होंने सोचा तो उन्हें अपनी गलती याद आने लगी जब भी माता जी या पिता जी घर आने को कहते तब उनकी पत्नी कहती भैया बोले होंगे, पैसो की जरूरत होंगी, वो तो चाहते ही है कि आप बार बार घर जाइये और आपके ज्यादा छुट्टी लेने के कारण प्रमोशन मे दिक्कत हो और उन्होंने भी इसे सच मान लिया।कभी भी सच्चाई जानने की कोशिश ही नहीं की।
सदा मानते रहे कि जब पैसो की जरूरत होती है तो मै याद आता हूँ नहीं तो मै जैसे कुछ हूँ ही नहीं। भाई बहन की गलती दिखती थी,पर कभी अपनी गलतियों पर ध्यान ही नहीं दिया। हर पर्व त्यौहार पर भैया बहनो को बुलाते, भाभी मान आदर से रखती और फिर सम्मान से वे उन्हें विदा करते है। मैंने तो कभी उन्हें अपने घर झूठ का भी नहीं बुलाया, बस राखी मे पैसे भेजकर अपने कर्तव्यों की पूर्ति कर दी।
मै तो आज तक एक भी भांजे भांजी के विवाह मे भी नहीं गया हूँ। उनका मन उन्हें ही धिक्कारनें लगा, उन्हें अब समझ आ गया था कि भैया उनसे नहीं वे भैया से जलते है क्योंकि पूरा परिवार उन्हें मान आदर देता है। वे इस लायक है भी। शशिकांत जी नें मन ही मन सोचा अब आगे से मै गलती नहीं करूंगा।अब से मै भी पुरे परिवार का ख्याल रखूंगा, उनके सुख दुख मे शामिल होऊंगा। पैसा जरूरी है, पर वह आदमी की उपस्थिति की पूर्ति नहीं कर सकता है।
शब्द —-ईर्ष्या
लेखिका : शुभ्रा मिश्रा